कहकशां नहीं, कहर है बारिश का: प्रकृति का उग्र चेहरा

मानव की इच्छाओं का कोई अंत नहीं है और आज मानव अपनी इच्छाओं, लालच और सुविधाओं की अंधी दौड़ में प्रकृति के संतुलन को लगातार बिगाड़ता चला जा रहा है और इसका परिणाम मानव को किसी न किसी रूप में भुगतना पड़ रहा है। वृक्षों की अंधाधुंध कटाई, अनियंत्रित विकास कार्य, खनिजों व जल का अंधाधुंध दोहन,अधिक ऊर्जा का उपयोग, जीवाश्म ईंधनों का दहन, वन्यजीवों का विनाश, अनियंत्रित मानवीय गतिविधियां आदि कुछ कारण हैं,जो प्रकृति का विनाश कर रहे हैं।प्रकृति से खिलवाड़ के दुष्परिणाम यह हो रहें हैं इससे धरती पर विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि, स्वास्थ्य समस्याएँ जैसे अस्थमा, एलर्जी, कैंसर आदि, जल संकट और खाद्य संकट, मानसिक तनाव और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट के साथ ही साथ जैव विविधता का नुकसान हो रहा है। यदि यूं ही सब चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं, जब मानव कहीं का नहीं रहेगा।इस साल 5 अगस्त 2025 को उत्तरकाशी के धराली और सुक्खी टॉप में बादल फटने की घटना हुई।बादल फटने के कारण यहां मूसलधार बारिश हुई, जिससे भारी बाढ़ आई और इस त्रासदी में कम से कम 5 लोगों की मृत्यु, 50 से अधिक लोग लापता, 40-50 घर और 50 होटल बह गए।इसी प्रकार से थराली, चमोली में भी 23 अगस्त 2025 को रात के समय बादल फटने से मूसलधार बारिश हुई, जिससे मलबे के साथ बाढ़ आई, जिसमें एक व्यक्ति की मृत्यु, एक व्यक्ति लापता तथा कई घर, दुकानें और सड़कें मलबे से प्रभावित हुईं। इसके बाद देहरादून के सहस्त्रधारा और मालदेवता में 16 सितंबर 2025 को बादल फटा। जानकारी के अनुसार वहां रातभर की मूसलधार बारिश के कारण बादल फटा, जिससे बाढ़ आई और इससे कम से कम 4 लोगों की मृत्यु, 16 लोग लापता, कई दुकानें और वाहन बह गए।यह भी खबरें आईं हैं कि टोंस नदी में बहने से 15 मजदूरों की मौत हो गई।इसी दिन हरिद्वार, टिहरी और नैनीताल में भी मूसलधार बारिश के कारण नदियाँ उफान पर आ गईं, और कई स्थानों पर भूस्खलन और जलभराव हुआ, जिससे कई सड़कें अवरुद्ध हो गई, फसलों और घरों को नुकसान पहुंचा, तथा कई लोग फंस गए। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि हिमालयी क्षेत्र में बार-बार बादल फटने की घटनाएं हो रहीं हैं।यह दर्शाता है कि आज मानसून की प्रकृति में पहले की तुलना में काफी बदलाव आ चुके हैं और यह कहीं न कहीं जलवायु परिवर्तन का प्रभाव है।इस साल हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, पंजाब समेत देश के विभिन्न राज्यों में प्रकृति का प्रकोप देखने को मिला और यह अचानक से हुई घटनाएं नहीं हैं, अपितु कहीं न कहीं मानव को प्रकृति का एक संकेत है कि यदि हम अभी भी नहीं संभले तो आने वाले समय में हमें प्रकृति के और भी रौद्र रूप का सामना करना पड़ेगा। दरअसल, पहाड़ी क्षेत्रों में पहाड़ों से टकराकर हवा ऊपर उठती है। इससे नमी तेजी से संघनित होती है और छोटे क्षेत्र में अधिक पानी जमा हो जाता है। यही बादल फटने का बड़ा कारण है। अत्यधिक नमी और गर्म हवा का मिलना, हवा का संतुलन बिगड़ना, जलवायु परिवर्तन तथा वनों की कटाई और निर्माण बादल फटने के अन्य कारण हैं। हाल ही में देहरादून में अतिवृष्टि से तमसा, कारलीगाड़, टोंस व सहस्रधारा में जलस्तर बढ़ने से आसपास के घरों और दुकानों इत्यादि में एकाएक पानी तर गया। मीडिया में उपलब्ध जानकारी के अनुसार ऋषिकेश की चंद्रभागा नदी भी उफान पर है। यहां यह उल्लेखनीय है कि इस साल देहरादून में सितंबर में हुई बारिश ने बीते कई दशकों का रिकॉर्ड तोड़ दिया है, और इस बार पूरे उत्तराखंड में आसमान से आफत बरसाने में मानसून ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। पाठकों को बताता चलूं कि इस साल यानी कि 2025 में भारत में मानसून सीजन (जून से सितंबर) में सामान्य से अधिक बारिश हुई है, जो दीर्घकालिक औसत का लगभग 105% रही है। हालांकि,बारिश की मात्रा राज्य दर राज्य भिन्न रही है, लेकिन पहाड़ी राज्यों में भारी बारिश ने कहर बरपाया है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में प्री-मॉनसून अवधि (1 मार्च से 31 मई) में 185.8 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जो सामान्य से 42% अधिक थी। जानकारी के अनुसार जून 2025 महीने में 180 मिमी वर्षा हुई, जो सामान्य 165.3 मिमी से 8.89% अधिक थी।