हर बार मेरे मन में बस यही प्रश्न गूंजता है,
कि आखिर मैं कौन हूँ …………..?
मैं जिस संसार की मानव प्रकृति में रहा
उसी मानव प्रकृति के बीच से निकलकर बस यही सोचता ,
कि आखिर मैं कौन हूँ ……………..?
कौन हूँ का प्रश्न मेरे मन को नोच डालता,
और समुन्द्री की तरह हिलोरे लेने लगता
मन के किसी कोने में छूपा यही प्रश्न मुझसे फिर पूछता
की आखिर मैं कौन हूँ ……………..?
जिस माँ- बाप के हाथों से मेरा,
पालन पोषण बड़े ही चाव से हुआ, फिर भी मैं उनसे पूछता
कि आखिर मैं कौन हूँ ……………..?
– ललित
यांत्रिकता और भौतिकता को ललकारता बौद्धिक सतहों से अक्सर उठता प्रश्न ‘मैं कौन हूँ’
सारे मेरे मेरे के आडंबर को समेटे मैं कौन हूँ
सारे मेरे को तिरोहित कर देता ‘मैं मौन हूँ ‘
प्रिय बंधू ललित नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ
बदल सकतें हो तस्वीर गर यही सपनें हैं कोशिश कीजिये आप की अभिलाषा बहुत अच्छी है
लक्ष्मी नारायण लहरे पत्रकार कोसीर छत्तीसगढ़
बहुत गहराई का अनुभव हुआ मुझे… बहुत ही बढ़िया
सिर्फ यही वो चीज है जो एक व्यक्ति को आसमान की उचाईयों तक ले जाती है
सच कहू तो अपने आपको पहचानना बहुत जरुरी होता है….
अतीव सुन्दर .
न मै मन न इन्द्री न शारीर मै ,चिदानंद रूपम शिवो अहम शिवो अहम…………….