उतारो उतारो आज तुम जिस्म से
अपनी खूबसूरत
आत्मा का यह गहना
उठो दुआयें देकर यमराज को,
यह आत्मा दान दे दो।
बनाकर भेजी थी
विधाता ने तेरी निराली सूरत
जिस्म इंसान का देकर,
गढी गजब की मूरत
उठो प्रार्थनायें गाकर अपने प्रभु को,
इन साँसों का आभार दे दो।
आज मगरूर है कितना,
तेरा बनाया इंसान
लेकर कंचन सी काया,
बनता धरती की शान
उठो निशब्द मौन श्मशान को,
अपनी काया का अग्निदान दे दो।
अखण्ड़ राज्य सारे जगपर जिनका था,
अब उन नामचीनों की शान कहाँ है
क्यों इतरावे शान बघारने वालों,
यह दुनिया बस एक धुआं- धुआं है।
पीव उतारे केचुली विषधर जैसे,
झूठे मिजाज रिवाज को तुम उतारा दे दो।