न जाने कितनी रातें आखों में काटी हमने
प्रेम में नहीं, मुफलिसी में रातें ऐसे काटी हमने
खाते-खाते मर रहें हैं न जाने कितने बड़े लोग
एक नहीं, हजारों को भूखों मरते देखा हमने
दोस्त जो कहने को तो थे बिल्कुल अपने
वक्त पर उन्हें मुंह फेर कर जाते देखा हमने
कल रात अन्तरिक्ष की बात कर रहे थे वे लोग
अलस्सुबह फिर सड़क पर खुद को पाया हमने
साल-दर-साल सड़क पर रहते और ठोकर खाते हुए
मर-मर कर जीने का रहस्य बखूबी जाना हमने
बिछुड़न ही नियति रही है हमारी अब तक
मत पूछिए, क्या-क्या नहीं यहाँ खोया हमने .