राजनीति के चंगुल में अयोध्या विवाद

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संदर्भःराम जम्म-भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में हाशिम अंसारी के बयान से आया नया मोड़

प्रमोद भार्गव

राम जन्म-भूमि बाबरी मस्जिद विवाद में आए नए मोड़ से साफ हुआ है कि राजनीतिकों की चंगुल में होने की वजह से यह मुद्दा सुलझ नहीं पा रहा है। अयोध्या में विवादित ढ़ांचा ढहाए जाने के 22 साल बाद मुस्लिम पक्ष के सबसे पुराने वादी मोहम्मद हाशिम अंसारी ने कहा है कि वे अब मुकदमा नहीं लड़ेंगे। क्योंकि इसका राजनीतिकरण हो रहा है और राजनीति करने वाले हुकूमत के धन से अपनी रोटियां सेंकने में लगे है। 93 साल के अंसारी की इच्छा अब ‘रामलाला‘ को आजाद देखने की भी है। राजनीतिकों और सत्ताधारियों को अब सच्चे भारतीय मुसलमान की पीड़ा को समझते हुए अपने निहित स्वार्थ त्यागकर इस मसले को अंजाम तक पहुंचाने की जरूरत है।

इसमें कोई दो मत नहीं कि सर्वोच्च न्यायालय में लंबित होने के बावजूद राम मंदिर विवाद राजनीति का शिकार रहा है। हकीकत में राम मंदिर निर्माण की दिशा में अह्म पहलें तो कांगे्रस ने कीं,लेकिन मुद्दे का श्रेय राष्ट्रिय स्वंय संघ, विश्व हिंदू परिषद और भारतीय जनता पार्टी बटोरती रहीं। कमोबेश यही रवैया समाजवादी पार्टी और उसके मुखिया मुलायम सिंह यादव अपनाए हुए हैं। जब भी समस्या का हल किसी निर्णायक स्थिति में पहुंचने को होता है,ये संगठन विवाद में रोड़ा अटकाने लग जाते हैं। वरना गंगा-जमुनी तहजीब में जीने वाले आम हिंदू-मुस्लिमों ने इस मुद्दे को सुलटा लिया होता ?

दरअसल,अयोध्या विवाद से जुड़े जितने भी प्रमुख घटनाक्रम हैं,उनका वास्ता कांग्रेस और उसके नेताओं से रहा है। लेकिन कांगे्रसियों को श्रेय मिलना तो दूर की कौड़ी रहा,जलालत जरूर उन्हें झेलनी पड़ी है। इस विवाद के इतिहास की शुरूआत स्वंतत्र भारत में 22-23 दिसंबर 1949 की मध्यरात्रि में राम-दरबार से जुड़ी मूर्तियों के प्रगटीकरण से हुई। ये मूर्तियां कैसे अवतरित हुईं,तमाम जांचों के बाद यह तथ्य आज भी अज्ञात है। इस समय उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और गोविंद वल्लभ पंत मुख्यमंत्री थे। केंद्र सरकार में सरदार वल्लभभाई पटेल गृह मंत्री थे। तय है,कांग्रेस-राज में मूर्तियां प्रगट हुईं और अपनी जगह बनी रहीं। यहीं से विवाद पैदा हुआ। मामला अदालत पहुंचा और मंदिर में ताला डालवा दिया गया। सुन्नी बोर्ड आॅफ वक्फ ने मामला दायर किया था। 1961 में इस मुकदमे से हामिद अंसारी भी एक वादी के रूप में जुड़ गए थे।

इस विवाद से जुड़ी दूसरी महत्वपूर्ण तरीख 1 फरवरी 1986 है। इस समय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे और उन्होंने मंदिर पट में पड़ा ताला खुलवा दिया था। राजीव गांधी के कहने पर ही मंदिर निर्माण का शिलान्यास हुआ। इस दौरान नरायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री थे। यह शिलान्यास विश्व हिंदू परिषद् की सहमति से हुआ था। यही नहीं 1991 में राजीव गांधी ने लोकसभा चुनाव अभियान की शुरूआत भी अयोध्या से की थी। जाहिर है, राजीव गांधी मंदिर निर्माण में दिलचस्पी ले रहे थे। राजीव इस दिशा में कोई और पहल कर पाते,इससे पहले उनकी हत्या हो गई। तत्पश्चात् कांग्रेस की कमान पीवी नरसिम्हा राव ने संभाली। लोकसभा में सबसे बड़े दल रूप में कांग्रेस के उबरने के कारण राव को प्रधानमंत्री बनने का अवसर भी मिल गया।

