सेना के शौर्य का यशोगान, विपक्ष क्यों परेशान?

प्रदीप कुमार वर्मा

पाकिस्तानी आतंकवादियों के विरुद्ध ऑपरेशन सिंदूर के जरिए निर्णायक कार्रवाई, आतंकियों का आका कहे जाने वाली पाकिस्तान सेना के ठिकानों पर प्रहार, शानदार कूटनीति के माध्यम से सिंधु जल समझौता रद्द करने के साथ अन्य व्यापारिक संबंधों पर पूर्ण विराम, पाकिस्तान के साथ अब सिर्फ पीओके और आतंकवादियों को सोंपने ही पर बातचीत का एलान,। और देश सहित सारी दुनिया में भारतीय सेना के पराक्रम तथा शौर्य का यशोगान। पहलगाम के आतंकी हमले के बाद केंद्र की मोदी सरकार द्वारा आतंकवाद के विरुद्ध सबसे बड़ा प्रहार “ऑपरेशन सिंदूर” की यही दास्तान है। देश और दुनिया में भारत सरकार के इस कदम की सराहना की जा रही है। वहीं,भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस द्वारा इस बार भी ऑपरेशन सिंदूर के संबंध में सबूत मांगे जा रहे हैं। यही नहीं ,कांग्रेस द्वारा भारत और पाकिस्तान के बीच “सीज फायर” को लेकर भी कई सवाल उठाये जा रहे है। 

        पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला करते हुए 26 पर्यटकों को मौत के घाट उतार दिया था। बीते महीने की 22 तारीख को हुई इस कायरतापूर्ण कार्रवाई में सबसे पहले आतंकियों ने पर्यटकों से उनका धर्म पूछा। इसके बाद उनके हिंदू होने की तसल्ली करने के लिए उनको कलमा पढ़ने को कहा। और फिर पर्यटकों को अपनी जान देकर हिंदू होने की कीमत चुकानी पड़ी। इस कायराना कार्रवाई में सबसे बड़ा पहलू यह रहा कि आतंकियों ने “हमास” स्टाइल में पत्नी और बच्चों के सामने पुरुषों को बर्बर तरीके से सिर में गोली मारकर उन्हें मौत की नींद सुला दिया। इस आतंकी घटना के बाद भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आतंकवाद के विरुद्ध निर्णायक कार्रवाई का ऐलान किया और भारत ने पाकिस्तान के आतंकवादियों के विरुद्ध “ऑपरेशन सिंदूर” शुरू किया। इससे पूर्व केंद्र सरकार ने जब सर्वदलीय बैठक बुलाई तो, कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने सेना और सरकार की प्रत्येक कार्रवाई में “सहयोग और समर्थन” का संकल्प व्यक्त किया। 

            सभी दलों के राजनीतिक सर्वमान्य निर्णय के बाद केंद्र की मोदी सरकार ने तीनों सेनाओं को खुली छूट दी। जिसके जरिए सरकार द्वारा सेना को समय, दिन, स्थान और तरीका चुनकर आतंकियों को कड़ा जवाब देने के लिए अधिकृत कर दिया। भारत की तीनों सेनाओं ने आपसी समन्वय और सरकार के निर्णय को अमलीजामा पहनाते हुए 7 मई को पाकिस्तान के 9 आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक कर उन्हें ध्वस्त कर दिया। इसके बाद जब पाकिस्तान की सेना ने भारत के सैनिक ठिकानों, एयरवेस, धर्मस्थलों तथा आबादी के इलाकों को अपना निशाना बनाया तो भारतीय सेना ने भी इसका मुंहतोड़ जवाब देते हुए पाकिस्तान की सेना के 11 एयरबेस तबाह कर दिए। इस कार्रवाई से घुटनों पर आए पाकिस्तान ने अपने डीजीएमओ के जरिए भारत से “सीजफायर” की गुहार लगाई, तो भारत ने भी इस पर सकारात्मक रुख रखते हुए 10 मई को सीजफायर का ऐलान कर दिया।

