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पिता परमेश्वर तो नहीं,पर परिवार का तो पालक है।
करता है दिन रात परिश्रम,वहीं घर का चालक है।।
पिता ही पत्नी का पति है,उससे ही सारे रिश्ते बनते है।
चाचा ताऊ नाना मामा,परिवार के रिश्ते इससे बनते है।।
पिता ही मां का श्रंगार है,बच्चो का वह संसार कहलाता है।
पिता ही घर की छत दीवार है,वह ही सबको बहलाता है।।
पिता ही घर का भार उठाता है,वह ही सबको समझाता है।।
मानता नहीं जब कोई उसकी, रोने पर उतारू हो जाता है।।
पिता ही स्वप्नों का साकार करता,जो परिवार बुनता है।
टूट जाते हैं उसके सपने,जब न कोई उसकी सुनता है।।
पिता के अधिकार बहुत है,पर कर्तव्य से बंधा रहता हैं।
कर्तव्यों को पूरा करते करते,पर अधिकार के लिए न लड़ता है।।
पिता घर का भार उठाते उठाते जीवन में थक जाता है।
रोता है वह फूट फूट कर,जब मां बाप का बटवारा हो जाता है।।
आर के रस्तोगी