भूतों से भयभीत नेता

प्रमोद भार्गव

 

भारतीय राजनीति में एक बार फिर भूत-प्रेत और सरकारी भवनों में वास्तुदोष की चर्चा है। राजस्थान की सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी के विधायक भूत-प्रेतों से डरे हुए हैं। मध्य प्रदेश में भोपाल स्थित कांग्रेस कार्यालय को वास्तुदोष का दोषी मानते हुए, उसमें अनेक संशोधन किए गए हैं। इसी तरह बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री एवं लालूप्रसाद यादव के पुत्र तेजप्रताप यादव ने अपने पटना स्थित सरकारी बंगला, भूतों के डर से छोड़ देने का निर्णय लिया है। उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी पर आरोप जड़ा है कि इन्होंने मेरे बंगलें में भूत छुड़वा दिए हैं। इसके जबाव में मोदी का कहना है कि ‘जो लोग खुद भूत हैं, उनके लिए भला भूत छोड़ने की क्या जरूरत है। शुक्र है कि नीतिश कुमार ने लालू परिवार से पीछा छुड़ा लिया, अन्यथा बिहार न जाने अंधविश्वास के किस गर्त में डूब जाता।’

राजस्थान के दो विधायकों की असमय मौत के बाद भाजपा में घबराहट है। इन मौतों के बाद विधायकों का ध्यान भूत-प्रेत और अलौकिक शक्तियों की ओर चला गया है। इनका दावा है कि राजस्थान विधानसभा में अब तक 200 विधायक कभी भी एक साथ नहीं बैठ पाए हैं। इसलिए एक विधायक ने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से विधानसभा में यज्ञ कराने की मांग की है, जिससे दुष्ट प्रेतात्माओें का साया दूर हट जाए। भूत-प्रेत से डरने वाले इन नेताओं को हम भले ही अंधविश्वासी या पुरातनपंथी कहें, पर इनमें इतनी ईमानदारी तो दिख रही है कि वे बेहिचक अपने भय को सार्वजनिक कर रहे हैं। जबकि तमाम प्रगतिशील नेता अपने अंधविश्वास को छुपाए रखते हैं और उनसे मुक्ति के लिए तांत्रिक अनुष्ठान भी गोपनीय ढंग से कराते हैं। उत्तर-प्रदेश के पिछले तीन मुख्यमंत्री नोएडा केवल इसलिए नहीं आए, क्योंकि उन्हें वहम था, कि यदि नोएडा आए तो उनकी सत्ता छिन जाएगी। नेताओं द्वारा अपने बंगलों में वास्तुदोष के चलते परिवर्तन भी कराए जाते रहे हैं। जयललिता और दिग्विजय सिंह तांत्रिक अनुष्ठानों के लिए प्रसिद्ध रहे हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री चन्द्रशेखर राव ने हाल ही में पांच दिवसीय यज्ञ कराया। बताते हैं, इसमें सात करोड़ रुपये खर्च किए गए। जब इस पर सवाल उठे तो सफाई में कहा गया कि यह धन सरकारी नहीं था। अक्सर राजनीतिकों द्वारा जब इस तरह के अनुष्ठान कराए जाते हैं तो कुछ इसी तरह के उत्तर दिए जाते हैं। दरअसल लोक सेवक एक ऐसे जिम्मेबार पद पर बैठे होते हैं, जिनके क्रिया-कलापों का असर आम जनमानस पर पड़ता है। वैसे भी एक जनप्रतिनिधि एक अभिप्रेरक की भूमिका में भी होता है। लिहाजा उसके सरोकार विकास कार्यों और जन-समस्याओं के समाधान से तो जुड़े होते ही है, साथ ही उनका दायित्व लोगों के सामाजिक, सांस्कृतिक और मानसिक संस्कारों को परिमार्जित करना भी होता है, जिससे वे जड़ता को प्राप्त हो चुके ढकोसलों से मुक्त होकर सोच को वैज्ञानिक बना सकें। हमारे आईएएस और आईपीएस अधिकारी भी तांत्रिक अनुष्ठानों और वास्तुदोष से भयभीत दिखाई देते रहे हैं। लेकिन उनके इस भ्रम को ज्यादा तवज्जो इसलिए नहीं मिलती है, क्योंकि वे नेता की तरह लोकप्रिय नहीं होते हैं।

