कविता

कविता/जी लेने दो

-अनामिका घटक


कतरा-कतरा ज़िंदगी का

पी लेने दो

बूँद बूँद प्यार में

जी लेने दो

हल्का-हल्का नशा है

डूब जाने दो

रफ्ता-रफ्ता “मैं” में

रम जाने दो

जलती हुई आग को

बुझ जाने दो

आंसुओं के सैलाब को

बह जाने दो

टूटे हुए सपने को

सिल लेने दो

रंज-ओ-गम के इस जहां में

बस लेने दो

मकाँ बन न पाया फकीरी

कर लेने दो

इस जहां को ही अपना

कह लेने दो

तजुर्बा-इ-इश्क है खराब

समझ लेने दो

अपनी तो ज़िंदगी बस यूं ही

जी लेने दो