कविता: जो विराट तेरा, वह विराट मेरा

-राकेश उपाध्‍याय

यह विराट मेरा, वह विराट तेरा।

कुछ भी अन्तर नहीं है, वही है……

जो विराट तेरा वह विराट मेरा॥

बादलों के घड़े जमीं पर बरसते,

बरसों-बरसों ये क्यों हैं घुमड़ते,

आकाश से जमीं पर क्यों हैं उतरते

यदि ये जमी मेरी, यदि ये आकाश तेरा।

जो विराट तेरा, वह विराट मेरा…।

आंसुओं के बादल, आंख में क्यों आते

प्यार के दो बोल, क्यों मुस्कान लाते

बदला है जमाना पर ये क्यों न बदले

यदि हंसी सिर्फ तेरी, यदि रंज सिर्फ मेरा।

जो विराट तेरा, वह विराट मेरा॥

पूरब की रोशनी में पश्चिम क्यों नहाए

पश्चिम का अंधेरा, कब तक हमें सुलाए

उजाले की घड़ी है, कहीं तो पौ फटेगी

सूर्य भी यहीं पर यदि है कहीं अंधेरा।

जो विराट तेरा, वह विराट मेरा॥

अब रात ढल रही है, भोर हो गयी है

आह्वान कर रहा है हमको अब सवेरा।

जो विराट तेरा, वह विराट मेरा॥

3 COMMENTS

  1. माननीय राकेश उपाध्याय जी, “कविता: जो विराट तेरा, वह विराट मेरा” की
    निम्न लाइन का क्या वही भाव है, जो अंगरेज़ी में नीचे लिखा है ?

    “पूरब की रोशनी में, पश्चिम क्यों नहाए
    पश्चिम का अंधेरा, कब तक हमें सुलाए”

    इंग्लिश रूपांतर
    Why should the West bathe in the light of the East
    How long the darkness of the West shall make us asleep ?

    भाव समझने में कठिनाई है.

    पश्चिम का कैसा / कौन सा अंधेरा ?
    पूरब वाले तो करणवीर दानी है, सदा देते ही आये है न ?

    • धन्यवाद मित्र।
      यहां संकेत केवल दिशाओं को लेकर है।भौतिक संसार में नित्य पूरब से सूरज उगता है और पश्चिम में भी प्रकाश फैल जाता है। सूर्य अस्त पश्चिम में होता है। जाहिर है कि सूर्य के पश्चिम में डूबने पर चारों ओर अंधेरा हो जाता है। सामान्य तौर पर पूर्व प्रकाश का द्योतक है और पश्चिम अंधेरे का। लेकिन सूर्य के लिए इनका क्या महत्व है। वह हमेशा अंधेरे के खिलाफ मोर्चा खोले रखता है। चाहे पूरब में हो या पश्चिम में।

      वैसे आपका संकेत उचित है। कुछ परिवर्तन अपेक्षित है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here