छत्तीसगढ़ का सियासी नजारा

0
204

संजय स्वदेश

Raman-Singh1-620x450प्रसिद्ध यूरोपिय लेखक रूडयार्ड किपलिंग की एक कहावत है- भेड़िये को ताकत मिलती है भेड़िया से और भेड़िया को ताकत मिलती है भेड़िये से। भेडिया नेता है भेडिये समूह। जब एक भेडिया भेडियों के आगे नेतृत्व करता हुआ आगे आगे चलता है तो उसका मन इस आत्मविश्वास से लबरेज रहता है कि उसके पीछे उसका पूरा समूह खड़ा है। वहीं समूह में चल रहे भेड़ियों को इस बात का गुमान रहता है कि उसका नेता आगे-आगे चल रहा है। लिहाजा, भेड़ ओर भेड़िये दोनों एक दूसरे के ताकत बने रहते हैं। छत्तीसगढ़ के सियासी समर में इस बार रूडयार्ड की कहावत याद आ गई।

छत्तीसगढ़ की फिजाओं में इस बार सियासी नजारा विहंगम है। विधानसभा चुनाव परिणाम का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो बाद की बात है लेकिन आरोप प्रत्यारोप की सियासत में कांग्रेस को छलिया बताने वाली भाजपा भी सहमी है, तो प्रदेश सरकार को धोखेबाज कह कर भाजपा को घेरने वाली कांग्रेस प्रदेश स्तर पर मजबूत नेतृत्व के अभाव में अंदर ही अंदर डरी हुई है। कहने के लिए तो कांग्रेस की ओर से प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय कृषि मंत्री डा. चरणदास महंत कांग्रेस का चेहरा हैं। पर सच तो यही है कि खुद को एक शातिर राजनीतिज्ञ समझने वाले महंत प्रदेश स्तर की जनता को पूरी तरह स्वीकार्य नहीं है।

कांग्रेस की इस स्थिति से उलट भाजपा की हालत है। रमन सिंह का चेहरा सर्व स्वीकार है। जनता में लोकप्रिय है। जनता फिर से इन्हें सीएम के रूप में देखना चाहती है। लेकिन चुनावी समर में इनके कई उम्मीदवार ऐसे हैं जो जनता को शायद ही हजम हो। लिहाजा वोट देने वाली जनता के सामने दो विकल्प बनते हैं। या तो वह चेहरा देख कर पार्टी के नाम पर इवीएम का बटन दवाएं या फिर उम्मीदवार देख कर। भाजपा की ओर से डा. रमन सिंह को सौम्य चेहरा प्रदेश स्तर की जनता में मन में सहज स्वीकार्य है। लेकिन इस बार चुनावी मैदान में भाजपा के कई ऐसे उम्मीदवार हैं जो जनता को स्वीकार्य नहीं है। लिहाजा, वे खुद अपने दम पर जीत के लिए जनता से मनुहार करने के बजाय डा. रमन सिंह को फिर से सीएम बनाने के नाम पर मतदाताओं के जज्जबात को उभरने की कोशिश में है।

चुनाव से पूर्व गुटबाजी में बिखरी कांग्रेस की एकता फिलहाल संतुलित दिख रही है। अजीत जोगी को कांग्रेस आलाकमान से इस चुनाव के लिए मना कर गुटबाजी पर लगाम दे दी। लेकिन स्वास्थ्य कारणों से वह कांग्रेस के पक्ष में लहर बनाने में सफलता पाते नहीं दिख रहे हैं। यह खराब स्वास्थ्य का ही नतीजा है कि पिछले चुनाव की तुलना में इस बार जोगी की सभाएं कम हुई हैं। लिहाजा, कांग्रेस के पास चुनाव जीतने के लिए कुछ खास मुद्दों (विशेष कर बस्तर का जीरम कांड) पर जनता की सहानुभूति की लहर चलने का विकल्प बचता है। पर चुनावी मौसम में सियासी लहर को चलाने की वह कुशलता भी कांग्रेस में दिख नहीं रही है।

भाजपा को कांग्रेस से ज्यादा अपनों से मुकाबला

दो चुनावों से अपना परचम लहराती आई भाजपा के लिए इस बार समस्या प्रतिद्वन्द्वी कांग्रेस की ओर से कम, खुद अपने ही असंतुष्टों की ओर से ज्यादा पैदा हो रही है। पार्टी हालांकि विकास के दम पर अपनी नैया पार होने की उम्मीद बांधे हुए है ,लेकिन असंतुष्ट स्वर उसे अहसास करा रहे हैं कि उसकी राह आसान नहीं होगी। फिलहाल भाजपा राज्य में बीते 10 साल के दौरान अपने शासनकाल में हुए विकास को गिनाते हुए ओर केंद्र के कुशासन को बताते हुए जनता से वोट मांग रही है। जगह जगह की जनसभाओं में भाजपा के दिग्गज जनता को बता रहे हैं कि छत्तीसगढ़ में धान की खरीदी पूरे देश में एक मिसाल है। यहां की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को पूरे देश में सराहा जाता है जिसमें महिलाओं को परिवार का मुखिया बना कर उनका सशक्तिकरण किया गया है। पहले इस राज्य को पलायन वाले राज्य के तौर पर जाना जाता था लेकिन राज्य सरकार ने यहां रोजगार के अवसर सृजित कर इसकी तस्वीर बदल दी है।

