यहाँ मुझे
कोई नहीँ पहचानता
आकाश की तरह शून्य
यहाँ मुझे
कोई नहीँ जानता
हवाओँ की तरह मुक्त
यहाँ मुझे
कोई नहीँ दिखता
फूलोँ की तरह सौम्य
यहाँ मुझे
कोई नहीँ सुनता
नदी की तरह उनमुक्त
यहाँ मुझे
कोई नहीँ महसूसता
आँच की तरह तपन
कोई भी यहाँ
नहीँ पालता है
कोई उम्मीदेँ
चाहे कैसी भी हो
उनके लिए
हवा, आकाश, फूल
नदी या आँच
मैँ देखती हूँ
और सुनती हूँ
किरणोँ की भाषा
और बुझाती हूँ
अपनी प्यास
आँसुओँ के कतरोँ से
क्या यही हमारी परिभाषा है ?