कविता / तिरंगा

माँ के अंग तिरंगा चढ़ता हम ले चले भेंट मुस्काते

घर-घर से अनुराग उमड़ता, दानव छल के जाल बिछाते

लो छब्बीस जनवरी आती!

माँ की ममता खड़ी बुलाती!!

दाती कड़ी परीक्षा लेती

तीनों ऋण से मुक्ति देती

कुंकुम-रोली का क्या करना?

खप्पर गर्म लहू से भरना!

खोपे नहीं, खोपड़े अर्पित!

चण्डी मुण्डमाल से अर्चित!!

देखें कौन तिरंगा लाते? भारत माँ के लाल कहाते!

दुनिया देखे प्रेम घुमड़ता, पहुँचो जय-जयकार लगाते!

माँ के अंग तिरंगा चढ़ता…

चल-चल ओ, कश्मीरी पण्डित!

माँ की प्रतिमा होती खण्डित!

दण्डित पड़ा टेंट में क्यूँ है?

कश्यप का वंशज तो तू है!!

तेरे गाँव लुटेरे लूटें

तुझ पर देश निकाले टूटें

उठ चल अब तू नहीं अकेला

आयी दुष्ट-दलन की वेला

चल सुन पर्णकोट की बातें, प्यारे नाडीमर्ग बुलाते

तेरा भारत मिलकर भिड़ता, जुड़ते जन्मभूमि से नाते

माँ के अंग तिरंगा चढ़ता…

प्रकटा कौल किये तैयारी!

चला डोगरा चढ़ा अटारी!

भारी गोलीबारी हारी!

युक्ति बकरवाल की सारी!!

चाहे गोले वहीं फटे हैं !

गुज्जर, लामा वहीं डटे हैं !!

घिरते ”अल्ला-हू” के घेरे

हँसते भारत माँ के चेरे

प्रण को दे-दे प्राण पुगाते, देखो, कटे शीश मुस्काते!

सबके बीच तिरंगा गडता, दानव ’डल’ में कूद लगाते!!

माँ के अंग तिरंगा चढ़ता…

– डॉ. मनोज शर्मा

2 COMMENTS

  1. भाजपा की शिवराज सरकार ने इंदौर के प्रसिद्द रीगल चौराहे पर देशभक्त आवाम को ३० जनवरी को तिरंगा नहीं फहराने दिया …….एस डीएम् ने इसकी लाल चौक से तुलना की है …आपकी कविता पढ़कर चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए उन्हें जो छद्म राष्ट्रवाद और हिंदुत्व के नाम ,मंदिर के नाम वोट लेकर पूंजीपतियों और सत्ता के दलालों की भादेती में लगे हैं …….

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