कविता

कविता – असल में

मोतीलाल

हमने समय की क्रूरता देखी

देखी आदमी की गति

समय के गति से भागते हुए ।

 

अगली तारीख में

रोटियां गर्म नहीं हो पाएगी

और जश्न मनाने की शैलियों में

धूप सिरे से गायब हो जाएंगें

बचे रह जाएंगें सिद्धान्त-शून्यता

और अंत का बेअंत समय

विश्व बैँक में खुले मिलेगें ।

 

विचार पनपने की जरुरत

कहीं टंडीलों के बोझ में दबी है

कहीं चूल्हे की आँच में

और जागने का उपक्रम

कहीं नहीं खोजे जा रहे हैं

असल में हम

प्रतीक्षासूची की एक संख्या मात्र हैं ।

 

जोर तुफान का

और फूल की पीड़ा

अब ऊँचे दर्जे का फैशन है

चीजों को देखने से कहीं ज्यादा

कुचलने का आनंद

इस सदी की बड़ी देन है ।