कविता

पहनी है धरती ने ज्‍योति की पायल

आज आसमाँ से ये जाकर कह दे कोई

सितारों की महफिल कहीं और सजायें।

पहनी है धरती ने ज्‍योति की पायल,

दीपों के घुंघरू, स्‍वर झाँझन सुनायें।

खैर नहीं तेरी ओ अमावस्‍या के अंधेरे

धरती से उठा ले तू आज अपने ड़ेरे।

रोशनी को देख अंधेरा थरथराया

खूब चीखा पटाखों में, अंधेरे का हुआ सफाया।

झूमकर नाची है दीवाली, आज बनकर दीवानी

मानो पड़.नी है शादी की, उसकी भाँवरे रूहानी।

नहाती है रजनी, प्रभाती कुमकुमी उजाले में

आती है दीवाली लिये, कई नई सौगातों में।

खुशियाँ से बजने लगी, आज मन में शहनाईयाँ

स्‍वप्‍न सारे टूट गये, विश्‍वास ने ली अंगड़ाईयाँ।

फूलों की मुस्‍कान सा, आज संगीत सजा है

प्‍यार की तरंगों का, नया गीत जगा है।

पीव खोली है आँखें, मन चेतना लहरायी है

खुशियों को पंख लगे, ज्‍योति दीपक में आयी है।