सुनता हमारी कौन है?
(सारे बोलने में व्यस्त है।)
इसी के अभ्यस्त है।
लिखो लिखो झूठा इतिहास।
हमारा भी नहीं विश्वास।
पढ़ता उसे कौन है ?
चीखो, चिल्लाओ, नारा लगाओ।
करना धरना कुछ, नहीं।
नारा लगाना कार्य है।
नारा लगाना क्रांति है।
यही तो भ्रांति है।
हिंदू संस्कृति मुर्दाबाद।
वेद वेदांत, मुर्दाबाद ।
बस जाति खत्म हो गयी।
हिंदु संस्कृति खत्म हो गयी।
जाति तोडो, पांति तोड़ो।
कुछ न टूटे तो,
निरपराधी सर तोड़ो।
रेल की पटरियां उखाड़ो।
क्रांति हो गयी।
क्रांति की गाड़ी बढ़ाओ।
और दाढ़ी बढाओ।
हप्ते, हप्ते नहाओ।
सिगरेट पियो, गौ मांस खाओ।
शराब पीकर सो जाओ।
बस क्रांति हो गयी।
नारा लगाना देशसेवा।
पटरी उखाड़ना जन सेवा।
जितना बोलो—ज्यादा लिखो,
उससे भी ज्यादा छापो।
जो छपता है, वह खपता है।
कागज़ पर क्रांति होती है।
कागज़ पर होता है नाम-
बस नाम कमाओ।
दाम कमाओ।
क्या हम नहीं जानते?
क्रांति कोई सच नहीं।
क्रांति तो एक ”सपना” है।
पर, यार वह ”सपना” जो
सेविका बनने आयी थी।
क्या परी है।
छप्पन छूरी है।
ऐसी सपना मिल जाय,
तो मार गोली क्रांति को।
रचनात्मक कार्य करे वह आरएसएस वाले।
हम तो तोड़ फोड़ करते हैं।
तोड़ फोड़ ही क्रांति है।
तोड़ो फोड़ो
तोड़ो फोड़ो
-डॉ. मधुसूदन
आपकी कविता बड़ी एकतरफा और संकीर्ण लगी……आप प्रकारांतर से जाती और ऐसे ही दूरी बढाने वाली बुराइयों का समर्थन करते नज़र आये……..एक लोकतांत्रिक रास्त्र के मूल निवासी और एक ऐसे की ही नागरिकता लेने के बावजूद भी लोकतंत्र के समानता वाले गुणों को अपने में जगह देने से आप क्यों कतराते हैं?
आपकी कविता बहुत अच्छी लगी | आज के जीवन की सही झलक दिखती है इस कविता मे|
प्रिय पाठक, श्री sunil patel :एवं श्री LAXMI NARAYAN LAHARE
आप के प्रशंसा युक्त शब्दों के लिए धन्यवाद। कुछ दीर्घ प्रवासपर होने के कारण,उत्तर देने में विलंब हुआ।
होली की शुभकामनाएं।
आदरणीय मधुसुदन जी. धन्यवाद बहुत अछि कविता लिखी है. कविता क्या आज की सच्चाई लिखी है.
मधुसुदन जी सप्रेम अभिवादन ””””””
२६ जनवरी की हार्दिक बधाई
आपका रचना अच्छा लगा ,बधाई मेरी स्वीकार करें
लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर