प्रधानमंत्री किनके प्रतिनिधि है?

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वीरेन्द्र सिंह परिहार

अभी हाल में सी.बी.आई. और भ्रष्टाचार विरोधी व्यूरों के सम्मेलन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि भ्रष्टाचार के मामलों में ज्यादा प्रचार होने से एक ओर जहां अधिकारियों का मनोबल गिरता है, वहीं दूसरी तरफ अन्र्तराष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि खराब होती है। उन्होने यह भी कहा कि भ्रष्टाचार को लेकर जो इतनी बाते हो रही है, वह नकारात्मकता और निराशा फैलाने वाली है। इसके दो दिन बाद 12 अक्टूबर को प्रधानमंत्री ने सूचना आयुक्तों के वार्षिक सम्मेलन में कहा कि आर.टी.आई.का दुरूपयोग नही होना चाहिए।सूचना के अधिकार और निजता के अधिकार में संतुलन होना चाहिए, क्योकि निजता का अधिकार भी मौलिक अधिकार से जुड़ा है। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष 14 अक्टूबर को भी सूचना आयुक्तों के सम्मेलन में ही प्रधानमंत्री ने आर.टी.आई. अधिनियम को लेकर गंभीरता से समीक्षा करने की जरूरत बताई थी। यह भी कहा था कि आर.टी.आई. के जरिए दी जाने वाली जानकारी से शासन के कार्य करने की प्रक्रिया में बाधा नही उत्पन्न होनी चाहिए। उन्होने यह भी कहा था कि आर.टी.आई. कानून के तहत मिलने वाली छूटों को गंभीरता से देखा जाना चाहिए, क्योकि प्रशासन में अधिनियम के दुरूपयोग को लेकर चिंता है। इससे सार्वजनिक जांच में राय देने से ईमानदार और पूरी जानकारी देने वाले लोक सेवक हतोत्साहित हो सकते है। अब उपरोक्त बातों से यह स्पष्ट है कि यू.पी.ए. सरकार यहाँ तक कि कांग्रेसाध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी आर.टी.आई. कानून लाने का चाहे जितना श्रेय ले, पर भ्रष्ट और घोटालों से भरी व्यवस्था में यह आर.टी.आई. कानून उनके गले की हड्डी बन गया है। इसीलिए केन्द्र सरकार इस कानून को किसी तरह से निष्प्रभावी और निरर्थक बनाना चाहती है। बेहतर होता कि प्रधानमंत्री यह बताते कि आर.टी.आई. कानून से किस तरह निजता के अधिकार का हनन हो रहा है। प्रधानमंत्री ने यह भी कभी नहीं बताया कि आर.टी.आई. के तहत शासन के कार्य करने की प्रक्रिया में कहां बाधा उत्पन्न हुई, अथवा इसका किस तरह से दुरूपयोग हो रहा है। प्रधानमंत्री अथवा उनकी सरकार ने यह भी कभी नही बताया कि इसके चलते ईमानदार अधिकारियों को कहां हतोत्साहित होना पड़ता है?असलियत यह है कि आर.टी.आई. कानून का दुरूपयोग उनके अधिकारी ही कर रहे है, जो निजता या गोपनीयता के नाम पर कोई भी जानकारी देने से मना कर देते है, यहां तक कि यदि किसी भ्रष्ट या घोटालेबाज अधिकारी के विरूद्ध कोई जांच चल रही है या जांच पूरी भी हो चुकी है, तो तृतीय पक्ष से संबंधित या निजी जानकारी बताकर देने से इंकार कर देते है। इसकी वजह यह कि ऐसे प्रकरणों में जानबूझकर जो देरी की जाती है या लीपापोती की जाती है वह सामने आ जाएंगी। कई बार तो किसी अधिकारी या कर्मचारी की संपत्ति की जानकारी भी निजी कहकर देने से इंकार कर दिया जाता है। जबकि देश के नागरिकों को यह पूरी तरह जानने का हक है, कि किसी अधिकारी या कर्मचारी के पास कितनी संपत्ति है,और वह कैसे अर्जित की गई है? क्यांेकि तभी यह पता चल सकता है कि वह वैध तरीके से अर्जित की गई है, या भ्रष्ट तरीकों से प्राप्त की गई हैं। अब जहांँ तक शासन के संदर्भ में कार्य करने की प्रक्रिया में बाधा का सवाल है,या ईमानदार अधिकारियों के हत्सोत्साहित होने का सवाल हे, तो आर.टी.आई के चलते शासन के कार्य करने की प्रक्रिया में बंाधा का सवाल ही नहीं, क्योकि पारदर्शिता और जबाबदेही ही सुशासन का मूल मंत्र है। अलबत्ता इससे लूट में बाधा जरूर उत्पन्न होती है, और हुई भी है, क्योकि इसके चलते कई घोटाले सामने आए है। इसी तरह से इससे ईमानदार अधिकारी नहीं, बल्कि भ्रष्ट अधिकारी जरूर हतोत्साहित होते है। ऐसा लगता है कि ऐसे भ्रष्ट अधिकारियों का संरक्षण ही प्रधानमंत्री की चिंता का विषय है।

