हम नदी के दो किनारे

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-बीनू भटनागर-
poem

नदी के दो किनारों की तरह,
मै और तुम साथ साथ हैं।
हमारे बीच ये नदी तो,
प्रवाह है,
जीवन और विश्वास है।
हमारे बीच इसका होना,
हमें साथ रखता है, जोड़ता है,
न कि दूर रखता है।
मानो कि ये नदी हो ही नहीं,
तो क्या किनारे होंगे!
नदी पहाड़ पर हो या चौड़े मैदान में,
कितने ही मोड़ ले ले,
किनारे साथ चलते हैं।
अंत में,
नदी सागर में मिल जाती है,
जब नदी ही नहीं रही ,
तो किनारे कहां बचेंगे!

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मनोविज्ञान में एमए की डिग्री हासिल करनेवाली व हिन्दी में रुचि रखने वाली बीनू जी ने रचनात्मक लेखन जीवन में बहुत देर से आरंभ किया, 52 वर्ष की उम्र के बाद कुछ पत्रिकाओं मे जैसे सरिता, गृहलक्ष्मी, जान्हवी और माधुरी सहित कुछ ग़ैर व्यवसायी पत्रिकाओं मे कई कवितायें और लेख प्रकाशित हो चुके हैं। लेखों के विषय सामाजिक, सांसकृतिक, मनोवैज्ञानिक, सामयिक, साहित्यिक धार्मिक, अंधविश्वास और आध्यात्मिकता से जुडे हैं।

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