ऑपरेशन ब्लू स्टार की हकीकत

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-अरविंद जयतिलक-  british-flag-posters
30 वर्ष पुराने अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में 1984 के ऑपरेशन ब्लू स्टार पर ब्रिटेन के दस्तावेजों से उछली खबर ने न केवल कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं, बल्कि पुराने गहरे घाव को ताजा भी कर दिया है। इन दस्तावेजों से खुलासा हुआ है कि तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गेट थैचर ने स्वर्ण मंदिर को खालिस्तानी आतंकियों से मुक्त कराने की सैन्य कार्रवाई में भारत की मदद की। दस्तावेजों पर विश्वास करें तो ऑपरेशन ब्लू स्टार से चार महीने पहले भारत सरकार ने पत्र लिखकर ब्रिटेन सरकार से ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए मदद का अनुरोध किया था। उनके अनुरोध पर ब्रिटिश स्पेशल एयर सर्विस के एक अधिकारी ने भारत की यात्रा की और योजना का खांका तैयार कर तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के समक्ष पेश किया जिस पर उन्होंने सहमति की मुहर लगायी। हालांकि ऑपरेशन ब्लू स्टार में सेना का नेतृत्व करने वाले तत्कालीन लेफ्टिनेंट जनरल केएस बरार ने ब्रिटेन की किसी भूमिका से इंकार किया है, लेकिन 30 वर्षों की अवधि के बाद गोपनीयता कानून से बाहर आए इन साक्ष्यों की अनदेखी भी नहीं की जा सकती। इसलिए कि ये साक्ष्य अन्य साक्ष्यों से भी प्रमाणित होते हैं। भारतीय खुफिया एजेंसी ‘रॉ’ के पूर्व अधिकारी बी. रमन की पुस्तक ‘द काउबायेज ऑफ आर एंड डब्लू’ से उद्घाटित हो चुका है कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के तत्कालीन सलाहकार आरएन काव के अनुरोध पर ब्रिटिश सुरक्षा सेवा के दो अधिकारी पर्यटक के तौर पर स्वर्ण मंदिर का दौरा किए थे। ब्रिटेन के लोकप्रिय समाचार पत्र ‘गार्जियन’ का भी कहना है कि अमृतसर में ऑपरेशन ब्लू स्टार के पूरा होने के बाद ब्रिटेन की तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गेट थैचर ने इंदिरा गांधी के प्रति पूरा समर्थन व्यक्त करते हुए एक निजी नोट भेजा था। इस नोट में कहा गया है कि पृथक सिख राष्ट्र की मांग की पृष्ठभूमि में ब्रिटेन भारत की अखंडता का पूरा समर्थन करता है। यह नोट 20 जून 1984 को भेजा गया था। लेकिन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने ऑपरेशन ब्लू स्टार में ब्रिटेन के विशेष सुरक्षा बल की भूमिका से इनकार किया है। उनका कहना है कि अभी तक इसका पुख्ता सबूत नहीं मिला है, लेकिन चूंकि ब्रिटेन में सिख समुदाय की भारी आबादी है और विपक्षी दल चुनाव में इस मसले को चुनावी हथियार के तौर पर इस्तेमाल कर सकते हैं लिहाजा उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री मार्गेट थैचर की भूमिका की जांच का आदेश दे दिया है। विपक्षी सांसदों का मानना है कि ब्रिटिश विशेष सुरक्षा सेवा के कमांडरों ने सिख चरमपंथियों के खिलाफ सैन्य अभियान में भारत की मदद की थी। देखना दिलचस्प होगा कि आधिकारिक जांच का निष्कर्ष क्या निकलता है, लेकिन इन गोपनीय दस्तावेजों के खुलासे से भारत और ब्रिटेन की सियासत गरमा गयी है। किस्म-किस्म के सवाल उठने लगे हैं। भारत की मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी और अकाली दल ने ऑपरेशन ब्लू स्टार में ब्रिटिश सैन्य कार्रवाई को देश की संप्रभुता के साथ खिलवाड़ करार देते हुए मांग की है कि सरकार असल सच्चाई को देश के सामने लाए। चूंकि भारत में आमचुनाव सिर पर हैं, ऐसे में यह मामला राजनीतिक रंग ले लें, इससे इनकार नहीं किया जा सकता। उचित