
डॉ. मधुसूदन
देख पूरब में सबेरा।
अब अंधेरा छँट रहा है।
कल्याण*स्वर आलाप में,
घण्ट घन घन बज रहा हैं ||
अर्थ:
कल्याण = प्रभात का राग, (यहाँ सर्व जन कल्याण अर्थ में भी)
*सब का साथ सबका विकास* का संदर्भ माने.आलाप = राग का सौम्य प्रारंभ
(२)
भ्रष्ट जर्जर जाल* ले कर|
उड चलो सब साथ दो||
व्याध* भी चरफरा* रहा है|
अब, रथ सुदर्शन* बढ रहा है||
अर्थ:
रथ सुदर्शन= कृष्ण का रथ (यहाँ नरेंद्र का )
भ्रष्ट जर्जर जाल= रिश्वत खोरी का जाल. संदर्भ पंच तंत्र की कथा जिस में सारे कबुतर जाल लेकर एक साथ उड कर मुक्त हो जाते हैं. व्याध= भ्रष्ट जाल फैलानेवाली रिश्वतशाही
चरफरा*= तडफडा
(३)
भोर किरणें देख, पूरब|
रंग गेरु* फैला रहा है||
स्वातंत्र्य रथ पीछे सच्चा |
अब, दृष्टि गोचर हो रहा है||
अर्थ:
रंग गेरु*=त्याग का गेरुआ स्वातंत्र्य रथ = सच्चा स्वतंत्रता का रथ.
(४)
अशोक का स्तम्भ जाग|
चक्र तिरंगे पर घुमा है||
विश्व में डंका बजाता|
योगी भारत बढ रहा है||
(५)
कर्मयोगी देश में मत|
नाम ले विश्राम का||
भ्रष्ट परम्परा नष्ट करने |
दिनरात योगी बढ रहा है||
अर्थ: योगी= साधक योगी नरेंद्र
(६)
भरमा न उच्छिष्ट * टुकडों पर|
विजय भेरी* बज रही है||
कौरव शिविर* भगदड मची है।
धुलि गुलाली उड रही है||
अर्थ:
विजय भेरी* विजय नगाडा
कौरव = विपक्ष
उच्छिष्ट टुकडें= लोन माफी
(७)
दुम दबाएँ श्वानसारे | भषण कातर कर रहें हैं||
आगे बढ, अब साथ दे|
जब रथ सुदर्शन बढ रहा है||
अर्थ:
भषण कातर = डर से भागते हुए कुत्तों का भौंकना
(८)
घन घन बाजे कलश टकोरे|
अवशेषों से हुंकार उठी है ||
टूटे फूटे इतिहास पुराण से|
(९)
देख पूरब में सबेरा।
अब अंधेरा छँट रहा है।|
कल्याण*स्वर आलाप में|
घण्ट घन घन बज रहा हैं||
1। मात्रा, मीटर मे डाले तो अधिक अच्छा रहेगा |
2। इस तरह की पुराने कवियों की कविताए मीटर मे ही पाई जाती है।
3। मोदी जी नाम कविता के शीर्षक मे भी डाला जा सकता है
Truly,
Hari B. Bindal, PhD, P.E.
Recipient, ‘Pravasi Bharatiya Samman’ and ‘Pravasi UP Ratna’ Awards,
Founder, ‘American Society of Engineers of Indian Origin (ASEI),
Commissioner, PG’s County, Solid Waste Advisory Committee,
Served, Numerous Indian-American Organizations,
Engineer, Poet, Writer, and Social Activist,
Retired, US Dept of Homeland Security.
कविता पर श्री. श्याम तिवारी, प्रो. सविता जोशी, प्रो. प्रभाकर जोशी, डॉ. अभय अस्थाना एवं प्रो. शकुन्तला बहादुर,इत्यादि विद्वान -विदुषियों की प्रोत्साहक टिप्पणियाँ आयी। ऐसे रसिक मित्र और उनकी टिप्पणियाँ ही
कवि का ’मान धन’ है.
कर्म-योगी देश में मत नाम ले विश्राम का |
भ्रष्ट परम्परा नष्ट करने दिन-रात योगी बढ़ रहा है ||
देख पूरब में सबेरा अब अंधेरा छँट रहा है |
कल्याण स्वर आलाप में घण्ट घन घन बज रहा हैं ||
बहुत सुन्दर!!!
कविता पर श्री. श्याम तिवारी, प्रो. सविता जोशी, प्रो. प्रभाकर जोशी, डॉ. अभय अस्थाना एवं प्रो. शकुन्तला बहादुर,इत्यादि विद्वान -विदुषियों की प्रोत्साहक टिप्पणियाँ आयी। ऐसे रसिक मित्र और उनकी टिप्पणियाँ ही
कवि का ’मान धन’ है. उन्हें, प्रकाशित किया जा रहा है.
आदरणीय मधु भाई,
“ रथ सुदर्शन बढ़ रहा है ।” कविता पंचतन्त्र की कपोत-कथा के सन्दर्भ को लिये हुए , गीता के कर्मयोग और व्याध द्वारा योगेश्वर कृष्ण के पाँव को शर से आहत करने के प्रसंग को जोड़ती हुई गंभीर अर्थों को अपने में समाहित किये है। अशोक स्तम्भ, ध्वजा का चक्र आज की राजनीति के साथ कौरवों की ओर संकेत करता है तो सूर्योदय और कल्याण ( थाट )के स्वर आशान्वित भी करते हैं। कुल मिलाकर कविता में विविध सुन्दर प्रसंगों के माध्यम से अपनी बात कही गयी है , जो पाठक को प्रभावित करती है ।
अन्त में शब्दों के गहरे भावों का स्पष्टीकरण भी पाठक के लिये सहायक है । अनेकशः साधुवाद।।
शुभाकांक्षिणी,
शकुन बहिन
शकुन बहिन| धन्यवाद आप का यह अर्थ विशेष और सही बैठता है| मेरे ध्यान में नहीं था| बहुत बहुत धन्यवाद| कविता को आपने उचित अर्थ भर कर ऊंचा उठा दिया| योगदान के लिए ऋणी हूँ|
मधुसूदन
HAPPY NEW YEAR
Jan 2, 2019
Sanmananiy Dr. Madhubhai ji:
Namaskar
At the start of new year, it is our pleasure to have such great poem……. So nice….
YOUR PRATIBHA is—- “udand aahe..”.
We forwarded it ….to our friends, relatives, karyakartas etc…
Affly,
Savitaben/Prabhakar