कविता: जब तिमिर बढ़ने लगे तो

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जब तिमिर बढ़ने लगे तो दीप को जलना पड़ेगा

दैत्य हुंकारें अगर तो देव को हँसना पड़ेगा

दीप है मिट्टी का लेकिन हौसला इस्पात-सा

हमको भी इसके अनोखे रूप में ढलना पड़ेगा

रौशनी के गीत गायें हम सभी मिल कर यहाँ

प्यार की गंगा बहाने प्यार से बहना पड़ेगा

सूर्य-चन्दा हैं सभी के रौशनी सबके लिये

इनकी मुक्ति के लिये आकाश को उठना पड़ेगा

जिन घरों में कैद लक्ष्मी और बंधक रौशनी

उन घरों से वंचितों के वास्ते लड़ना पड़ेगा

लक्ष्य पाने के लिये आराधना के साथ ही

लक्ष्य के संधान हेतु पैर को चलना पड़ेगा

कब तलक पंकज रहेंगे इस अँधेरे में कहो

तोड़कर चुप्पी हमें अब कुछ न कुछ करना पड़ेगा

9 COMMENTS

  1. गिरीश जी,
    तिमिर तो बढ चुका है.अब तो बारी हम सब की दीपक बनने की है.हमारी भावी पीढ़ी अँधेरे के गर्त में घुटने को मजबूर न हो, इसके लिए हमें दीपक बनकर हमारे नैतिक दायित्व का निर्वहन करना ही पड़ेगा .

  2. ” कब तलक पंकज रहेंगे इस अँधेरे में कहो

    तोड़कर चुप्पी हमें अब कुछ न कुछ करना पड़ेगा ”

    मेरे जैसा आम आदमी भी, जिसका का सृजन करने-कराने से कुछ लेना-देना नहीं, पंकज – vs – संपादक संजीव विवाद में – क्या ” कुछ न कुछ ” कर सकता है ?

    – अनिल सहगल –

  3. वाह गिरीश पंकज जी| बेहद शानदार कविता| सच ही है हम पंकज जी को नहो खो सकते| हम सब उनके साथ हैं|

  4. ”कब तलक पंकज रहेंगे इस अँधेरे में कहो

    तोड़कर चुप्पी हमें अब कुछ न कुछ करना पड़ेगा”

    आप से अक्षरसः सहमत

  5. …तोड़कर चुप्पी हमें अब कुछ न कुछ करना पड़ेगा ”

    दृढ़ निश्चय एवं चेतना की जागृति के प्रेरक इन “दीपों” पर बधाई एवं दीपोत्सव की शुभकामनाएं .

  6. धन्यवाद मधुसूदन जी, आप, डॉ. राजेश कपूर और पंकज झा जैसे जैसे दो-चार लोग ही तो है, जिनके कारण सृजन का हौसला बना रहा है. संपादक संजीव को भी धन्यवाद, की रचना को छाप कर सुधीजनों तक पहुंचा दिया. सबको दीपावली की शुभकामनाएं….

  7. वाह, वाह, वाह,
    गिरीश जी आपने अपना ’पंकज’ नाम और ’पंकज’ झा जी का भी नाम सार्थक कर दिया। आप की इस कविता के सारे अर्थ मंडल—उसे, मनन करने योग्य बना देते हैं। यह मंचन की और मनन की ऐसी दोहरे गुणोवाली कविता है। दीपावली, पंकज और पंकज –वाह।
    अभिनंदन, दीपावली शुभ कामनाएं।

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