तनवीर जाफ़री
यदि हम पीछे मुड़कर राज ठाकरे के राजनैतिक महत्वाकांक्षा भरे जीवन पर एक नज़र डालेंगे तो यही पायेंगे कि बाल ठाकरे की विरासत के रूप में शिव सेना की कमान न मिल पाने के विरोध में ही 9 मार्च 2006 को कथित रूप से हिंदुत्व तथा भूमिपुत्र के सिद्धान्तों पर आधारित महाराष्ट्र नव निर्माण सेना (मनसे) महाराष्ट्र के एक क्षेत्रीय राजनैतिक दल के रूप में वजूद में आई। यह भी कहा जाता है कि उद्धव ठाकरे के साथ मतभेद तथा राज्य में चुनाव में टिकट वितरण जैसे अहम फ़ैसलों में राज ठाकरे की अवहेलना के चलते भी मनसे गठित की गयी। परन्तु हक़ीक़त तो यह है कि यदि बाल ठाकरे अपनी राजनैतिक विरासत अपने पुत्र उद्धव ठाकरे को सौंपने के बजाये भतीजे राज ठाकरे को सौंप देते तो यक़ीनन मनसे वजूद में ही न आती। बहरहाल मनसे ने राज ठाकरे के नेतृत्व में बाल ठाकरे तर्ज़ की आक्रामक राजनीति करनी शुरू की। शिवसेना को कमज़ोर करने की कोशिश करते हुए बी एम सी,पुणे नगर निगम,ठाणे तथा नासिक नगर निगम जैसे महत्वपूर्ण स्थानों पर अपने प्रतिनिधि निर्वाचित कराये। इतना ही नहीं बल्कि 2009 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में मनसे ने 13 विधानसभा सीटें भी जीतीं । इसके अलावा 24 से अधिक स्थानों पर मनसे दूसरे स्थान पर भी रही।
परन्तु अब सीटें जीतने के लिहाज़ से धीरे धीरे मनसे का राजनैतिक जनाधार लगभग समाप्त सा हो गया है। इसका मुख्य कारण यह है कि जो मनसे हिंदुत्व का ध्वजवाहक बनना चाहती थी उसी ने 2008 में उत्तर भारतीयों विशेषकर उत्तर प्रदेश,झारखण्ड,मध्य प्रदेश और बिहारी प्रवासियों के विरुद्ध खुले आम हिंसा शुरू कर दी। मनसे कार्यकर्ताओं ने महाराष्ट्र के विभिन्न भागों में उत्तर भारतीय दुकानदारों और विक्रेताओं पर हमला किया। कई जगह सरकारी सम्पत्ति नष्ट कर दी। छठ जैसे उत्तर भारतीयों के प्रमुख त्यौहार का विरोध किया जाने लगा। इस घटना पर लोकसभा में भी काफ़ी हंगामा हुआ था। इसी तरह 9 नवम्बर 2009 को समाजवादी पार्टी के विधायक अबू आज़मी को मनसे विधायकों द्वारा उन्हें हिंदी में शपथ लेने से रोका गया। और उनसे सदन में मार पीट की गयी। महाराष्ट्र विधान सभा अध्यक्ष ने इस घटना में शामिल मनसे के चार विधायकों को चार वर्ष के लिए निलम्बित कर दिया गया था । मुम्बई और नागपुर में विधान सभा बैठक के दौरान उनके प्रवेश पर भी रोक लगा दी गई थी । अभी पिछले दिनों पूर्व महाराष्ट्र में मनसे द्वारा खड़े किये गये अज़ान-लाउडस्पीकर-हनुमान चालीसा विवाद के मध्य मनसे प्रमुख राज ठाकरे को कथित तौर पर कोई धमकी भरा पत्र मिला। इस पत्र के मिलने के बाद एक मनसे नेता ने कहा कि राज ठाकरे को एक धमकी भरा उर्दू में लिखा गया पत्र मिला है, उनकी जान को ख़तरा है। इस नेता ने चेतावनी दी है कि अगर ठाकरे को कुछ हुआ तो 'वे महाराष्ट्र को जला देंगे'। स्वयं राज ठाकरे की राजनीति का अंदाज़ प्रायः आक्रामक व तल्ख़ी भरा ही रहता है। वे कई बार अपने साक्षात्कार के दौरान आपे से बाहर और वरिष्ठ पत्रकारों के प्रति अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते दिखाई देते हैं।
अब जबसे शिवसेना ने भाजपा से अपना पुराना नाता तोड़ कांग्रेस व राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से मिलकर सरकार गठित की है तब ही से राज ठाकरे भाजपा के साथ अपने राजनैतिक संबंध बनाने की जुगत में लगे थे। या यूँ कहें कि भाजपा व मनसे दोनों को ही एक दूसरे से संबंध बनाने की मजबूरी दरपेश थी। परन्तु इसके लिये राज ठाकरे को अपने मराठी नहीं बल्कि हिंदुत्ववादी तेवरों में धार रखनी ज़रूरी थी। जो उन्होंने मस्जिदों से लाउडस्पीकर हटाने,अज़ान के वक़्त लाउडस्पीकर पर हनुमान चालीसा पढ़ने जैसा विवाद खड़ा कर, करने की पूरी कोशिश भी की। साथ ही राज ठाकरे ने अपने नये 'हिंदुत्ववादी अवतार' को क्षेत्रीय की जगह राष्ट्रीय 'कवच ' पहनाने के लिये 5 जून को अयोध्या में राम लला के दर्शन का कार्यक्रम भी घोषित कर दिया।