ग्लोबल वार्मिंग कम नहीं हुई तो संकट में आबादी

– साल 2100 तक हिमालय के 75 फीसदी ग्लेशियर पिघल जाएंगे। इससे भयंकर बाढ़ आएगी और हिमस्खलन होगा और लगभग दो अरब लोगों के जीवन और आजीविका पर असर पड़ेगा। वैज्ञानिक इस बात का आकलन करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन दुनिया को कैसे प्रभावित कर रहा है।
अमित बैजनाथ गर्ग

विश्व में जलवायु परिवर्तन से होने वाले दुष्प्रभावों के परिणाम धीरे-धीरे सामने आना शुरू हो गए हैं। यदि ग्लोबल वार्मिंग को तत्काल कम नहीं किया गया तो साल 2100 तक हिमालय के 75 फीसदी ग्लेशियर पिघल जाएंगे। इससे भयंकर बाढ़ आएगी और हिमस्खलन होगा और लगभग दो अरब लोगों के जीवन और आजीविका पर असर पड़ेगा। वैज्ञानिक इस बात का आकलन करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन हिंदुकुश हिमालय को कैसे प्रभावित कर रहा है। वहीं यूरोपीय ऐल्प्स और उत्तरी अमेरिका के रॉकी पर्वत के विपरीत इस क्षेत्र में फील्ड मापन का लंबा ऐतिहासिक रिकॉर्ड नहीं है, जो बता सके कि ग्लेशियर बढ़ रहे हैं या सिकुड़ रहे हैं। साल 2019 में अमेरिका ने 1970 तक के क्षेत्र के ग्लेशियरों की जासूसी उपग्रह छवियों को वर्गीकृत किया। इससे एक नई वैज्ञानिक आधार रेखा प्रदान की गई।
     हाल ही में काठमांडू स्थित इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डवलपमेंट के शोधकर्ताओं ने हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र के ग्लेशियरों के पिघलने को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। हिंदू कुश हिमालय (एचकेएच) क्षेत्र के ग्लेशियर और बर्फ से ढके पहाड़ 12 नदियों के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। इससे इस क्षेत्र में रहने वाले 240 मिलियन लोगों को और अन्य 1.65 बिलियन लोगों को साफ पानी मिलता है। इस नई समझ के साथ ही हिमालय के इस इलाके में रहने वाले लोगों के लिए गंभीर और बहुआयामी चिंताएं भी पैदा होती हैं। रिपोर्ट में पाया गया कि इस क्षेत्र की गंगा, सिंधु और मेकांग समेत 12 नदी घाटियों में पानी का प्रवाह आने वाले वक्त में चरम पर होने की संभावना है। इसका परिणाम यह है कि करीब 1.6 बिलियन से ज्यादा लोग इससे प्रभावित होंगे।
     रिपोर्ट में कहा है कि यदि ग्लोबल वार्मिंग में कमी नहीं की जाती है तो 2100 तक हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र के 80 प्रतिशत तक ग्लेशियर पिघल जाएंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि डिग्री ऑफ कंसर्न के ऊपर दो डिग्री सेल्सियस तापमान पर पूरे क्षेत्र के ग्लेशियर 2100 तक 30 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक कम हो जाएंगे। डिग्री ऑफ कंसर्न के ऊपर तीन डिग्री तापमान पर पूर्वी हिमालय में ग्लेशियर 75 प्रतिशत तक खत्म हो जाएंगे। वहीं डिग्री ऑफ कंसर्न के ऊपर चार डिग्री तापमान पर यह 80 फीसदी तक कम हो जाएंगे। रिपोर्ट के अनुसार, 2010 के दशक के दौरान ग्लेशियर पिछले दशक की तुलना में 65 प्रतिशत तेजी से पिघले हैं। शोधकर्ताओं ने आशंका व्यक्त की है कि ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से भयंकर बाढ़ और हिमस्खलन होगा और लगभग दो अरब लोगों के जीवन और आजीविका पर असर पड़ेगा। अन्य प्रभाव में पारंपरिक सिंचाई चैनलों का विनाश, फसल की हानि, भूमि का क्षरण, भूमि उपयोग में परिवर्तन और फसल और पशुधन उत्पादन में गिरावट शामिल होगी।
     वहीं बर्फ के पिघलने से खतरनाक हिमनदी झील बना सकती हैं। इन झीलों के फटने से बाढ़ का खतरा और बढ़ जाएगा। हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में विविध वनस्पतियों के लिए अनुकूल चार वैश्विक जैव विविधता हॉट स्पॉट के सभी या कुछ हिस्से मौजूद हैं। ग्लेशियर पिघलने से ये भी नष्ट हो सकते हैं। रिपोर्ट में हिंदू कुश हिमालय में रहने वाले लोगों के लिए गंभीर चिंता जताई गई है। रिपोर्ट में पाया गया कि इस क्षेत्र की 12 नदी घाटियों में पानी का प्रवाह, मध्य शताब्दी के आसपास चरम पर होने की संभावना है, जिसके नतीजे इस आपूर्ति पर निर्भर 1.6 बिलियन से अधिक लोगों को भुगतने पड़ेंगे। ऊंचे पहाड़ों में रहने वाले लोग फसलों की सिंचाई के लिए हिमनदी के पानी और पिघली बर्फ का उपयोग करते हैं। अब बर्फबारी का समय अनिश्चित हो गया है और यह पहले की तुलना में कम हो गई है। हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत शामिल हैं और ध्रुवीय क्षेत्रों के बाहर पृथ्वी पर बर्फ की सबसे बड़ी मात्रा है। हिंदू कुश हिमालय अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान में 3,500 किमी तक फैला हुआ है।
     गौरतलब है कि ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए साल 2015 में पेरिस जलवायु वार्ता में दुनियाभर के देश पूर्व-औद्योगिक स्तर की तुलना में ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने पर सहमत हुए थे। पृथ्वी की वैश्विक सतह के तापमान में लगभग 1.15 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है और औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद से कार्बन डाइऑक्साइड इसके साथ जुड़ी हुई है। सदी के अंत तक दुनिया के तापमान में लगभग 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो सकती है। जलवायु विशेषज्ञों का कहना है कि दुनिया को 2009 के स्तर से 2030 तक उत्सर्जन को आधा करना चाहिए ताकि वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे बनाए रखा जा सके। उनका कहना है कि पिघलते हुए ग्लेशियर निचले इलाके में रहने वाले समुदायों के लिए भी खतरा हैं। हम सभी को इन पर ध्यान देने की जरूरत है। ऐसा नहीं करने पर आने वाले समय में बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है।

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