कविता

कविता-आशा

 बीनू भटनागर

वो अंधेरी राते,

वो बेचैन सासे,

कुछ आँसू ,कुछ आँहें,

लम्बी डगर, कंटीली राहें।

थके पैरों के ये छाले,

डराने लगे वही साये,

क्या बीतेंगी ये रातें,

इन्हीं रातों मे कहीं चमके,

कभी जुगनू, कभी दीपक,

इन्हीं की रौशनी मे हम,

अपना सूरज ढूढने निकले।

 

वो घुँआ वो अंगारे,

धधकते बदन मे शोले,

अगन सी जलती ये आँखें,

उम्मीदों को ही झुलसायें,

इसी पल कतरा बादल का,

कहीं से कोई आजाये

फुहार बनके,, बरस जाये

नई आशा जगा जाये।