बागी करुणा का कितना असर

हाल ही में भाजपा महिला मोर्चा की पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद करुणा शुक्ला ने मुख्यमंत्री रमण सिंह के खिलाफ राजनंदगांव सीट से खड़ी कांग्रेस की उम्मीदवार अलका मुदलियार के पक्ष में चुनाव प्रचार कर अपनी नाराजगी खुल कर जाहिर कर दी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी करूणा शुक्ला ने अपनी उपेक्षा से नाराज हो कर इसी साल चुनावों से पहले पार्टी की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने उनका इस्तीफा मंजूर कर लिया है।

करूणा ने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी और रमन सिंह दोनों को निशाने पर लेते हुए कथित तौर पर कहा कि गोधरा के बाद राज्य में हुए दंगों के दाग मोदी के दामन से और जीरम घाटी में हुए नक्सली हमले के दाग रमन सिंह के दामन से कभी नहीं धुल सकते। टिकट न मिलने से नाराज दो विधायकों ने तो निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया था। इस पर प्रदेश अध्यक्ष रामसेवक पैकरा ने पूर्व विधायक गणेशराम भगत और राजाराम तोड़ेम सहित कुछ बागियों को पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से 6 साल के लिए निलंबित कर दिया। लेकिन करुणा के इस बगावती तेवर से भाजपा पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। उनके नाम पर जनता की भीड़ उमड़ती हो ऐसा कोई करिश्माई व्यक्तित्व उनमें नहीं है। हालांकि करुणा की बगावत को भुनाने के लिए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष चरण दास महंत ने उन्हें कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने का आॅफर दिया था। लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। प्रदेश के कई दिग्गज भाजपाइयों ने तो यहां तक कह दिया कि करुणा शुक्ला के जाने से भाजपा पर केवल एक वोट का अंतर पड़ेगा। करुणा को इस तरह भाव नहीं देने से यह साफ होता है कि राजानीतिक में करुणा शुक्ला का वजूद उनके मामा पूर्व पीएम अटल बिहारी बाजपेयी के कारण था।

क्यों शांत हैं जोगी कुनबा

कांग्रेस की दिखने वाली एकता के पीछे की कहानी बहुत कम लोग समझ पा रहे होंगे। कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश स्तर पर सबसे बड़े सिरदर्द अजीत जोगी को मना कर बड़ी सफलता पा ली। अंदरखाने के जानकार कहते हैं कि जोगी को राज्य सभा में भेजने का आवश्वासन मिला तो बेटे अमित जोगी ओर पत्नी रेणु जोगी को विधायकी का टिकट के सौदे पर जोगी मान गए। बताते हैं कि पिछले विधानसभा चुनाव में बड़े और छोटे जोगी ने चुनावी मैदान में हुकार भरी थी। लेकिन इस बार अमित जोगी खुद समर में होने के कारण पूरा ध्यान उन्हें भारी मतों से जिताने पर लगा है। स्वास्थ्य कारणों से इस बार अतीज जोगी की सभाएं पिछली चुनाव की तुलना में बहुत कम हुई हैं।

छग में कांग्रेस सत्ता का इतिहास

छत्तीसगढ़ के वर्ष 2000 में अस्तित्व में आने के बाद से अब तक कांग्रेस की सरकार केवल एक बार ही रही है और पिछले दो विधानसभा चुनावों में सत्ता भाजपा को मिली। राज्य में वर्ष 2008 में हुए पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 50 सीटें जीती थी, जबकि कांग्रेस को यहां 38 और बहुजन समाज पार्टी को दो सीटें मिली थीं।

Previous articleChhatisgarh BJP Election Ads
Next articleबदहाली का जीवन जीने को मजबूर है करोड़ों बच्चे
संजय स्‍वदेश
बिहार के गोपालगंज में हथुआ के मूल निवासी। किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातकोत्तर। केंद्रीय हिंदी संस्थान के दिल्ली केंद्र से पत्रकारिता एवं अनुवाद में डिप्लोमा। अध्ययन काल से ही स्वतंत्र लेखन के साथ कैरियर की शुरूआत। आकाशवाणी के रिसर्च केंद्र में स्वतंत्र कार्य। अमर उजाला में प्रशिक्षु पत्रकार। दिल्ली से प्रकाशित दैनिक महामेधा से नौकरी। सहारा समय, हिन्दुस्तान, नवभारत टाईम्स के साथ कार्यअनुभव। 2006 में दैनिक भास्कर नागपुर से जुड़े। इन दिनों नागपुर से सच भी और साहस के साथ एक आंदोलन, बौद्धिक आजादी का दावा करने वाले सामाचार पत्र दैनिक १८५७ के मुख्य संवाददाता की भूमिका निभाने के साथ स्थानीय जनअभियानों से जुड़ाव। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के साथ लेखन कार्य।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,871 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress