डॉ. वेदप्रताप वैदिक
प्रधानमंत्री के भारत लौटते ही मंत्रिमंडल ने दो अध्यादेश जारी किए। एक तो बलात्कारियों को कड़ी सजा देने के लिए और दूसरा बैंकों का पैसा हड़पकर विदेश भागनेवालों के लिए। इन दोनों अध्यादेशों का लाया जाना इस बात का सूचक है कि यह सरकार कुंभकर्ण की नींद सोई हुई नहीं है। देर आयद, दुरुस्त आयद् ! यदि संसद के चलने से ये कानून बन जाते तो इनका असर भी हमें देखने को तुरंत मिल जाता लेकिन सरकार और विपक्ष, दोनों को ही देश की चिंता कम है और अपने-अपने नंबर बनाने की ज्यादा है। यदि बलात्कार-विरोधी कठोर कानून बन जाता तो स्वाति मालीवाल को राजघाट पर अनशन क्यों करना पड़ता ? कल जब ‘सबल भारत’ की ओर से हम लोग वहां गए तो हमने स्वाति को समझाया कि अध्यादेश आ रहा है। तुम्हारी मांग मानी जा रही है। अब तुम अनशन तोड़ दो। मैंने विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और गृहमंत्री राजनाथ सिंह को भी फोन किए लेकिन दोनों बाहर थे। कितना अच्छा होता कि भाजपा समेत सभी पार्टियां और सामाजिक संस्थाओं के लोग इस अनशन का समर्थन करते। कितने खेद का विषय है कि इस सर्वहितकारी काम को भी पार्टीबाजी का मामला बना दिया गया।
जहां तक अध्यादेश का सवाल है, बलात्कार की न्यूनतम सजा 10 वर्ष और अधिकतम मृत्युदंड करने के लिए बधाई लेकिन मुझे यह बात समझ में नहीं आई कि अलग-अलग उम्र की लड़कियों के साथ बलात्कार करने पर अलग-अलग सजा का प्रावधान क्यों किया गया ? उम्र कम-ज्यादा तो सजा भी कम-ज्यादा ? यदि 12 साल से कम उम्र की बच्ची के साथ बलात्कार हो तो मृत्युदंड और 16 साल से ज्यादा की लड़की के साथ हो तो आजन्म कैद ! तो फिर 70 साल की महिला से बलात्कार हो तो क्या सिर्फ शाम तक की ही सजा होगी ? बलात्कार बलात्कार है। उसकी सजा कठोरतम होनी चाहिए। इसके अलावा मैंने यह मांग भी की है कि वह सजा खुले-आम प्रचारपूर्वक दी जानी चाहिए। इस अध्यादेश में एक बेहतर बात यह है कि बलात्कार के मामले की जांच दो माह में और सजा चार माह में देने का प्रावधान है। अपील निपटाने में भी छह माह की अवधि रखी गई है। पता नहीं अदालतें ये शर्त पूरी कैसे करेंगी ? 2016 में बलात्कार की 36000 शिकायतें दर्ज हुई थीं। इन शिकायतों को निपटाने में ही 20 साल लग जाएंगे। इसीलिए मैं कई वर्षों से मांग करता रहा हूं कि बलात्कार की सजा इतनी जल्दी और सजा इतनी कठोर होनी चाहिए कि उस सजा के डर के मारे बलात्कार कम से कम हो जाएं। बलात्कार का विचार मन में उठते ही बलात्कारी की हड्डियां कांपने लगें। मैं सोचता हूं कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद इस अध्यादेश पर आंख मींचकर दस्तखत न करें। अपने सुझाव दें। उसे वापस करें और बेहतर बनवाकर मंगवाएं।
वैदिक जी यदि अध्यादेश के अंतर्गत बलात्कार-पीड़िता की आयु को लेकर दी गई न्यूनतम अथवा अधिकतम सजा दिए जाने पर मन में कोई संशय हो तो राजनाथ जी को फोन लगा के पूछ लें| हँसी की बात नहीं है लेकिन ७० वर्षीय बलात्कार-पीड़िता के अभियुक्त को शाम तक क्यों रोके रखें, आप उसे अपने घर ले आइये और जब कभी उसका नशा उतर जाए तो पूछ-ताछ उपरान्त अपने अनुभव को यहां पाठकों के साथ सांझा करना न भूलें!