राष्ट्रविरोधी नारे लगाने वालों को हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणियां

हाईकोर्ट ने देशद्रोह के मामले में कन्हैया को जमानत तो प्रदान कर दी, लेकिन देशविरोधी व सुरक्षा बलों के खिलाफ नारेबाजी लगाने वालों के खिलाफ कड़ी टिप्पणियां भी की हैं। अदालत ने अपने 23 पेजों के फैसले में कहा कि ऐसे नारेबाजी करने वाले तभी स्वतंत्र हैं जब तक देश के सैनिक बॉर्डर पर उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। इसके अलावा अफजल गुरु और मकबूल बट के समर्थन में नारेबाजी करने वाले क्या एक घंटा भी दुर्गम क्षेत्र में रह सकते हैं। उनकी नारेबाजी से उन शहीदों, जो तिरंगे में लिपटे ताबूत में घर लौटते हैं, के परिवार पर प्रभाव पड़ सकता है। वे नारों से हतोत्साहित होते हैं।

न्यायमूर्ति प्रतिभा रानी ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि संविधान में सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन इस स्वतंत्रता की जिम्मेदारी भी बनती है। उन्होंने जेएनयू में देश व सुरक्षा बलों के विरोध में नारेबाजी पर गंभीरता जताते हुए कहा कि इतना ही ध्यान दें कि ऐसे व्यक्ति विश्वविद्यालय परिसर में आराम से और सुरक्षित वातावरण में हैं। वे स्वयं को सुरक्षित महसूस करते है। वहीं हमारे सुरक्षा बल दुनिया की सबसे अधिक ऊंचाई सियाचिन में लड़ाई लड़ रहे हैं। वहां ऑक्सीजन इतनी दुर्लभ है कि जो लोग उनकी शहादत का सम्मान अफजल गुरु और मकबूल बट के पोस्टर पकड़े राष्ट्रविरोधी नारेबाजी कर रहे हैं, उनके सीने यहां एक घंटे के लिए स्थिति का सामना करने में सक्षम नहीं है।

उन्होंने कहा संविधान के अनुच्छेद 51-ए के तहत हर नागरिक का मौलिक अधिकार मिला है लेकिन अधिकार और कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । याचिकाकर्ता एक बौद्धिक वर्ग से है और पीएचडी कर रहा है। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय बुद्धिजीवियों के केंद्र के रूप में माना जाता है। उन्होंने कहा कि किसी भी राजनीतिक संबद्धता या विचारधारा हो सकती है।उन्होंने कहा कि आगे बढ़ाने के लिए हर अधिकार है, लेकिन यह केवल हमारे संविधान के ढांचे के भीतर हो सकता है। भारत विविधता में एकता का एक जीवंत उदाहरण है। अदालत ने देशविरोधी नारे लगाने वालों से सवाल करते हुए कहा कि भावनाओं या विरोध नारे में परिलक्षित छात्र समुदाय जिनकी तस्वीर पकड़े गए अफजल गुरू और मकबूल बट के पोस्टर के साथ है उन्हें आत्मनिरीक्षण की जरूरत है।उन्होंने कहा कि जेएनयू के संकाय भी सही रास्ते पर मार्गदर्शन कर देश के विकास में योगदान कर सकते हैं। इसी दृष्टि के लिए जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय स्थापित किया गया था।

अदालत ने कहा कि अफजल को हमारी संसद पर हमले का नेतृत्व को दोषी पाया गया था। उसकी पुण्यतिथि पर नारेबाजी राष्ट्रविरोधी विचारों को जन्म देती है। जेएनयू प्रबंध ऐसे कार्य को रोकने मे सक्षम है। अदालत ने कहा कि देशविरोधी नारेबाजी यानी जो संक्रमण से पीड़ित हैं ऐसे छात्रों को नियंत्रित किया जाना जरूरी है ताकि यह एक महामारी न बन जाए। कोशिश यह होनी चाहिए कि सभी को मुख्यधारा में लाया जाए। अदालत ने कहा कि तथ्यों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते वे याची को छह माह की जमानत पर छोड़ना चाहती है। इसलिए ताकि जेएनयू में इस प्रकार की गतिविधियों पर अंकुश लगाया जा सके।

1 COMMENT

  1. राष्ट्रविरोधी नारे लगाने वालों को हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणियां
    बड़े आश्चर्य की बात है की किसी भी टीवी चैनल ने इस बात का जिक्र तक नहीं किया. पत्रकार भी देश विरोधियो का साथ देने मैं गौरव अनुभव करते हैं. दिन प्रति दिन यही अनुभव होता है कि पत्रकारिता चापलूसी का दूसरा नाम है. लगभग सभी समाचार चैनल्स विरोधी पक्ष की बात को ही बढ़ाबा देते रहे हैं. सिबाय TIMES NOW. पत्रिकारिता अब निष्पक्ष कहाँ रही है कांग्रेस के ६० साल के कार्यकाल मैं सभी उसको समर्थन देने के आदी हो चुके हैं. पत्रकार दूसरों की आलोचना to करते हैं पर अपने अआप पर ध्यान नहीं देते .पर उपदेश ही उनकी नियति बनकर रह गई है

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