होगा कि यूपीए सरकार उठ रहे सवालों का सार्थक जवाब दे। गौरतलब है कि सिखों के सबसे पवित्र धर्मस्थल स्वर्ण मंदिर को खालिस्तानी चरमपंथियों से मुक्त कराने की सैन्य कार्रवाई में सैकड़ों की जानें गयी और स्वर्ण मंदिर तोप के गोलों और मषीनगनों की गोलियों से बहे खून से नहा उठा था। इसका भयंकार परिणाम यह हुआ कि 31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अपने ही सिख अंगरक्षकों की गोलियों का षिकार होना पड़ा। प्रतिक्रियास्वरुप देश में दंगा भड़क उठा और सिख समुदाय का कत्लेआम शुरू हो गया। देशभर में भड़के सिख विरोधी दंगों में हजारों निर्दोश सिखों की जानें गयीं। एक अनुमान के मुताबिक, पूरे देश में करीब 10 हजार से अधिक सिखों का नरसंहार हुआ। अकेले दिल्ली में ही 4 हजार से अधिक सिख मारे गए। दिल्ली के उच्च मध्यमवर्गीय रिहायशी इलाकों मसलन लाजपत नगर, जंगापुरा, फ्रेंड्स कॉलोनी, सफदरजंग एनक्लेव, डिफेंस कॉलोनी को योजनाबद्ध तरीके से निशाना बनाया गया। उनके गुरुद्वारों, दुकानों एवं घरों को लूटकर आग के हवाले कर दिया गया। भीड़ ने वृद्ध, बच्चे और महिलाओं तक को नहीं बख्शा। दिल्ली की तरह देश के अन्य राज्यों मसलन उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में भी सिखों पर जुल्म ढाया गया। त्रासदी यह कि जिन राज्यों में हिंसा भड़की वहां ज्यादातर में कांग्रेस की ही सरकारें थीं। खुद सरकार ने स्वीकार किया है कि सिख विरोधी दंगों में अकेले दिल्ली में ही 2733 लोग मारे गए। हजारों लोग घायल हुए। करोड़ों की संपत्तियां लूटी गयीं। हालांकि तत्कालीन केंद्र की कांग्रेस सरकार दृढ़ता दिखायी होती तो यह नरसंहार नहीं होता। लेकिन सरकार हाथ पर हाथ धरी बैठी रही। इसका खुलासा सीबीआइ भी कर चुकी है। उसका कहना है किये सभी हिंसक कृत्य दिल्ली पुलिस के अधिकारियों और इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी की नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की सहमति से आयोजित किए गए थे। गौरतलब है कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके पुत्र राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री पद की षपथ ली और जब उनसे दंगों के बारे में पूछ गया तो उन्होंने कहा कि ‘जब एक बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती है।’ स्वाभाविक रूप से उनके इस जवाब के बाद पुलिस सख्त कार्रवाई करने से हिचकी होगी और अराजकवादियों का हौसला बुलंद हुआ होगा। अगर पुलिस अराजकवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की होती तो हजारों सिखों की जान बच सकती थी। जहां तक पंजाब के आतंकवाद का सवाल है तो इसके लिए भी तत्कालीन कांग्रेस सरकार ही जिम्मेदार रही है। उसने ही राजनीतिक फायदे के लिए अलगाववादी समूहों को बढ़ावा दिया और बाद में उसे आतंकी संगठन घोशित किया। सच तो यह है कि केंद्र सरकार की नाकामी के कारण ही पवित्र स्वर्ण मंदिर पर हथियारबंद अलगाववादियों ने कब्जा किया और उसकी कीमत समस्त सिख समुदाय को चुकानी पड़ी। इंदिरा गांधी के हत्यारे अंगरक्षकों बेअंत, सतवंत और केहर सिंह को फांसी पर झुला उनके किए की सजा दे दी गयी लेकिन सवाल यह है कि हजारों सिखों के नरसंहार के गुनाहगार 30 साल बाद भी कानून की पकड़ से बाहर क्यों हैं? सिख विरोधी दंगों के सिलसिले में केवल 3163 लोगों की गिरफ्तारी हुई और इनमें से केवल 442 लोगों को अपराध का दोशी करार दिया गया। इनमें 49 को उम्रकैद की सजा सुनायी गयी है और तीन को दस साल की कैद की सजा मिली है। लेकिन अभी भी षातिर गुनाहगार कानून के फंदे से बाहर हैं और विडंबन यह कि कांग्रेस उन्हें हरसंभव बचाने की कोषिष कर रही है। यहां उल्लेखनीय तथ्य यह भी कि अमेरिका की एक संघीय अदालत ने 1984 के सिख विरोधी दंगों में कथित तौर पर षामिल पार्टी नेताओं को बचाव करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ भी समन जारी कर चुकी है।