पीवी नरसिम्हा राव देश के ऐसे प्रधानमंत्री थे,जिन्हें पंजाब से उग्रवाद खत्म करने का श्रेय जाता है। भारत की समृद्धि के लिए आर्थिक उदारवाद की नीतियों का सफल क्रियान्वयन भी उन्हीं के कार्यकाल की देन है। लेकिन सोनिया गांधी के दरबार में हजिरी नहीं लगाने के कारण कांग्रेस और भारतीय राजनीति के विश्लेशकों ने उनका सही मूल्याकांन नहीं किया। राव ने मंदिर निर्माण का भी संकल्प प्रधानमंत्री बनने के साथ ही ले लिया था। इस दिशा में गोपनीय किंतु सार्थक पहल की शुरूआत भी उन्होंने कर दी थी। इस सच्चाई का उद्घाटन राव के मीडिया सलाहकार रहे पीवीआरके प्रसाद की हाल ही में प्रकाशित पुस्तक ‘व्हील्स बिहाइंड द वेल‘ में हुआ है। दरअसल, इस मुद्दे का हल निकालकर राव एक तीर से दो निशाने साधना चाहते थे। एक तो वे भाजपा से हमेशा के लिए इस मुद्दे को छीनना चाहते थे,दूसरे हिंदू मानस की आकाक्षांओ को हमेशा के लिए तुष्ट करना चाहते थे। राव की इस पवित्र भावना और अंतर्वेदना को पुस्तक में दर्ज इस कथन में समझा जा सकता है,‘वे;भाजपा अयोध्या में राम मंदिर बनवाने पर अडे़ हुए हैं। क्या भगवान राम सिर्फ उनके हैं, जिन्हें पूरा हिंदू समाज पूजता है ? वे मंदिर निर्माण का ऐसा अभियान चला रहे हैं,मानो हम विरोध में हैं। हम उनको सीधा जवाब देंगे और भिन्न तरीके से मंदिर बनवाएगें।‘ राव का दूसरा कथन देखिए, ‘भगवान राम सबके हैं। हमारे भी हैं। हमारी पार्टी मंदिर बनवाने के लिए प्रतिबद्ध है ,क्योंकि राजीव गांधी ने इसका शिलान्यास किया था।‘

इस दिशा में उल्लेखनीय पहल करते हुए राव ने अयोध्या प्रकोष्ठ का गठन किया। विहिप और बाबरी एक्षन कमेटी से बातचीत की। विवादित ढांचे का विध्वंस और अस्थायी मंदिर का निर्माण उन्हीं के कालखंड में हुआ। विध्वंस के बाद केंद्र सरकार ने विवादित परिसर को अयोध्या अध्यादेश जारी करके भूमि का अधिग्हण किया और इसके बाद 1995 में रामालय ट्रस्ट बनाया। इस पुस्तक में किए रहस्योद्घाटन से साफ होता है कि प्रक्रिया में राव का सबसे ज्यादा सहयोग करने वाले मध्यप्रदेश के तात्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह थे। उन्होंने ही अपने वाक्चातुर्य से द्वारिका पीठ के शंकाराचार्य स्वामी स्वरूपानंद और रामानंद संप्रदाय में श्री मठ के प्रमुख स्वामी रामनरेशाचार्य को न्यास में भागीदारी के लिए राजी किया था। राव इस मुद्दे की हल की दिशा में और भी आगे बढ़ते,लेकिन उनकी पार्टी को 1996 के लोकसभा चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ा। बाद में सत्तारुढ़ हुई अटल बिहारी वाजपेयी और डाॅ मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकारों ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की। जबकि श्रेय लूटने में सबसे ज्यादा आगे भाजपा रही। अलबत्ता राव की गतिविधियों को देखते हुए ऐसा लगता है कि विवादित ढ़ांचे का ध्वंस और अस्थायी मंदिर का निर्माण राव की मंशा का ही सुनियोजित हिस्सा थे। ऐसा करके वे संघ,विहिप और भाजपा का सक्रिय हस्तक्षेप हमेशा के लिए समाप्त कर देना चाहते थे। राजीव गांधी और फिर राव की मंदिर निर्माण से जुड़ी इन तथ्यात्मक कार्रवाईयों को कांगे्रस कभी भुना नहीं पाई। तुष्टिकरण के फेर में यह उसकी आश्चर्यजनक राजनीतिक नादानी रही है। जबकि राजीव और राव के सिलसिलेवार मंदिर निर्माण से जुड़े प्रयत्न सीधे-सीधे कांग्रेस के राजनीतिक लाभ और भाजपा से मंदिर मुद्दा छीनने के लिए किए गए थे।

लंबी राजनीतिक सुस्ती के बाद इस मुद्दे पर विषद चर्चा अक्टूबर 2010 में इलहाबाद उच्च न्यायालय के आए फैसले के समय हुई थी। फैसले के बाद प्रमुख पक्षकार हाशिम असंरी समेत अन्य पक्षकारों ने तो मर्यादित बयान देकर वाणी की शालीनता बरती थी,लेकिन तथाकथित वामपंथी बुद्धिजीवी और इतिहासकारों ने विद्वेश की आग भड़काने की तुच्छ कोशिशें की थीं। मुलायम सिंह ने तो इस फैसले के परिप्रेक्ष्य में मुस्लिमों को ठगे जाने तक का अहसास कराया था। तब इन्हीं हाशिम अंसारी ने मुलायम को करारा जवाब देते हुए कहा था,‘मुलायम वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं और उनसे बड़ा मक्कार कोई नहीं है।‘ इसी समय अंसारी ने उदारता दिखाते हुए सार्वजनिक बयान दिया था कि ‘वे फैसले के मुताबिक भूमि का एक तिहाई हिस्सा हिंदू भाई जहां भी चाहें,वहां लेने को तैयार है।‘ दूसरी गंगा-जमुनी संस्कृति की यही उदारता दिखाते हुए अयोध्या के प्रमुख संत और हिंदूओं की ओर से प्रमुख पक्षकार रहे मंहत नृत्य गोपालदास ने कहा था कि‘ मुसलमान भाई मस्जिद का निर्माण बाबर का नाम हटाकर यदि इस्लाम किसी सूफी संत या पैंगंबर के नाम से करते हैं तो वे खुद मस्जिद निर्माण में कार सेवा करेंगे। इससे देश में राम-रहीम और रैदास-रसखान की समन्वयवादी संस्कृति का विस्तार होगा।‘ लेकिन विडंबना यह रही कि नवाचार के इन सद्भावों को प्रोत्साहित करने की बजाए संर्कीर्ण बुद्धि के राजनेता और चरमपंथी बुद्धिजीवियों हतोत्साहित तो किया ही, भावनाओं को उकसाने में भी लगे रहे।

हाशिम अंसारी की नाराजी से इस मुद्दे में नया मोड़ जरूर आया है,लेकिन इससे मुकदमे की सुप्रीम कोर्ट में चल रही कार्रवाई पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है। इसलिए इस नए मोड़ को समाधान की दिशा में नया अयाम देने की जरूरत है। अब तक की रचना प्रक्रिया में मंदिर निर्माण की दिशा में कांग्रेस की अह्म भूमिका रही है,इसीलिए आजम खान ने कहा भी है कि जिस दिन ढ़ांचे का विध्वंस हुआ था,मंदिर तो उसी दिन बन गया था। जब मंदिर बन ही गया है तो उसे उदार भाव से स्वीकार करने में क्यों दिक्कत आ रही है। दरअसल दिक्कतें पैदा करना ही राजनीतिक रोटियां सेंकने के अवसर पैदा करती हैं ? ऐसी दिक्कतें पेश करने में विहिप भी आगे रहती है। अंसारी के बयान के बाद अखाड़ा परिषद् के अध्यक्ष महंत ज्ञानदास को कहना पड़ा है कि ‘समझौते का प्रारूप तैयार हो चुका था,लेकिन विहिप अध्यक्ष अशोक सिंघल और भाजपा के विनय कटियार ने रोड़ा अटका दिया। यदि समझौता हो गया होता तो विहिप और भाजपा की राजनीति अनंतकाल तक कैसे चलेगी ? इस पूरे मुद्दे पर कांगे्रस आत्मरक्षा के आत्मघाती संशय में है। जबकि उसे राजीव गांधी और पीवी नरसिम्हा राव के मंदिर से जुड़े तथ्य पेश करके इस मुद्दे की स्थायी समाधान की पैरवी करके श्रेय लेने की जरूरत है। जिससे यह मुद्दा हमेशा के लिए खत्म हो जाए। ऐसा हो जाता है तो वोट की राजनीतिक बयार में शातिर दलों का जहर घोलने का खेल ही खत्म हो जाएगा ?