              इसके बाद में भारतीय सेना और विदेश मंत्रालय के नुमाइंदों ने बाकायदा प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सेना तथा भारत सरकार द्वारा चलाए गए  ” आपरेशन सिंदूर” और सीजफायर के संबंध में उठाए गए सभी सवालों के जबाब देने साथ “ऑपरेशन सिंदूर” के सिर्फ स्थगित करने के बारे में जानकारी दी। लेकिन इसके उलट कांग्रेस ने अपनी पुरानी परंपरा की तरह इस बार भी केंद्र सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। कांग्रेस नेताओं ने इस बार भी ऑपरेशन सिंदूर में भारतीय सेना को हुए नुकसान तथा सीज फायर की आवश्यकता और इसके समय पर सवाल उठा दिए हैं। यही नहीं भारत सरकार द्वारा विश्व बिरादरी को पाकिस्तान की करतूत तथा “आतंकपरस्ती” के बारे में जानकारी देने के लिए सात डेलिगेशन बनाकर उन्हें अलग-अलग देश को भेजा गया है। सरकार की इस कार्रवाई पर भी कांग्रेस डेलिगेशन में शामिल सदस्यों के नाम पर सवाल उठा रही है। कांग्रेस ने केंद्र सरकार से यह सवाल किया है कि पीओके को वापस लिए बिना पाकिस्तान के साथ सीजफायर पर करने का क्या औचित्य है?

              उधर, इस मामले में भाजपा सहित केंद्र की सरकार में शामिल एनडीए के अन्य राजनीतिक दलों ने कांग्रेस के इस रवैये पर सवाल उठाए हैं। भाजपा सहित उसके अन्य सहयोगी दलों का कहना है कि वर्ष 1971 की जंग में जब पाकिस्तान के 93 हजार सरेंडर किए हुए सैनिक और एक बड़ा भू-भाग भारत के कब्जे में आ गया था। तब कांग्रेस की सरकार में पीओके को वापस क्यों नहीं लिया? पीओके को वापस लेने की बजाय भारत की तत्कालीन सरकार ने युद्द में सरेंडर करने वाले पाकिस्तान के सभी सैनिकों और जीते गए भूभाग को वापस कर दिया। इसके साथ ही भाजपा के आरोपों के मुताबिक पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा कश्मीर के मसले को यूएन में ले जाने को लेकर भी कांग्रेस खुद सवालों के घेरे में है। भाजपा नेताओं का यह भी कहना है कि बीते सालों में कांग्रेस सरकार की गलत नीतियों के कारण ही सेना ने अपने पराक्रम से पाकिस्तान के विरुद्ध जीत दर्ज करते हुए जो भू-भाग जीते थे, उन्हें कांग्रेस की सरकारों ने “समझौते” के नाम पर पाकिस्तान को वापस दे दिया। यही नहीं, कांग्रेस की तत्कालीन सरकारों द्वारा चीन को “अक्साई चीन” दिए जाने को लेकर भी भाजपा इन दिनों कांग्रेस पर हमलावर है, जिसके चलते कांग्रेस खुद सवालों के घेरे में आ गई है।

        भाजपा और कांग्रेस के बीच सवालों के सिलसिले में एक वजह “ऑपरेशन सिंदूर” का श्रेय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार द्वारा लेने के चलते भी है। ऑपरेशन सिंदूर को लेकर कथित तौर पर भ्रमित कांग्रेस सेना के विरुद्ध सीधे-सीधे कुछ भी कहने से बच रही है लेकिन वह पीएम नरेंद्र मोदी तथा केंद्र की एनडीए सरकार पर हमलावर है।  इस मामले में पूर्व वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों तथा राजनीतिक प्रेक्षकों का कहना है कि वर्ष 1971 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को पाकिस्तान पर जीत का “श्रेय” दिया जा सकता है। तो फिर आतंक एवं पाकिस्तान के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई का जज्बा रखने और इसके लिए सेना को खुली छूट देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी “ऑपरेशन सिंदूर” की सफलता का श्रेय दिया जाना चाहिए। फिलहाल केंद्र की मोदी सरकार और भारतीय सेना ने आतंकवाद के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने वाले “ऑपरेशन सिंदूर” को भले ही स्थगित किया है लेकिन “ऑपरेशन सिंदूर” के नाम पर कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दलों का कथित “राजनीतिक विलाप” तथा भाजपा द्वारा सेना के पराक्रम और शौर्य के सम्मान में देशव्यापी तिरंगा यात्रा जारी है।

प्रदीप कुमार वर्मा

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