बता दें कि अमेरिका स्थित मानवाधिकार संगठन ‘सिख फॅार जस्टिस’ और नवंबर 1984 के अन्य दंगा पीडि़तों ने याचिका दायर कर सोनिया गांधी के खिलाफ मुआवजा और दंडात्मक कार्रवाई की मांग की है। गौरतलब है कि कांग्रेस पर जगदीश टाइटलर और सज्जन कुमार को बचाने का आरोप है। इन दोनों नेताओं पर दंगे में अहम भूमिका निभाने का आरोप है। पिछले दिनों सर्वोच्च अदालत ने सज्जन कुमार द्वारा दायर उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने 1984 के सिख दंगा मामले में उन पर लगे आरोपों को रद्द करने की मांग की थी। सज्जन कुमार पर आरोप है कि उन्होंने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दंगाईयों का नेतृत्व किया और भड़काया। ऐसे ही संगीन आरोप जगदीष टाइटलर पर भी है। उल्लेखनीय है कि 2009 आम चुनाव से पहले सीबीआइ ने इन्हें क्लीन चिट दे दी थी। लेकिन पिछले दिनों दिल्ली की एक निचली अदालत ने सीबीआइ की क्लोजर रिपोर्ट को खारिज कर सीबीआइ को आदेष दिया है कि वह पुलबंगष दंगा मामले में जगदीश टाइटलर की भूमिका की नए सिरे से जांच करे। लेकिन कहना मुश्किल है कि नरसंहार के इन गुनाहगारों को उनके किए की सजा मिलेगी। दिल्ली सरकार ने भी दंगों की जांच के लिए कपूर-मित्तल समिति, जैन-अग्रवाल समिति और आरके आहुजा समिति का गठन किया। लेकिन उसका कोई सकारात्मक परिणाम देखने को नहीं मिला। दुर्भाग्य यह कि नरसंहार के 30 साल बाद भी पीड़ित पक्ष को मुआवजा नहीं मिला है। वे दर-दर भटक रहे हैं। यह कांग्रेस की संवेदनहीनता को ही रेखांकित करता है। मौंजू सवाल यह कि अगर यह ब्रिटिश दस्तावेज के खुलासे सच साबित हुए तो कांग्रेस देश को क्या जवाब देगी? सवाल यह भी कि तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री मार्गेट थैचर ने ऑपरेशन ब्लू स्टार की सैन्य कार्रवाई में मदद क्यों की? क्या वह अरबों के रक्षा सौदे और रुस के प्रभाव को सीमित करने के लिए यह कदम उठाया? यह स्वीकार करना कठिन है कि ब्रिटेन को भारत के स्थायित्व को लेकर चिंता थी इसलिए मदद की। यह सच्चाई है कि श्रीलंका ने भी ब्रिटेन से लिट्टे के खिलाफ कार्रवाई के लिए मदद के तौर पर उसके सैन्य नौकाओं की मांग की थी। लेकिन तब ब्रिटेन ने उसकी मांग ठुकरा दी। बहरहाल सच्चाई क्या है यह तो जांच के बाद ही स्पश्ट होगा। लेकिन इस मदद के पीछे ब्रिटेन के अपने निजी स्वार्थ जरूर रहे होंगे। उचित होगा कि इन सवालों से बचने के बजाए मनमोहन सिंह की सरकार देशहित में सच पर पड़े परदे को हटाए।

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  1. भला कांग्रेस अपने पैरों में कुल्हाड़ी मारेगी? वह. भी इस समय जब माहौल उसके खिलाफ बन रहा हो.अभी तो इस विषय में कोई भी अपेक्षा करना गलत होगा. कांग्रेस तो गोधरा कांड के लिए मोदी की बलि मांग रही है अब ऐसे में वह इस बात में कुछ सचाई होगी भी तो इंकार करेगी.सभी जानते हैं कि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में व अन्य जगहों पर हुए सिखों के कत्ले आम के लिए कौन जिम्मेदार the, पर उनको सदेव बचाया है.कांग्रेस ने .केवल बचाया ही नहीं बल्कि उन्हें घावों पर नमक डालते हुए पद भी बक्शे हैं.दुसरे दलों को सांप्रदायिक का तगमा देने वाली कांग्रेस यह सब स्वीकार नहीं कर सकती. .

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