अनिल अनूप
लगभग 50 वर्ष और उसके आसपास की उम्र वाली पीढ़ी जब 15 से 30-35 वर्ष की थी उस समय को याद करें तो पता चलेगा कि तब बीड़ी सिगरेट तक का सेवन करने की हिम्मत घर परिवार, नजदीकी रिश्तेदारों और बुजुर्गो के सामने होती ही नहीं थी, शराब या किसी दूसरे नशे का सेवन तो दूर की बात थी । होता यह था कि हमउम्र दोस्तों के बीच जब कभी नशे की इन चीजों के सेवन की बात आती थी तो उसके लिए घर से दूर किसी ऐसी जगह की तलाश होती थी जहां किसी जान पहचान के व्यक्ति के आने की संभावना कतई न हो।
इस तरह की जगह मिलना बहुत मुशकिल होता था और आमतौर से इतने झंझट होते थे कि नशे का शौक करने का उत्साह ही खत्म होने लगता था। इस तरह युवावस्था बची रहती थी और प्रौढ़ या अधेड़ होने पर किन्हीं खास मौकों पर थोड़ा बहुत शगल हो जाया करता था।
आज स्थिति क्या है? हालत यह है कि ऐसे परिवारों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जिनमें मातापिता या नजदीकी रिश्तेदार जब किसी नशीली वस्तु का सेवन कर रहे होते हैं तो उसमें परिवार के उन सदस्यों को जिनकी उम्र 12-15 से लेकर 20-25 तक की हो सकती है, अपने साथ शामिल कर लेते हैं। उनका तर्क होता है कि हमारे बच्चे हमारे सामने ही थोड़ा बहुत शौक कर लें तो हमें भी उनके बारे में पता रहेगा और वे बाहर नशा करने नहीं जाएगें। अब होता यह है कि परिवार में एक ओर बड़ी उम्र के और दूसरी ओर कम उम्र के लोग यह नशेबाजी करते हैं। अब आजकल की पीढ़ी को पहले से ही बहुत कुछ पता होता है तो वह इस छूट की आड़ में कई तरह के नशे की चीजों का इस्तेमाल करते हैं जिनमें शराब, भांग, चरस, गांजा, अफीम, कोकीन, हेरोईन, स्मैक और भी न जाने क्या क्या होता है।
इस युवा पीढ़ी द्वारा इस तरह की पार्टियों को स्मोकअप जैसे नाम दे दिये गये हैं जिनमें वे निरकुंश होकर एक ऐसी दुनिया की तरफ बढ़ना शुरू कर देते हैं जहां अन्धकार, बर्बादी, घिनौनापन और पकड़े जाने पर सजा, जुर्माना सभी कुछ है।
नशे का कारोबार आज किसी एक प्रदेश तक सीमित न रहकर थोड़ी बहुत मात्रा में पूरे देश में फैल चुका है। इसका सेवन करने के नये नये तरीके ईजाद हो रहे हैं। यहां तक कि ई सिगरेट भी उपलब्ध है। यह कारोबार इतना व्यापक है कि उसकी अपनी एक समानांतर अर्थव्यवस्था है। करोड़ों अरबों रूपया इसमें लगा है और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके कारोबारी उन देशों में अपने ठिकाने बना रहे हैं जहां उन्हें इस व्यापार के फलने फूलने मतलब इसके सेवन के लिए लोगों को लालायित करने की थोड़ी सी भी संभावना नजर आती हैl
यह कहना काफी हद तक ठीक ही है कि पंजाब पिछले कुछ सालों में नशीले पदार्थों का हब बनकर रह गया है। इसका सबसे बड़ा कारण पंजाब में ईरान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान से अफीम तथा दूसरे नशीले पदार्थों का पंजाब बार्डर से आसानी से होने वाली स्मगलिंग है। इस रास्ते को गोल्डन क्रिसेंट कहते हैं। पठानकोट हमले के बाद सीमा पर ज्यादा निगरानी की वजह से अब राजस्थान होकर पंजाब पहुंचा जाता है। हेरोइन, अफीम की भूसी और ड्रग्स पंजाब में भारी मात्रा में सप्लाई की जाती है। हाल ही में पिछले साल पंजाब में बीएसएफ के जवानों ने सात तस्करों को मारकर 344 किग्रा0 हेरोइन पकड़ी थी।
