–अशोक “प्रवृद्ध”
झारखण्ड और छतीसगढ़ की सीमावर्ती जिलों के वनों, जंगलों में वर्षा ऋतु के प्रारम्भिक काल में स्वतः ही उगने, निकलने वाली पुटू नामक मशरूम के इस वर्ष कमोत्पति अर्थात कम उपज के कारण लोग इसके प्राकृतिक, असली और बेहतरीन स्वाद से वंचित होकर रह गए हैं। लोग मजबूरी में घरों में मशरूम की खेती से उत्पादित पुटू के व्यंजनों में उस जानी- पहचानी, सदियों से आनुवंशिकी में बसी पुटू के स्मरणीय स्वाद को ढूँढने को विवश हैं। विगत वर्षों में पुटू को खोज व उसे पाकर जमीन से खोदकर निकाल, संग्रहण करने के लिए लोग प्रातः काल ब्रह्म बेला में ही घर से पैदल अथवा अपने वाहनों से दूर- दूर के जंगलों तक निकल पड़ते थे, और सुबह से शाम तक इस कार्य में तल्लीन रहते थे, लेकिन इस वर्ष पुटू अर्थात रूगड़ा की अनुपलब्धता के कारण जंगलों में इसको ढूंढने वाले लोग भी विगत वर्षों की अपेक्षा कम ही दिखाई देते हैं, बल्कि दिखलाई ही नहीं दे रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि वर्षा ऋतु में जंगलों में कई प्रकार के मशरूम उगते हैं। इन मशरूमों का उपयोग खाने में किया जाता है और ये अपने अनोखे स्वाद और महत्वपूर्ण खनिज व पोषक तत्वों के लिए जाने जाते हैं। झारखण्ड और छतीसगढ़ की सीमाओं के जंगलों में वर्षा ऋतु के आरंभ में वनों में, जंगलों में उगने वाले अनेक मशरूमों में से एक ऐसा ही मशरूम है- पुटू, जो वर्षा ऋतु में जंगलों में उगने वाले कई प्रकार के अन्य मशरूमों से अनेक रूपों में भिन्न है। खाने के लिए उपयोग में लाया जाने वाला यह मशरूम अपने अनोखे स्वाद और पोषक तत्वों के लिए लोकप्रिय हैं । झारखण्ड के जंगलों में पाया जाने वाला यह वन्य मशरूम पुटू अथवा रुगड़ा एक मौसमी मशरूम है, जो वर्षा ऋतु में उगता है। रुगड़ा या पुटू का उपयोग स्थानीय व्यंजनों में किया जाता है और यह अपने अनोखे स्वाद और पोषक तत्वों के लिए जाना जाता है। यह चावल और रोटी के साथ ही विभिन्न प्रकार के स्थानीय व्यंजनों के साथ चाव से खाया जाता है। पुटू को स्थानीय भाषा में रुगड़ा भी कहा जाता है। कुछ क्षेत्रों में इसे गुच्छी, मोरछी भी कहा जाता है। क्षेत्रीय भाषा में इसके विभिन्न नाम हैं। झारखण्ड प्रदेश और देश के अन्य क्षेत्रों में वन्य मशरूमों के नाम विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में अलग-अलग हैं। नागपुरी, संथाली, हो, मुंडारी, कुड़ुख आदि झारखण्ड के स्थानीय भाषाओं में पुटू मशरूम के कई नाम हैं। इसे सादरी व नागपुरी में पुटू, रुगड़ा, गुच्छी या गुच्ची, संथाली, मुंडारी व हो भाषा में गुच्ची या गुचुम, कुड़ुख में गुच्ची या खुखुरू (खुखरी) कहा जाता है। पुटू के इन नामों में भिन्नता हो सकती है और विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग नामों का उपयोग किया जा सकता है।
