कविता – शहर का आदमी

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baadhमैं कागज काला करता रहा
कि पानी खतरे के निशान पार कर रहा है
लोगों ने पढ़ा
किसी के चेहरे लटक गये
कोई तनावग्रस्त हो गया
कोई ढूँढने लगा
सर छुपाने की जगह
कुछ ऐसे भी थे
पढ़कर फेंक दिया कूड़ेदान में
और सो गया पाँव पसारकर
बड़े इत्मिनान के साथ ।

मैं बार-बार लिखता रहा
कि गाँव के गाँव डूब गये है
साथ ही साथ
आस का तिनका भी डूब गया है
लेकिन शहर का आदमी
जरा सा भी हिला नहीं
आराम से पसर कर कुर्सी पर
पढ़ता रहा गाँवों के डूबने की खबर
और हिसाब करता रहा
सहायता राशि पर अपना भाग ।

और जब अंत में
डूबने लगा उनका शहर
हाहाकार मचने लगा
आदमी दर आदमी
खटखटाने लगा हर दरवाजा
खुलने लगी उनकी नींद
और तब
बंद होने लगा मेरा
पन्ना दर पन्ना लिखने का सिलसिला ।

मोतीलाल
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मोतीलाल
जन्म - 08.12.1962 शिक्षा - बीए. राँची विश्वविद्यालय । संप्रति - भारतीय रेल सेवा में कार्यरत । प्रकाशन - देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं लगभग 200 कविताएँ प्रकाशित यथा - गगनांचल, भाषा, साक्ष्य, मधुमति, अक्षरपर्व, तेवर, संदर्श, संवेद, अभिनव कदम, अलाव, आशय, पाठ, प्रसंग, बया, देशज, अक्षरा, साक्षात्कार, प्रेरणा, लोकमत, राजस्थान पत्रिका, हिन्दुस्तान, प्रभातखबर, नवज्योति, जनसत्ता, भास्कर आदि । मराठी में कुछ कविताएँ अनुदित । इप्टा से जुड़ाव । संपर्क - विद्युत लोको शेड, बंडामुंडा राउरकेला - 770032 ओडिशा

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