आज ऐसे बहुत से परिवार मिल जाएगें जिनमें शादी केवल इस कारण से नहीं होती है कि परिवार में नशे की आदत से ग्रस्त कोई सदस्य है। ऐसे परिवारों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है जिंनमें परिवार के किसी व्यक्ति की नशे की लत ने जमीन जायदाद, खेत खलिहान, रूपया पैसा, जेवर सब कुछ समाप्त हो जाने के हालात पैदा हो गये हैं।
हमारे देश में नशे के गैर कानूनी व्यापार को रोकने के लिए हालांकि काफी कड़े कानून हैं और जब तब इसके कारोबारियों के ठिकानों पर छापे आदि भी पड़ते है लेकिन ऐसे उदाहरण बहुत कम हैं जिनमें सजा और जुर्माने के रूप में उसका समापन हुआ हो। यह एक सच है कि जब तक पुलिस, प्रशासन और राजनीतिज्ञों का गठजोड़ नहीं होगा तब तक नशे का कारोबार पनपना तो दूर उसकी शुरूआत भी नहीं हो सकती।
नशीली वस्तुओं की खेती और उनके उत्पादन पर निगरानी रखने के लिए जो कानून हे वह इतने लचीले हैं कि उनकी गिरफ्त से बच निकलना बहुत आसान है। अब चूंकि नशीले पदार्थों का इस्तेमाल जीवन रक्षक और दर्द निवारक औषधियों के रूप में भी होता है तो इनका उत्पादन बंद भी नहीं किया जा सकता लेकिन कोई ऐसी कठोर नियमावली तो बन ही सकती है जिससे कानून का दुरूपयोग न हो सके।
आज बड़े और छोटे शहरों, जहां कालेज और विश्वविधालय हैं, धन बल से समृद्ध परिवारों के लड़के और लड़कियों का एक ऐसा वर्ग मिल जाएगा जो नशे का आदी हो चुका है। इनके पास पैसे और साधनों की कोई कभी नहीं होती और वे विद्यार्थी जीवन का भरपूर अनुचित फायदा उठाते हैं।
अब हम आते हैं इस बात पर कि आखिर यह नशा है क्या और क्यों लोगों को इसकी आदत पड़ जाती है। नशा और कुछ नहीं, केवल हमारी मानसिक स्थिति को बदलने की ताकत रखने वाला एक द्रव्य है जिसके सेवन से हमें खुशी, ताजगी और जोश का अहसास होने लगता है। हमें नींद सी आने लगती है जिसे सुरूर कहा जाता है और अगर उसकी मात्रा ज्यादा हो गयी तो यह हैंग ओवर के रूप में आने वाले दिनों में भी शरीर को जकड़े रहता है। शुरू में लगता है कि थकान मिट रही है जो वास्तव में आगे चलकर थकावट का स्थाई कारण बनने की प्रक्र्रिया का ही हिस्सा होता है। यदि नशा करने की सामग्री न मिले तो उसका असर शरीर के काम करने पर पड़ने लगता है जिसे हम नशे का आदी हो जाना कहते हैं। और इसका शिकंजा इस तरह कसता जाता है कि एक समय ऐसा आता है जब उसके बिना रहना संभव नहीं रहता।
जब ऐसी हालत हो जाती है तो व्यक्ति नशे की पूर्ति के लिए वह सब काम करने लगता है जो असामाजिक कहे जाते हैं इसमें चोरी, स्मगलिंग, सेक्स उत्पीड़न सभी कुछ आता है। व्यक्ति धीरे धीरे पतन के रास्ते मृत्यु तक पहुंचता है और इसके लिए कई बार आत्महत्या का भी रास्ता अपनाता है।