अब रहा भ्रष्टाचार की बातों से मनोबल गिरने और देश की छवि खराब होने का! तो यह पूरी तरह निर्विवाद है, कि किसी भी ईमानदार व्यक्ति का मनोबल गिरने का सवाल ही नहीं, बशर्ते उस पर झूठा आरोप न लगाया गया हो। पर बिडम्बना यह है कि मनमोहन सिंह ने किसी भी भ्रष्ट कारनामें या घोटाले को अपनी तरफ से न तो स्वीकार किया और न अपनी तरफ से कोई कार्यवाही ही की। चाहे वह कामनवेल्थ रहा हो, या 2जी स्पेक्ट्रम रहा हो, या कोलगेट घोटाला रहा हो। हद तो यह हुई कि इन्होने सभी घोटालों को औचित्यपूर्ण ठहराने का भी प्रयास किया। उन्हे भ्रष्टाचार रोकने की कोई चिंता नहीं, यदि कोई चिंता है तो भ्रष्टाचार विरोधी अभियान से। आशंका इस बात की भी है कि अभी हाल में जमाई राजा राबर्ट वाड्रा की चमत्कारिक ढ़ंग से बढ़ी हुई संपत्ति को लेकर जो समाचार सामने आए और पूरी कांग्रेस पार्टी औेर सरकार उनके बचाव में स्तरहीन ढ़ंग से खड़ी हो गई, उसके चलते मनमोहन सिंह भी इस तरह की बाते कर कहीं-न-कहीं अपना भी फर्ज अदा कर रहे है। इसी तरह से श्रीमती सोनिया गांधी की विदेश यात्रा एवं बीमारी को लेकर इलाज में खर्च को लेकर आर.टी.आई. के तहत मांगी गई जानकारी को संभवतः मनमोहन सिंह ने निजता पर आक्रमण समझा हो। मनमोहन सिंह को यह पता होना चाहिए, उन्हे पता होगा भी कि शासन का खजाने से यदि कोई राशि खर्च होती है, तो वह सार्वजनिक मामला है, और इसे पूरे देश को जानने का हक है। मनमोहन सिंह क्या यह बताएंगें कि तीन महीनें में भ्रष्ट लोक सेवकों के विरूद्ध अभियोजन चलाने हेतु भ्रष्टाचार निवारक अधिनियम में संशोधन के लिए जो सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था-उस दिशा में क्यों कुछ नही किया गया? प्रधानमंत्री को यह भी बताना चाहिए कि सशक्त लोकपाल एवं सिटीजन चार्टर बनाने की दिशा में समुचित कदम क्यों नही उठाए गए? साथ ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा डाँट खाने के बाद भी विदेशांे में जमा काला-धन लाने के लिए कोई ठोस पहल क्यों नहीं की गई? जबकि इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय एस.आई.टी. भी गठित कर चुका है। मनमोहन सिंह की मजबूरी यह कि वह आमजन के प्रतिनिधि तो है नहीं, कि उनके हित में बोलें।वह तो एक मुख्य कार्यकारी अधिकारी की तरह है, और इस तरह से वह अपने कंपनी के हितों के लिए पैरवी करने और उसी अनुरूप कार्य करने को प्रतिबद्ध है।

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