झारखण्ड के जंगलों में पाया जाने वाला यह वन्य मशरूम पुटू अथवा रुगड़ा एक मौसमी मशरूम है जो वर्षा ऋतु में उगता है। वर्षा ऋतु के शुरुआती काल में जंगलों में स्वतः ही उगने वाली इस मशरूम की अनेक विशेषताएं हैं। पुटू का आकार गोलाकार या अंडाकार होता है। इसका रंग सफेद या हल्का भूरा होता है। यह उगने के अंतिम दौर में काला रंग का भी हो जाता है। पुटू का स्वाद अनोखा और स्वादिष्ट होता है। यह एक मौसमी मशरूम है जो वर्षा ऋतु के अतिरक्त अन्य समय में नहीं उगता है। झारखण्ड के आदिवासी- गैर आदिवासी सदान समुदायों में यह मशरूम एक महत्वपूर्ण खाद्य स्रोत है। इसका उपयोग सब्जी, सूप, और सलाद आदि विभिन्न प्रकार के व्यंजनों में किया जा सकता है। पुटू का स्वाद अनोखा और स्वादिष्ट होता है, जो इसे स्थानीय व्यंजनों में एक लोकप्रिय घटक बनाता है। पुटू एक पौष्टिक मशरूम है, जिसमें शरीर के लिए आवश्यक प्रोटीन, पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद फाइबर, विटमिन बी व डी, पोटैशियम, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम और कॉपर जैसे महत्वपूर्ण खनिज व पोषक तत्व होते हैं। पुटू में विटामिन और खनिज होते हैं जो प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करते हैं। कुछ अनुसंधानों के अनुसार पुटू में उपलब्ध एंटीऑक्सीडेंट गुण कैंसर से बचाव में मदद करते हैं। शरीर को ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाते हैं। इन पोषक तत्वों और खनिजों के कारण रुगड़ा एक स्वस्थ और पौष्टिक खाद्य विकल्प हो सकता है। पुटू का स्वाद अनोखा और स्वादिष्ट होता है, जो इसे स्थानीय व्यंजनों में एक लोकप्रिय घटक बनाता है। यह सब्जी व सलाद के रूप में एक स्वादिष्ट और पौष्टिक तथा पेय पदार्थ के रूप में एक आरामदायक और पौष्टिक पेय पदार्थ अर्थात सूप का बेहतर विकल्प हो सकता है।
पुटू अर्थात रूगड़ा के स्वाद के शौकीनों व स्थानीय लोगों के अनुसार इस वर्ष मौसम की अनियमितता, पर्यावरण की परिवर्तनीयता इसके कम उगने का कारण हो सकती है। वर्ष भर समय- समय पर वर्षा होते रहने के कारण क्षेत्र में इस वर्ष गर्मी अपने प्रचंड स्वरूप को कभी दिखला न सकी। सूर्यदेव पृथ्वी को, जंगली धरती को मन भर तपा भी न सके और वर्षा ऋतु की शुरुआत हो गई। वर्षा रानी जमकर बरसने लगी। घर- आंगन, खेत- खलिहान, तालाब- पोखर, जंगल -पहाड़, नदी-नाले सभी जल से तर बतर हो गए। जब वह बरसी तो लगातार बरसती ही रह गई। वह आज तक भी रूकने का नाम ही नहीं ले रही है। इससे डाड़ व उच्चे जमीन की दलहन, तेलहन, व श्री के नाम से वर्तमान में लोकप्रिय मोटे अनाज की खेती- किसानी भी प्रभावित हो गई। कही- कहीं तो यह कृषि कार्य आज तक रुकी पड़ी है। और खरीफ धान के रोपाई करने का समय भी आ चला है। लेकिन वर्षा रानी के इस अनवरत वर्षण से, प्रकृति के इस चलन से क्षेत्र में, क्षेत्र के जंगलों में तापमान और आर्द्रता की स्थिति में प्राकृतिक बदलाव अवश्यम्भावी था, जो हुआ। जलवायु परिवर्तन के परिणाम स्वरूप जंगलों में तापमान और आर्द्रता की स्थिति में बदलाव जैसे कारणों से पुटू जैसी प्रजातियों की उत्पत्ति प्रभावित हुई। झारखण्ड के गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, रांची आदि जिलों में मानसून की अचानक और तीव्र वर्षा के कारण पुटू मशरूम के उगने के लिए उपयुक्त वातावरण नहीं बन सका, जिससे इसकी उत्पन्न होने की प्रक्रिया बाधित हुई। फलतः पुटू की उत्पत्ति नहीं हुई अथवा बहुत ही कम हुई। पुटू जैसे मशरूम के उगने के लिए विशिष्ट पर्यावरणीय परिस्थितियों की आवश्यकता होती है, जैसे कि उचित तापमान, आर्द्रता और मिट्टी की स्थिति। पुटू वर्षा ऋतु में उगता है, जब जंगलों में वर्षा होती है और मिट्टी में आर्द्रता बढ़ जाती है। लेकिन वर्षा की तीव्रता और आवृत्ति अधिकाधिक होने से पुटू जैसी मशरूम के उगने की प्रक्रिया प्रभावित हुई। ग्रीष्म काल में जंगलों में लगने अथवा लगाई जाने वाली आग से वर्षा काल में स्वतः ही उग आने वाली वन्य जन्माओं, बीजों, पौधों, मरुशमोपज संसाधनों के वनाग्नि के भेंट चढ़ जाने के कारण जंगलों में पुटू, रुगडा अथवा अन्यान्य वनोपज सम्बन्धित बीजों, संसाधनों की अनुपलब्धता, अन्य प्रजातियों की अधिकता, जंगल की स्थिति में बदलाव आदि कई अन्य कारण भी पुटू जैसे जंगली मशरूम की उत्पत्ति को प्रभावित करने का कारण बनी। इसी कारण झारखण्ड, छतीसगढ़ की सीमावर्ती जिलों के वनों में रुगड़ा जैसी प्रजातियों की उत्पत्ति प्रभावित हुई, और लोग इसके चिर- परिचित स्वाद से वंचित हो रहे हैं। राजनीतिकों का कहना है कि आदिवासी हितों की रक्षा करने के उद्देश्य से प्रस्तावित झारखण्ड में पेसा कानून की राज्य में वास्तविक परिस्थिति तथा अन्य सरकारी कानूनों के कारण जंगलों के उपयोग और प्रबंधन में बदलाव के कारण भी रुगड़ा की उत्पत्ति पर असर पड़ा। वन के प्रति गलत व स्वार्थपरक सोच, जंगलों के उपयोग और प्रबंधन जैसी कारकों का भी रुगड़ा की उत्पत्ति पर सीधा प्रभाव स्पष्ट है। पुटू का आर्थिक महत्व भी है, क्योंकि इसकी बिक्री से स्थानीय लोगों को आय होती है। पुटू की बिक्री से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत किया जा सकता है।
बहरहाल, झारखण्ड में इस वर्ष रुगड़ा या पुटू की उत्पत्ति नहीं के बराबर होने के कई कारण हो सकते हैं। लेकिन पुटू जैसी जंगली मशरूम की खेती करना भी मुश्किल है। इसकी खेती के लिए जंगल की मिट्टी और वर्षा ऋतु की आर्द्रता में सम्बन्ध जैसी विशेष परिस्थितियों की आवश्यकता होती है, जिन्हें कृत्रिम रूप से निर्माण कर पाना आसान नहीं। यही कारण है कि लोग वन्य पुटू का स्वाद घरों में उत्पादित पुटू में नहीं ढूंढ पा रहे हैं और जंगलों की और टकटकी लगाये देखने को विवश हैं। पुटू का संरक्षण और प्रबंधन एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, क्योंकि इसकी उत्पत्ति जंगलों की विशिष्ट परिस्थितियों पर निर्भर करती है। जंगलों के कटाव और प्रदूषण के कारण पुटू की उत्पत्ति प्रभावित हो सकती है, जिससे इसकी उपलब्धता कम हो सकती है। पुटू के संरक्षण और प्रबंधन के लिए स्थानीय लोगों और सरकार के बीच सहयोग की आवश्यकता है।