कविता/याचना

मेरी ख़ामोशी का ये अर्थ नहीं कि तुम सताओगी

तुम्हारी जुस्तजू या फिर तुम ही तुम याद आओगी

वो तो मैं था कि जब तुम थी खड़ी मेरे ही आंगन में

मैं पहचाना नहीं कि तुम ही जो आती हो सपनों में

खता मेरी बस इतनी थी कि रोका था नहीं तुमको

समझ मेरी न इतनी थी पकड़ लूं हाथ, भुला जग को

पड़ेगा आना ही तुमको कि तुम ही हो मेरी किस्मत

भला कैसे रहोगी दूर कि तुम ही हो मेरी हिम्मत

कि जब आयेगी हिचकी तुम समझ लेना मैं आया हूँ

तुम्हारे सामने दर पे एक दरख्वास्त लाया हूँ

कि संग चलकर तुम मेरी ज़िंदगी को खूब संवारोगी

मेरे जीवन की कड़वाहट को तुम अमृत बनाओगी

पनाहों में जो आया हूँ रहम मुझ पर ज़रा करना

अब आओ भी खडा हूँ राह पर निश्चित है संग चलना

– अनामिका घटक

1 COMMENT

  1. अनामिका जी सप्रेम आदर जोग
    आपकी रचना कुछ कहती है””””’ प्रेम की भाषा का परिचय कराकर साथ साथ चलने की उम्मीद पर
    अपना जुबा खोलती है ”आपको हार्दिक बधाई ””””””””””””””””””””””””””””””””””””

Leave a Reply to LAXMI NARAYAN LAHARE KOSIR Cancel reply

Please enter your comment!
Please enter your name here