ख़बरों के मुताबिक़ मनसे ने 11 ट्रेन रैक बुक कराने की योजना बनाई है ताकि अयोध्या में मनसे के कार्यकर्ता अपने नेता का स्वागत कर सकें। परन्तु उत्तर भारतीयों द्वारा राज ठाकरे का पुराना रिकार्ड अब खोल दिया गया है। बहराइच,अयोध्या से लेकर इलाहबाद और पूर्वांचल के कई ज़िलों में उन्हीं उत्तर भारतीयों ने राज ठाकरे का विरोध करने के लिये कमर कस ली है जिन्हें 2008 में राज ठाकरे के निर्देशों पर मनसे कार्यकर्ताओं द्वारा इतना प्रताड़ित किया गया था कि लाखों लोग रास्तों में और ट्रेनों,बसों व टैक्सियों में मार खाते, लुटते, पिटते अपने घरों को लौटने के लिये मजबूर हो गए थे। राज ठाकरे के विरोध में सत्ताधारी दल भाजपा के क़ैसर गंज के सांसद बृजभूषण शरण सिंह जोकि भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष भी हैं, ने मोर्चा खोल दिया है। उन्होंने कहा है कि ठाकरे को अयोध्या आने देना तो दूर उन्हें उत्तर प्रदेश की सीमा में भी घुसने नहीं दिया जायेगा। और भी कई राजनेता व धर्मगुरु भी राज ठाकरे की अयोध्या यात्रा का विरोध कर रहे हैं। उनके अयोध्या आगमन से पहले ही अनेक राजनैतिक संगठन और संस्थायें विरोध में उतर आई हैं। अयोध्या के कई प्रमुख साधु संत व धर्मगुरु भी राज ठाकरे के प्रस्तावित अयोध्या दौरे का विरोध कर रहे हैं।
राज ठाकरे के अयोध्या दौरे का विरोध करने वालों का कहना है कि उत्तर भारतीयों को अपराधी कहने वाले राज ठाकरे या तो उत्तर भारतीयों से माफ़ी मांगें अन्यथा अयोध्या आने का साहस न करें। इनका कहना है कि 'हम उत्तर भारतीय ही भगवान श्री राम के वंशज हैं अतः उत्तर भारतीयों का महाराष्ट्र में अपमान किया जाना भगवान श्रीराम का अपमान है। राज ठाकरे भगवान श्री राम के अपराधी हैं। लिहाज़ा बिना माफ़ी मांगे अयोध्या आने पर उत्तर भारतीय राज ठाकरे का जमकर विरोध करेंगे। इस पूरे प्रकरण में आश्चर्य की बात तो यह है कि जहाँ एक भाजपा सांसद खुलकर राज ठाकरे के अयोध्या दौरे का विरोध कर रहे हैं वहीँ इन्हीं विरोध स्वरों के बीच अयोध्या से भाजपा के ही सांसद लल्लू सिंह, राज ठाकरे के समर्थन में आ गये हैं। सांसद लल्लू सिंह का कहना है कि जो भी प्रभु श्रीराम की शरण में आना चाहता है उसका अयोध्या में स्वागत है। सांसद लल्लू सिंह ने यह भी कहा कि -'राज ठाकरे पर हनुमान जी की कृपा हुई है इसलिए वह अयोध्या में प्रभु श्रीराम जी की शरण में आ रहे हैं। मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूं कि उन्हें सद्बुद्घि मिले जिससे कि वह स्वयं के व महाराष्ट्र के कल्याण के लिए प्रधानमंत्री मोदी जी की शरण में भी जाएं'। उधर 10 जून को राज ठाकरे के भतीजे आदित्य ठाकरे भी अयोध्या आ रहे हैं। अयोध्या में दोनों 'ठाकरे' के दौरे को लेकर पोस्टर लगाये जा रहे हैं। इसके चलते अयोध्या शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के टकराव का केंद्र बनता जा रहा है। बहरहाल राज ठाकरे के रूप में अवसरवादी व विकृत राजनीति का एक और चेहरा तो ज़रूर उभर रहा है परन्तु इन सब के बीच उत्तर भारतीयों को यह जानना भी बेहद ज़रूरी है कि उत्तर भारतीयों के दम पर अपनी सरकार बनाने वाली व हिंदी भाषा का प्रसार करने की कोशिशों में लगी भारतीय जनता पार्टी हिंदी भाषा व उत्तर भारतीयों का विरोध करने वाले राज ठाकरे के प्रति नीतिगत व सैद्धांतिक रूप से आख़िर क्या विचार रखती है।