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  1. विरोध और समर्थन के लिए समर्थन इनका स्थाई स्वाभाव है. यदि किसी मंदिर निर्माण/नीति निर्माण/से इन्हे लाभ हो तो ठीक नहीं तो विरोध. जबान पर नाम सिद्धान्तों का,नीतियों का ध . र्मनिरपेक्षता का किन्तु मन में सत्ता का लोभ.हा सम्पूर्ण राजनीती २०%परिवारों के कब्जे मैं है ऐसा लगता है,/यदि लोकसभा और rajysabha के सदस्यों की पारिवारिक रिस्तेदारी देखि जय तो १५ से २० %आपस में भाई/भतीजे /साले /पुत्र/बहु/सुसर/माँ/पिता होंगे. आप इनसे क्या उम्मीद येंगे समस्याओं से ध्यान हटाना और अपने दाल का लाभ देखना राजनीतिक दलों की आदत हो गयी है. कोई भी दल हो सत्ता में हो ,विपक्ष मैं हो विरोध के एंगे ?मंदिर मुद्दा हो/जनसँख्या विस्फोट का मुद्दा हो महंगाई का मुद्दा हो /भ्रस्टाचार का मुद्दा हो ये क्या हल करेंगे?

  2. मैं लेखक से पूरी तरह सहमत हूँ —- सकारात्मक कदम की सराहना होनी ही चाहिए —-
    पर बीजेपी अरे ये गाँधीजी के हत्यारों की पीढ़ी है ——-शैतानों के दरवाजे पर जिंदगी की भीख माँगकर हम गलती कर रहे हैं :—–

    देश में भ्रष्टाचार और साम्प्रदायिकता के लिए बीजेपी की दाहिनी हाथ रिलायंस बहुत हद तक जिम्मेदार है ‌‌‌‌—– जनता को अयोध्या के आसपास के लोगों से सीखना चाहिए – सभी के उकसाने पर भी उन्होंने सौहार्द बनाए रखा है – उसी माटी से — मेरे चाचा जी अमर कवि अदम गोंडवी जी जाति-धर्म के नहीं गरीबी के खिलाफ जंग का आह्वान कर रहे हैं :–

    हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है
    दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए

    ग़र ग़लतियाँ बाबर की थीं; जुम्मन का घर फिर क्यों जले
    ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए

    हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ
    मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए

    छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर ग़रीबी के ख़िलाफ़
    दोस्त, मेरे मज़हबी नग्मात को मत छेड़िए !!!

    सरकार ने प्राकृतिक गैस के दाम 33% बढ़ाकर मुकेश अम्बानी को खुश किया( देखिए राजस्थान पत्रिका- 03-11-14,पेज नम्बर – 13 ) गैस के दाम बढ़ने से सी.एन.जी.भी महंगी हो जाएगी -किराया – महँगाई अपने आप बढ़ जाएगी ! उर्वरक कारखानों में अपूर्ति होने वाली प्राकृतिक गैस के दाम बढ़ने से युरिया के दाम में 10फीसदी की बढ़ोत्तरी होगी फलस्वरूप महँगाई बढ़ेगी या किसान आत्महत्या करने को मजबूर होंगे ! पर ———– कम्यूनिस्टों को भी चुप करा दिया गया है या वे लाल सलाम के ही भरोसे ——-

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