कविता – महानगर के मायने

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मोतीलाल

यहाँ मुझे

कोई नहीँ पहचानता

आकाश की तरह शून्य

 

यहाँ मुझे

कोई नहीँ जानता

हवाओँ की तरह मुक्त

 

यहाँ मुझे

कोई नहीँ दिखता

फूलोँ की तरह सौम्य

 

यहाँ मुझे

कोई नहीँ सुनता

नदी की तरह उनमुक्त

 

यहाँ मुझे

कोई नहीँ महसूसता

आँच की तरह तपन

 

कोई भी यहाँ

नहीँ पालता है

कोई उम्मीदेँ

चाहे कैसी भी हो

उनके लिए

हवा, आकाश, फूल

नदी या आँच

 

मैँ देखती हूँ

और सुनती हूँ

किरणोँ की भाषा

और बुझाती हूँ

अपनी प्यास

आँसुओँ के कतरोँ से

क्या यही हमारी परिभाषा है ?

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जन्म - 08.12.1962 शिक्षा - बीए. राँची विश्वविद्यालय । संप्रति - भारतीय रेल सेवा में कार्यरत । प्रकाशन - देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं लगभग 200 कविताएँ प्रकाशित यथा - गगनांचल, भाषा, साक्ष्य, मधुमति, अक्षरपर्व, तेवर, संदर्श, संवेद, अभिनव कदम, अलाव, आशय, पाठ, प्रसंग, बया, देशज, अक्षरा, साक्षात्कार, प्रेरणा, लोकमत, राजस्थान पत्रिका, हिन्दुस्तान, प्रभातखबर, नवज्योति, जनसत्ता, भास्कर आदि । मराठी में कुछ कविताएँ अनुदित । इप्टा से जुड़ाव । संपर्क - विद्युत लोको शेड, बंडामुंडा राउरकेला - 770032 ओडिशा

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