राजनीति

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ बनाम राष्ट्रीय कांग्रेस स्वयं सेवक संघ


वीरेन्द्र सिंह परिहार
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पूर्व केन्द्रीय मंत्री असलम शेर खान ने राष्ट्रीय सेवक संघ की तर्ज पर राष्ट्रीय कांग्रेस स्वयं सेवक संघ बनाने को कहा है। उनका कहना है कि आर.एस.एस. की अगर कोई अच्छी चीज है तो उसे अपनाने में दिक्कत क्या है। उनका यह भी कहना है कि कांग्रेस चुनाव भाजपा से नही, आर.एस.एस. से हार रही है। संभवतः इसलिये वह आर.एस.एस. की तर्ज पर संगठन खड़ा करना चाहते हैं। उनका मानना है कि कांग्रेस स्वयं सेवक संघ बनाये जाने पर उसके स्वयं सेवक कांग्रेस पार्टी के लिये उसी निष्ठा से काम करेंगे, जिस निष्ठा के साथ आर.एस.एस. के लोग भाजपा के लिये काम करते हैं।
अब जब असलम शेर खान ऐसी बाते कहते हैं तो सबसे पहले उन्हें यह समझ लेना चाहिये कि आर.एस.एस. कोई भाजपा द्वारा बनाया गया संगठन नहीं है, और न ही यह सत्ता प्राप्त के लिये बनाया गया संगठन है। डा.  हेडेगवार ने इसकी स्थापना सन 1925 मे ‘‘राष्ट को परम वैभव तक ले जाने के लिये की थी। संघ के पांचवे सरसंघ चालक कुप्प श्री सुदर्षन ने एक बार कहा था कि संघ सूर्य है और उससे कोई भी प्रकाष ग्रहण कर सकता है। भाजपा और कंग्रेस में मोटा अन्तर यही है कि भाजपा कमोवेष आर.एस.एस. से प्रकाष ग्रहण करती है, लेकिन कांग्रेस की दृष्टि मे आर.एस.एस. एक साम्प्रदायिक संगठन है, अर्थात कांग्रेस के लिये वह अछूत है । पर फिर भी असलम संघ की तर्ज पर कंग्रेस के लिये संगठन खड़ा करना चाहते हैं। अब असलम से यह तो पूछा ही जा सकता है कि क्या सोनिया गांधी और राहुल गांधी को छोड़कर किसी की कांग्रेस पार्टी में ऐसी हैसियत है ? इससे भी बड़ा सवाल यह कि क्या यह संभव है? क्योंकि कांग्रेस सेवा दल का गठन कुछ ऐसे ही उद्देष्यों के चलते किया गया था। जो आगे चलकर कांग्रेस के नेताओं को मात्र सलामी देने का माध्यम बन गया।
कांग्रेस पार्टी के अन्दर यह कोई नई सोच नहीं है। 2014 में लोकसभा के चुनावों मे भयावह पराजय के बाद टीम राहुल कांग्रेस पार्टी को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तर्ज पर कांग्रेस पार्टी को कार्यकर्ता आधारित बनाने का प्रस्ताव लेकर आई थी। पर वंषवाद की भित्ति पर टिकी कांग्रेस पार्टी कार्यकर्ता आधारित कैसे हो सकती है? कार्यकर्ता आधारित होने का मतलब है कि नेतृत्व कार्यकर्ताओं से ही उभरना चाहिये । लेकिन कांग्रेस पार्टी का नेतृत्व करने का एक खानदान – विषेष का एकाधिकार है । भले ही इसके चलते कांग्रेस पार्टी रसातल मे जा रही हो। पर बड़ी बात यह कि न तो राहुल गांधी ने और न असलम शेर खान ने आर.एस.