‘प्रेस’ शब्द का बढ़ता दुरुपयोग

आजकल जिसे देखों ‘प्रेस’ वाला होना चाहता है। आजकल ‘प्रेस’ होने वाला आसान भी बहुत हो गया है। किसी साप्ताहिक समाचार-पत्र के मालिक-सम्पादक को पांच सौ रुपए का नोट थमाएं और एक घंटे में आपके पास चमचाता हुई अखबार का आई-कार्ड आ जाएगा। इतने पैसे तो साधारण संवाददाता बनने के लगते हैं। चीफ रिपोर्टर या ब्यूरो चीफ बनना चाहते हैं तो जेब बहुत ज्यादा ढीली करनी पड़ती है। कार्ड हाथ में आने के बाद अब आपके घर में जितने भी वाहन हैं, सब पर शान से प्रेस लिखवाएं और सड़कों पर रौब गालिब करते घूमें। इससे कोई मतलब नहीं है कि आपको अपने हस्ताक्षर करने आते हैं या नहीं। कभी एक भी लाईन लिखी है या नहीं। आपके पास किसी अखबार का कार्ड है तो आप प्रेस वाले हैं। हद यह है कि गैर कानूनी काम करने वाले भी अपने पास दो-तीन अखबारों के कार्ड रखते हैं। पैसे देकर कार्ड बनाने वाले अखबारों के तथाकथित मालिक और सम्पादक भी अपन जान बचाने के लिए कार्ड के पीछे एक यह चेतावनी छाप देते हैं कि ‘यदि कार्ड धारक किसी गैरकानूनी गतिविधियों में लिप्त पाया जाता है तो उसका वह खुद जिम्मेदार होगा और उसी समय से उसका कार्ड निरस्त हो जाएगा।’ जिन अखबारों के नाम में ‘मानवाधिकार’ शब्द का प्रयोग हो तो उस अखबार के कार्ड की कीमत पांच से दस हजार रुपए तक हो सकती है। इसकी वजह यह है कि आप अखबार वाले के साथ ही मानवाधिकार कार्यकर्ता भी हो जाते हैं। लोगों की आम धारणा है कि पुलिस और प्रशासन ‘प्रेस’ और ‘मानवाधिकार’ शब्द से बहुत खौफ खाते हैं। अब तो कुछ तथाकथित न्यूज चैनल भी ‘ब्यूरो चीफ’ बनाने के नाम पर दो लाख रुपए तक वसूल रहे हैं। न्यूज चैनल कभी दिखाई नहीं देता लेकिन उसके संवाददाता कैमरा और आईडी लेकर जरुर घूमते नजर आ जाते हैं। बात यहीं खत्म नहीं होती। बड़े अखबारों के एकाउंट सैक्शन, विज्ञापन सैक्शन और मशीनों पर अखबार छापने वाले वाले तकनीश्यिन भी अपने वाहनों पर धड़ल्ले से प्रेस लिखकर घूमते है। यहां तक की अखबार बांटने वाला हॉकर भी प्रेस शब्द का प्रयोग करते देखा जा सकता है। यही कारण है कि सड़कों पर चलने वाली प्रत्येक दूसरी या तीसरी मोटर साइकिल, स्कूटर और कार पर प्रेस लिखा नजर आ जाएगा। यकीन नहीं आता तो अपने शहर की किसी व्यस्त सड़क पर पांच-दस मिनट बाद खड़े होकर देख लें। कम-से-कम मेरठ की सड़कों का तो यही हाल है। ‘प्रेस’ से जुड़ने की लालसा के पीछे का कारण भी जान लीजिए। शहर में वाहनों की चैकिंग चल रही है तो वाहन पर प्रेस लिखा देखकर पुलिस वाला नजरअंदाज कर देता है। मोटर साइकिल पर तीन सवारी बैठाकर ले जाना आपका अधिकार हो जाता है, क्योंकि आप प्रेस से हैं। किसी को ब्लैकमेल करके भारी-भरकम पैसा कमाने का मौका भी हाथ आ सकता है। प्रेस की आड़ में थाने में दलाली भी की जा सकती है। देखा, है ना प्रेस वाला बनने में फायदा ही फायदा। तो आप कब बन रहे हैं, प्रेस वाले?

-सलीम अख्तर सिद्दीकी

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

13,035 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress