पटेल जीते, लेकिन कांग्रेस हार गई!


सुरेश हिन्दुस्थानी
देश में लगातार सिमटते जा रहे सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस की स्थिति एक डूबता हुआ जहाज की तरह ही दिखाई दे रही है। देश की जनता ने तो पहले ही कांग्रेस का साथ देना छोड़ दिया है, लेकिन अब स्थिति यह आ गई है कि उसके अपने नेता भी साथ छोड़ने लगे हैं। कांग्रेस की ऐसी स्थिति क्यों हो रही है, इसका चिन्तन फिलहाल कोई भी नेता करने को तैयार नहीं है, लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश अपने दिल की बात जुबान पर ले आए हैं। उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा है कि कांग्रेस अस्तित्व के संकट के दौर से गुजर रही है। इसके साथ ही उन्होंने इस बात का भी संकेत किया है कि देश में नरेन्द्र मोदी का जादू काम कर रहा है। इसी जादू के चलते ही कांग्रेस में भविष्य का संकट पैदा हो गया है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश की चिन्ता जायज भी कही जा सकती है, लेकिन आज कांग्रेस का सबसे बड़ा सत्य यह है कि उसके पास केवल वरिष्ठ नेता ही बचे हैं, जो आम कार्यकर्ताओं की नहीं सुनते।
कांग्रेस पार्टी की वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावना का विचार करते उसके वरिष्ठ नेताओं की बेचैनी अब साफ झलकने लगी है। कांग्रेस में अपने जीवन का महत्वपूर्ण समय व्यतीत करने वाले नेताओं के सामने जीवन मरण का प्रश्न उपस्थित हो गया है। राज्यसभा चुनाव के दौरान गुजरात में कांगे्रस नेताओं के चेहरे देखने लायक थे, कांगे्रस की ओर से उम्मीदवार रहे अहमद पटेल ने चुनाव किन हालातों में लड़ा, यह सभी ने देखा। गुजरात में भले ही अहमद पटेल विजयी हो गए, लेकिन सच यह है कि कांग्रेस पराजित हो गई। कांगे्रस के 57 विधायक थे, जिसे कांग्रेस संभालकर नहीं रख सकी। यह कहीं न कहीं कांग्रेस के लोकप्रियता के गिरते ग्राफ का प्रमाण है। इस सत्य को कांग्रेस को समझना चाहिए। वास्तव में देखा जाए तो यह सत्य है कि आज भारत बदल रहा है, तो कांग्रेस को भी बदलना होगा। अन्यथा और क्या स्थिति होगी कहा नहीं जा सकता।
कांग्रेस में जो नेता अपना राजनीतिक प्रभाव रखते हैं, वे आत्म मंथन के दौर से गुजर रहे हैं। क्योंकि कांग्रेस की भावी राजनीति के बारे में यह कहा जाने लगा है कि जब राहुल गांधी के हाथों में कमान आएगी तब वे ही लोग कांग्रेस को चलाएंगे जो राहुल गांधी के आसपास रहते हैं और राहुल जी की क्षमताओं का जिस प्रकार उपहास हो रहा, ऐसे में कांग्रेस का भविष्य क्या होगा, इसकी सहज कल्पना की जा सकती है।
भारत की राजनीति में कांग्रेस नेता राहुल गांधी आम जनता में अभी तक कोई छाप छोड़ पाने में असमर्थ ही प्रमाणित हुए हैं। इस बात को कांग्रेस के कई नेता दबे स्वर में स्वीकार कर रहे हैं। खुलकर बोल पाने का सामर्थ्य संभवत: बहुत कम कांग्रेसी नेताओं में हैं। इन बहुत कम में अगर पूर्व केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश का नाम शामिल किया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जयराम रमेश ने एक प्रकार से अपना दुखड़ा व्यक्त कर ही दिया।
यह बात जयराम रमेश ने इसलिए भी कही होगी कि उनको शायद कांग्रेस का भविष्य दिखाई देने लगा है। हालांकि वर्तमान में तो किसी कांग्रेस नेता की हिम्मत नहीं कि वह तमाम खामियों के बाद भी राहुल गाँधी के बारे में कोई विरोधी राय निकाल सके। वह जानता है कि राहुल गांधी के विरोध का परिणाम क्या होगा। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस में केवल जयराम रमेश ही कंपकंपा रहे हों, कांग्रेस में कई ऐसे नेता हैं, जो इसी प्रकार उपेक्षा का दंश भोग रहे हैं। वास्तव में जयराम रमेश की बातों का मतलब निकाला जाए तो यह बात आसानी से समझ में आ सकती है कि कांग्रेस में अब केवल अनुभवहीन नेताओं की ही चलेगी। जिसका प्रत्यक्ष दर्शन राहुल गांधी की योजना के मुताबिक बहुत जल्दी ही राजनीतिक पटल पर दिखाई देगा।
राहुल गांधी के बारे में यह बात सभी को मालूम है कि वे न तो लोकसभा चुनाव में अपना राजनीतिक अस्तित्व बचा पाए और न ही राज्यों के विधानसभा चुनावों में ही अपना राजनीतिक कौशल दिखा पाए। ऐसे में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को चिंतित होना स्वाभाविक ही है। कांग्रेस में आज भी वरिष्ठों की एक लम्बी फौज है, जिन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत भी कांग्रेस के साथ की और आज भी उसी के साथ खड़े दिखाई देते हैं। हालांकि एक बार पूर्व में भी जयराम रमेश यह कह चुके हैं कि राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष कब बनेंगे, यह कांग्रेस में केवल सोनिया गांधी या राहुल गांधी ही बता सकते हैं। इसका अर्थ भी साफ है कि कांग्रेस में आज कोई नेता कितना भी वरिष्ठ क्यों न हो, कांग्रेस में चलेगी केवल सोनिया और राहुल की ही।
राहुल के बारे में एक बात पूरे देश ने मान ली है कि वे देश के महत्वपूर्ण अवसरों पर विदेश घूमने में मस्त रहते हैं। उन्हें देश के बारे में किसी प्रकार की चिन्ता तक नहीं रहती। देश में समस्या के समय भागने की राहुल गांधी की इस आदत से उनकी राजनीतिक अपरिपक्वता का ही बोध होता है। कांग्रेस के अंदरखाने में यह बात अब खुलकर होती है कि वर्तमान में कांग्रेस महज एक परिवार की पार्टी बनकर रह गई है। कहने को कांग्रेस भले ही बहुत बड़ा राजनीतिक संगठन हो लेकिन सत्य यही है कि यह बहुत बड़ा शब्द कांग्रेस में तो सोनिया और राहुल के सामने बौना ही दिखाई देता है। जिस प्रकार से राहुल गांधी को कांग्रेस में नंबर एक पर विराजमान किया जा रहा है, कमोवेश उस तरीके को लोकतांत्रिक कतई नहीं माना जा सकता। केवल सोनिया गांधी के संकेत पर किए जाने सारे निर्णयों से यही बात सामने आती है कि कांग्रेस में सांघिकता का अभाव है। वहां महत्वपूर्ण निर्णयों में संगठन की भूमिका का कोई महत्व नहीं है। ऐसे में आज जयराम रमेश ने मुंह खोला है, भविष्य में कांग्रेस का अन्य कोई वरिष्ठ नेता मुंह खोल दे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी।

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