कल सुबह शर्मा जी पार्क में घूमने आये, तो उनके हाथ में कोलकाता के प्रसिद्ध हलवाई के.सी.दास के रसगुल्लों का एक डिब्बा था। उन्होंने सबका मुंह मीठा कराया और बता दिया कि सरदी बढ़ गयी है। अतः फरवरी के अंत तक सुबह घूमना बंद। इसलिए ये रसगुल्ला सुबह की सैर से विदाई की मिठाई है।
वैसे मिठाई तो स्वागत में खिलाई जाती है, विदाई में नहीं; पर जब मुफ्त में मिल रही हो, तो खा लेना ही ठीक था। इसलिए किसी ने एक लिया, तो किसी ने दो। रसगुल्ला खाया, तो फिर मीठी चर्चा होनी ही थी। बात बंगाल और उड़ीसा में रसगुल्ले पर अधिकार के लिए हुए विवाद पर छिड़ गयी।
– क्यों शर्मा जी, सब लोग इसे हमेशा से बंगाली रसगुल्ला ही कहते हैं। फिर ये उड़ीसा वाले इसमें कैसे घुस गये ?
– ये तुम नवीन पटनायक से पूछो। उड़ीसा वाले कहते हैं कि भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा पर अपने साथ लक्ष्मी जी को नहीं ले गये थे। इससे वे नाराज हो गयीं। जब भगवान लौटे, तो लक्ष्मी जी ने घर का दरवाजा नहीं खोला। तब उन्होंने देवी जी को खुश करने के लिए उन्हें रसगुल्ला भेंट किया। यह त्योहार वहां ‘नीलाद्री वीजे’ के नाम से पिछले हजारों सालों से मनाया जाता है। इसलिए उड़ीसा वाले इसे अपना मानते हैं।
– और ममता दीदी क्या कहती हैं ?
– उनका कहना है कि इसका आविष्कार 150 साल बंगाल में ही हुआ। इसमें जिन गायों के दूध से छेना बनता है, उन्हें विशेष प्रकार का चारा खिलाते हैं। फिर उसके दूध से बने नरम और मुलायम छेने से ये बंगाली रसगुल्ला बनता है; पर अब इसकी प्रसिद्धि का लाभ उठाने के लिए हर हलवाई बंगाली रसगुल्ला बना रहा है।
– तो इस पर किसी का पेटेंट है क्या ?
– पेटेंट तो नहीं है; पर इसके आविष्कारक परिवार का कहना है कि इसे बनाने की खास तकनीक हमारे खानदान वाले ही जानते हैं। आजकल तो लोगों को पनीर और छेने का अंतर ही नहीं पता। हजारों हलवाई भैंस के दूध से छेना बना रहे हैं और रसगुल्ले का वजन बढ़ाने के लिए उसमें मैदा डाल देते हैं। इससे तो बंगाली रसगुल्ले की बदनामी हो रही है।
– हां, ये तो गलत है शर्मा जी; पर मैंने सुना है कि 150 साल पहले तो बंगाल बहुत बड़ा था। वर्तमान बंगलादेश, असम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम, अरुणाचल, नगालैंड, उड़ीसा, झारखंड, थोड़ा सा बिहार और आज का कुछ बर्मा..सब मिलाकर बंगाल था। ऐसे में इस रसगुल्ले का आविष्कार बंगाल के किस भाग में हुआ, ये कौन बता सकता है ? हो सकता है, जिसे आज उड़ीसा कहते हैं, वहीं ये जन्मा हो। इस नाते नवीन पटनायक का दावा भी गलत नहीं है।
– ये तो तुमने बहुत मार्के की बात कही है वर्मा; लेकिन इस विवाद को शांत करने का तरीका क्या है ?
– बहुत सरल तरीका है। एक गोली से ही कई बीमारियों का सदा के लिए अंत हो जाएगा।
– तो तुम्हारे मुंह में एक दर्जन रसगुल्ले। जल्दी बताओ, देर क्यों कर रहे हो ?
– देखिये शर्मा जी, नवीन बाबू भी अकेले हैं और ममता जी भी। ये दोनों अपने-अपने राज्य में मुख्यमंत्री तो बन गये हैं; पर इससे आगे, यानि प्रधानमंत्री नहीं बन सकते। इसलिए अब इन दोनों को एक हो जाना चाहिए।
– यानि राजनीतिक गठबंधन कर लेना चाहिए ?
– राजनीतिक नहीं, जीवन भर के लिए स्थायी गठबंधन।
– यानि शादी… ?
– जी हां, इससे ये दोनों सुखी रहेंगे। और शादी की दावत में केवल रसगुल्ले परोसे जाएं। दोनों एक दूसरे को रसगुल्लों की माला पहनाएं। विदेशों में जैसे टमाटर युद्ध होता है, वैसे ही वर और कन्या पक्ष में रसगुल्ला युद्ध हो। फिर देखिये, ये विवाद कैसे शांत होता है।
– ये तो बड़ा धांसू आइडिया है वर्मा। इस विवाह से जो नव निर्माण होगा, वह रसगुल्ला हो या रसगुल्ली; पर चीज कमाल की होगी।
– लेकिन इसके साथ एक आइडिया और भी है। यह शादी नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हो। अटल जी तो अब आने लायक नहीं रहे; पर राहुल बाबा, मायावती, मनोहर लाल खट्टर और योगी आदित्यनाथ को भी विशेष अतिथि के नाते जरूर बुलाया जाए। इस तरह रसगुल्ले की चाशनी में जो राजनीतिक खिचड़ी पकेगी, वह लाजवाब होगी।
यह सुनते ही शर्मा जी ने रसगुल्लों का खाली डिब्बा मेरे मुंह पर दे मारा और गाली बकते हुए पार्क से बाहर निकल गये।
– विजय कुमार,
रसगुल्ला युद्ध में मुझे एक प्रसंग का स्मरण हो आया! लगभग बीस वर्ष पूर्व रा.स्व.स. के चिंतक, मनीषी स्व.श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी मेरठ में हमारे घर पर पधारे थे! चाय के साथ रसगुल्ले भी उनके सामने प्रस्तुत किये थे! रसगुल्ला देखते ही उन्हें रसगुल्ले पर एक “बौद्धिक” दे दिया और दास मोशाय द्वारा रसगुल्ले के अविष्कार की पूरी कहानी और इतिहास सुना दिया! उन्होंने कहा कि उन दिनों कलकत्ता के भद्र समाज में इंग्लिश पुडिंग सबसे अच्छा मिष्ठान्न माना जाता था! दास मोशाय के व्यापार स्थल पर अनेक लोग एक मण्डली लगाते थे और विभिन्न विषयों पर चर्चा करते थे! एक दिन उन्होंने दास बाबू से कहा कि दास बाबू इंग्लिश पुडिंग से बेहतर कोई स्वदेशी मिष्ठान्न तैयार करो! और दास बाबू ने थोड़े समय में ही स्वदेशी मिष्ठान्न के रूप में ‘रोशोगुल्ला’ बनाकर प्रस्तुत कर दिया! आज दास बाबू का रोशोगुल्ला समूचे विश्व में निर्यात किया जाता है जबकि इंग्लिश पुडिंग का कोई आज नाम भी नहीं जानता!तो यह और भी अधिक गर्व की बात है कि रसगुल्ला भारत की आज़ादी और स्वदेशी के अभियान से उत्पन्न हुआ है! अतः अब जब भी कभी रसगुल्ला खाएं तो ‘स्वदेशी’ के इस सन्देश को भी याद करें!