नशे से छुटकारा पाने के लिए नशा मुक्ति केन्द्रों के रूप में लगभग 200 संस्थाएं कार्य कर रही हैं। नशा मुक्ति केन्द्रों में आमतौर से दो तरह के प्रोग्राम चलाए जाते हैं ; अल्कोहलिक्स एनोनीमस और नारकोटिक्स एनोनीमस जिसे 12 स्टेप प्रोग्राम भी कहते हैं। इसमें प्रार्थना, योग कक्षाएं, पुस्तक पढ़ना, आपस में बैठकर किसी मुद्दे पर बातचीत और विचार विमर्श के लिए की जाने वाली मीटिंग शामिल है। मीटिंग भी दो तरह की होती है ओपन और क्लोज, ओपन में कोई भी शामिल हो सकता है जबकि क्लोज में केवल नशे से पीड़ित लोग ही शामिल होते हैं, सभी का 90 दिनों तक मीटिंग में शामिल होना अनिवार्य होता है।
पहले कुछ दिनों तक मरीज को डिटाक्स रूम यानी एक खाली कमरे में बंद रखा जाता है। जब उसका व्यवहार कुछ बदलता है तब उसे बाकी मरीजो के साथ रखा जाता है। मरीजों को कोई खास किस्म की दवा नहीं दी जाती लेकिन दर्द होने पर केवल पेनकिलर दिया जाता है। यह प्रोग्राम 6 महीने का होता है और इसका परिणाम 3 महीने में जाकर दिखना शुरू होता है। नौयड़ा स्थित लाइफ केयर सेंटर के संस्थापक अनिल कुमार के मुताबिक अब तक उनके सेंटर में 14 हजार मरीज आ चुके हैं जिसमें ठीक होकर जाने 78 प्रतिशत है।
यहां ज्यादातर मरीज शराब, अफीम और इंजेक्शन से नशा करने के आदी है। कुछ तनाव में नशा करते है तो कुछ शौकिया। इस सेंटर में एक मरीज से 10 हजार रूपये हर महीने लिए जाते हैं। बड़े सेंटरों में इसकी फीस 1 लाख से अधिक है। यदि उपचार ठीक से नहीं होता है तो कोर्स करने के 6 से 11 महीने के अंदर ही वे फिर से नशे के शिकार होने पर वापस आ जाते हैं।
आंकड़ों के मुताबिक 25426 लोगो ने पिछले दस वर्षों में नशे की लत से छुटकारा न पाने के कारण आत्महत्या की है। विडम्बना यह है कि नशे के कारण मृत्यु हो जाने वाली संख्या इससे कई गुना है। आत्महत्या के ज्यादातर मामलों में उसकी बजह नशे की बजाए कुछ और लिखना आम बात है।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अपने कार्यक्रम मन की बात में इस का जिक्र करते हुए सोशल मीडिया से अनुरोध किया है कि वे एक हैशटैग चलाये। ड्रग्स फ्री इंडिया। जरूरी है कि परिवार में लड़का या लड़की अकेले रहना चाहते हों, गुमसुम रहने लगें, बिना बात क्रोधित हो जाए, जरा सी बात पर मारपीट करने लगे या अपने ही शरीर को नुकसान पहुंचाने लगे तो घर वालों को समझ लेनाचाहिए कि कुछ तो गड़बड़ है। इसी के साथ नशीले पदार्थो से युवा पीढ़ी को दूर रखना है तो उन स्थानों पर कड़ी निगरानी रखनी होगी जहां नशा करने की अपार सुविधाएं है। स्कूल, कालेज तथा शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले विद्यार्थी यदि नशे की आदत का शिकार हो जाते हैं तो उसकी जिम्मेदारी से उसके प्रबंधक बच नहीं सकते। इसी तरह किसी पब, होटल में मनोरंजन की आड़ में नशीले पदार्थ परोसें जाते हैं तो उन जगहों के मालिकों पर कानूनी कार्रवाई सुनिश्चित की जाए।
वाह रे पंजाब …क्या तरक्की का कमाल दिखा रहा है तू विश्व पटल पर अपनी….
प्रवक्ता और अनिल अनूप जी दोनों को कोटिश: धन्यवाद