राजनीतिकों के अंधविश्वास के महज ये तीन ही उदाहरण नहीं हैं, बल्कि अन्य कई भी उदाहरण हैं। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री वीएस येदियुरप्पा अकसर इस भय से भयभीत रहते थे कि उनके विरोधी काला जादू करके उन्हें सत्ता से बेदखल न कर दें। येदियुरप्पा सत्ता से बेदखल तो हुए, लेकिन खनिज घोटालों के कारण ? इस दौरान उन्होंने दुशतात्माओं से मुक्ति के लिए कई मर्तबा ऐसे कर्मकाण्डों को अजमाया, जो उनकी जगहंसाई के कारण बने। वास्तुदोष के भ्रम के चलते येदियुरप्पा ने विधानसभा भवन के कक्ष में कई बार तोड़-फोड़ भी कराई। वसुंधरा राजे सिंधिया, रमन सिंह और शिवराज सिंह चौहान ने अपने पहले मुख्यमंत्रित्व काल में बारिश के लिए सोमयज्ञ भी कराए, लेकिन कोई प्रतिफल नहीं मिलने और जगहंसाई होने के कारण दोबारा नहीं कराए। मध्य प्रदेश के समाजवादी पार्टी के विधायक रहे किशोर समरीते ने मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री बनाने के लिए कामाख्या देवी के मंदिर पर 101 भैसों की बलि दी, लेकिन मुलायम प्रधानमंत्री नहीं बन पाए। संत आशाराम बापू उनका पुत्र सत्य साईं और राम-रहीम अपने को साक्षात ईश्वरीय अवतार मानते थे, आज वे दूर्गती के किस हाल में हैं, किसी से छिपा नहीं है। महाराष्ट्र में तो राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के पूर्व मंत्री हसन मुशरिफ ने उस कानून का भी सार्वजनिक रूप से उल्लघंन किया था, जो कानून अंध-श्रद्धा निर्मूलन समिति के संस्थापक नरेंद्र दाभोलकर की हत्या के बाद अस्तित्व में आया था। दरअसल इसी पार्टी के एक नाराज कार्यकर्ता ने हसन के चेहरे पर काली स्याही फेंक दी थी। इस कालिख को पोत दिए जाने के कारण तत्कालीन मंत्री हसन कथित रूप से अशुद्ध हो गए थे। इस अशुद्धि से शुद्धि का उपाय उनके प्रषंसकों और जानियों ने दूध से स्नान करना सुझाया। फिर क्या था, नागरिकों को दिशा देने वाले हजरत हसन ने खबरिया चैनलों के कैमरों के सामने ही सैंकड़ों लीटर दूध से नहाकर देह का शुद्धिकरण किया।

चिंता का पहलू यह है कि इन वास्तविकताओं से परिचित होने के बावजूद हमारे नेता समाज में वैज्ञानिक चेतना स्थापित करने की बजाय अपनी असफलताओं के लिए, जहां भूत-प्रेतों से भयभीत हैं, वहीं राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए तंत्र-मंत्र और टोनों-टोटकों का साहरा ले रहे हैं। इन भयभीत नेताओं से न तो समाज को दिशा मिल सकती है और न ही ये अंधविश्वासी देश की सुरक्षा व अखंडता के लिए भरोसेमंद हैं। अकसर हमारे देश में ग्रामीण, अशिक्षित और गरीब को टोना-टोटकों का उपाय करने पर अंधविश्वासी ठहरा दिया जाता है। अंधविश्वास के पखांड से छुटकारे के लिए चलाए जाने वाले सरकारी और गैर-सरकारी अभियान भी इन्हीं लोगों तक सीमित रहते है। वाईदवे आर्थिक रूप से कमजोर और अपढ़ व्यक्ति के टोनों-टोटकों को इस लिहाज से नजरअंदाज किया जा सकता है कि लाचार के कष्ट से निवारण के यही आसान उपाय हो सकते हैं, लेकिन पढ़ा-लिखा व्यक्ति भी यही पाखंड करे, तो हैरानी होना स्वाभाविक है। हरेक देश के राजनेताओं को सांस्कृतिक चेतना और रूढ़िवादी जड़ताओं को ताड़ने वाले प्रतिनिधि के रूप में देखा जाता है। इसीलिए उनसे सांस्कृतिक परंपराओं और रीति-रिवाजों से रूढ़िवादी जड़ता तोड़ने की अपेक्षा की जाती है। जिससे मानव-समुदायों में तार्किकता का विस्तार हो, नतीजतन वैज्ञानिक चेतना से संपन्न समाज का निर्माण हो। लेकिन हमारे यहां विडंबना यह है कि नेता और प्रगतिशील सोच के बुद्धिजीवी माने जाने वाले लेखक-पत्रकार भी समाचार चैनलों पर ज्योतिश, चमत्कार, तंत्र-मंत्र, टोने-टोटके और पुनर्जन्म की अलौकिक एवं काल्पनिक गथाएं गढ़कर समाज में अंधविश्वास व पाखंड को बढ़ावा दे रहे हैं। ऐसे में जब किसी देश के राजनेता और बुद्धिजीवी ही जड़ता को प्राप्त हो चुकी मान्यताओं को सींचते रहेंगे, तो आधुनिक मूल्यों और चेतना का विकास कैसे होगा ?

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