एस. को ठीक से समझा। शायद उन्हें पता नहीं कि संघ का मार्ग कितना कंण्डकाकीर्ण है। संघ के स्वयंसेवक समाज – सेवा एवं राष्ट्र-निर्माण के लिये कठोर जीवन जीते हैं। उनका लक्ष्य राजनींति एवं सत्ता के माध्यम से सुविधायें न जुटाकर, पूरे देष मे सुदूर वनवासी क्षेत्रों तक में- पैदल तक चलकर, अनवरत काम करते हैं। हिन्दू समाज मे सामाजिक समरसता का भाव भरते हुये उसे एकता के सूत्र में पिरोते हैं। संघ मे लाखों-लाख ऐसे स्वयं सेवक हैं, जो आजीवन अविवाहित रहकर एकाकी जीवन जीकर अपने रक्त की एक-एक बूंद राष्ट्र के लिये समर्पित कर देते हैं। राष्ट्र-जीवन की भयावह समस्याओं के समक्ष अपने परिजनो के दुःख-दैन्य उनके लिये गौण हो जाते हैं। संघ में कांग्रेस की तरह कार्यकर्ताओं से यह अपेछा कतई नहीं की जाती कि वह किसी ब्यक्ति या खानदान के प्रति चाटुकारिता करें और उनकी जय जयकार बोलें । वरन उन्हें ध्येयनिष्ठ बनाने का प्रयास किया जाता है। इसलिये संघ ब्यक्ति-पूजा, चापलूसी किसी किस्म की तिकड़म एवं गुटवाजी से पूर्णतः मुक्त है। कांग्रेस पार्टी में जहां कार्यकर्ता नहीं वरन पट्ठे होते हैं, जो किसी नेता – विषेष के प्रति निष्ठावान होते हैं और उनके लिये और प्रकारान्तर से अपने लिये लाठी, चाकू, छूरा तक चलाने को आपस मे ही सन्नध रहते हैं। वहीं संघ के स्वयं सेवकों की निष्ठा राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रति होती है और जिसमे निजी एजेन्डे को कोई भी स्थान नही है। संघ जैसा संगठन बनाने वालों को शायद यह भी पता नहीं कि संघ कोई यदि राजनीति भी करता है तो सत्ता के लिये नही वरन् राष्ट्र के लिये करता है। पर ये मात्र इसके लिये आर.एस.एस. जैसा संगठन बनाना चाहते हैं, ताकि वह उनके लिये सत्ता की सी में आ सकता है? इसी तरह से असलम शेर खान जैसे लोग संघ की कोई अच्छाई के नाम पर संघ जैसा संगठन खड़ा करना चाहते हैं, पर संघ को अनुकरणीय मानने को भी तैयार नहीं है। यानी ऊंट की चोरी ‘‘निहुरे-निहुरे’’ करना चाहते हैं। इन्हें यह पता नहीं कि आर.एस.एस. का निर्माण किसी सत्ताकांछी नेता द्वारा नहीं किया गया था, वह भाजपा द्वारा निर्मित संगठन भी नहीं है। अलबत्ता भाजपा या जनसंघ का निर्माण आर0एस0एस0 की विचारधारा के आधार पर जरूर हुआ था । बड़ी बात यह कि यदि ऐसे लोग आर.एस.एस. से सचमुच प्रभावित है, तो उसकी विचारधारा के साथ क्यों नहीं खड़े होते ? क्योंकि संघ जैसा संगठन कोई ऐसे चाहने से तो बन नहीं जाता। पर इनके साथ शायद यही समस्या है, जैसा कि दुर्योधन के साथ थी जैसा कि उसने कहा था – ‘‘जानहि धंर्मं न मे प्रवृत्ति’’ मैं क्या करूं, धर्म को जानता हूं पर उस ओर मेरी प्रवृत्ति नहीं है। असलम और तेज प्रताप जैसे लोगों को कहीं न कहीं यह पता है कि संघ महान लक्ष्यों से अभिप्रेरित होकर काम कर रहा है पर उनके निहित स्वार्थों मे बाधक होने के चलते संघ उनके लिये एक मात्र गाली का पर्याय है।