कविता

कविता/ मानवता का धर्म नया है

धूप वही है, रुप वही है,

सूरज का स्वरूप वही है;

केवल उसका प्रकाश नया है,

किरणों का एहसास नया है.

दिन वही है, रात वही है,

इस दुनिया की, बात वही है;

केवल अपना आभाष नया है ,

जीवन में कोई खास नया है.

रीत वही है, मीत वही है,

जीवन का संगीत वही है;

केवल उसमें राग नया है,

मित्रों का अनुराग नया है.

नाव वही है, पतवार वही है,

बहते जल की रफ़्तार वही है;

केवल नदी का किनारा नया है,

इस जीवन का सहारा नया है.

खेत वही है, खलिहान वही है,

मेहनतकश किसान वही है;

केवल खेतों का धान नया है,

धरती का परिधान नया है.

मन वही है, तन वही है,

मेरा प्यारा वतन वही है;

केवल अपना कर्म नया है,

मानवता का धर्म नया है.

प्रस्तुतकर्ता —– अशोक बजाज