इसी प्रकार से अगस्त 2025 के दौरान दिल्ली में 400.1 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जो सामान्य 233.1 मिमी से 72% अधिक थी। पंजाब और हरियाणा का हाल किसी से छिपा नहीं हुआ है कि वहां पर किस कदर बारिश ने कहर बरपाया है। राजस्थान भी भारी बारिश का शिकार बना। आंकड़े बताते हैं कि 1 जून – 14 सितंबर 2025 तक पंजाब में 617.1 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जो सामान्य 409.7 मिमी से 51% अधिक है। इसी अवधि में हरियाणा में 145% अधिक वर्षा हुई, जो सामान्य 409.7 मिमी से अधिक है।राजस्थान में इस अवधि में 436.7 मिमी वर्षा दर्ज की गई, जो सामान्य 435.6 मिमी से अधिक है। सच तो यह है कि 2025 में भारत में बारिश की अत्यधिक घटनाएँ मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन, मानसून की अनियमितता, और अन्य मौसमीय कारकों के संयोजन के कारण हुईं। विशेषकर पंजाब, हरियाणा, और राजस्थान में यह स्थिति अधिक गंभीर रही, जिससे व्यापक बाढ़, फसल क्षति, और जनजीवन प्रभावित हुआ। मैदानी क्षेत्र तो मैदानी क्षेत्र, पहाड़ों को बारिश ने बुरी तरह से प्रभावित किया। दरअसल, हिमालयी क्षेत्र की भौगोलिक बनावट और नाजुक पारिस्थितिकीय तंत्र इस क्षेत्र को प्राकृतिक आपदाओं के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाते हैं। मौसम विभाग ने हाल फिलहाल उत्तराखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, पूर्वोत्तर राज्यों, कर्नाटक से लेकर तमिलनाडु तक भारी बारिश के दौर के जारी रहने की संभावनाएं जताई हैं। बहरहाल, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि बादल फटने की घटनाएं भू-स्खलन और बाढ़ का कारण बनती हैं और साथ ही, स्थानीय समुदायों, बुनियादी ढांचे और आजीविका को भी भारी नुकसान पहुंचाती हैं। आज प्रकृति में निरंतर बदलाव आ रहें हैं और इसके लिए कहीं न कहीं मनुष्य और उसकी गतिविधियां जिम्मेदार हैं। अतः जरूरत इस बात की है कि हम प्रकृति का सम्मान करें,उसकी रक्षा व संरक्षण करें। इसके लिए हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे और जंगलों की रक्षा करनी होगी।पानी और ऊर्जा का सावधानी से उपयोग करना होगा। प्रदूषण कम करने के लिए पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली को अपनाना होगा। प्लास्टिक का कम से कम उपयोग करना होगा और प्लास्टिक के विकल्प तलाशने होंगे।जैव विविधता की रक्षा में सहयोग करना होगा। इतना ही नहीं, सबसे बड़ी बात यह है कि हमें जलवायु परिवर्तन पर जागरूकता फैलानी होगी। वास्तव में  उत्तराखंड, हिमाचल इत्यादि राज्यों में जो दृश्य हाल के दिनों में दिख रहे हैं, वे एक चेतावनी हैं कि हमारी नीतियां और तैयारियां, दोनों ही इस खतरे के सामने अपर्याप्त हैं। इस वर्ष समय से पहले आए मानसून ने हिमालय से सटे राज्यों के अलावा पंजाब जैसे मैदानी क्षेत्रों और देश की राजधानी समेत आसपास के क्षेत्रों को भी नहीं बख्शा। लिहाजा इन आपदाओं से निपटने के लिए तात्कालिक और दीर्घकालिक उपायों की आवश्यकता है। इतना ही नहीं, हमें मौसम पूर्वानुमान और प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों को भी अधिक मजबूत बनाने की दिशा में काम करने की आवश्यकता है। आपदा प्रबंधन और प्रभावित व्यक्तियों के पुनर्वास पर भी हमें ध्यान देना होगा।इतना ही नहीं, स्थानीय जनता को मौसम विभाग की भविष्यवाणी और सूचनाओं के प्रति जागरूक बनाने के लिए बहुस्तरीय प्रयास किए जा सकते हैं। मौसम विभाग से प्राप्त जानकारी को सरल भाषा में समझाकर साझा किया जाए, ताकि आमजन सतर्क हो सके। साथ ही साथ गलत सूचनाओं को तुरंत खंडित करने के लिए प्रशासन और मीडिया के बीच समन्वय स्थापित होना चाहिए। पंचायत, नगर निगम, स्वयंसेवी संगठन, धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों को जागरूकता अभियान में शामिल किया जाना चाहिए। हिमालयी क्षेत्र में निर्माण गतिविधियों पर भी स्थानीय प्रशासन और लोगों को अपनी नज़र रखनी होगी, क्यों कि अवैध निर्माण के कारण अनेक प्रकार की दिक्कतों और परेशानियों का सामना स्थानीय जनता को करना पड़ता है।ताजा आपदा हमें यह याद दिलाती है कि प्रकृति के साथ खिलवाड़ की कीमत बहुत भारी हो सकती है। हमें यह चाहिए कि हम प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करें और प्रकृति के नियमों का सम्मान करें। हमें यह चाहिए कि हम विभिन्न प्राकृतिक संसाधनों काआवश्यकता अनुसार उपयोग करें, न कि असीमित दोहन।वन, जल, मिट्टी, हवा, पशु-पक्षी सबकी रक्षा करना हमारा नैतिक कर्तव्य और जिम्मेदारी है।विकास करते समय हम पर्यावरणीय संतुलन का ध्यान रखें और अपनी जीवनशैली को प्रकृति अनुकूल बनाना सीखें, तभी वास्तव में हम प्रकृति के रौद्र रूप से बच सकते हैं।

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