कविता

रिश्तों का बाजार


रुक गया जब गया, मै रिश्तों के बाज़ार में।
बिक रहे थे सभी रिश्ते खुले आम बाज़ार में।।

मैने पूछा,क्या भाव है रिश्तों का बाज़ार में।
हर रिश्ते का भाव अलग है इस बाज़ार में।।

बेटे का रिश्ता लोगे या बाप का रिश्ता लोगे।
दोनो का ही अलग मोल भाव तुम्हे देने होगे।।

भाई बहिन का रिश्ता भी तुम्हे मिल जायेगा।
इसके लिए तुम्हे हैसियत को दिखाना होगा।।

मां का रिश्ता अभी बिकाऊ नहीं है इस बाजार मे।
पर प्रेमिका का रिश्ता मिल जायेगा इस बाजार में।

बाबू जी कुछ तो बोलो,कौन सा रिश्ता चाहिए।
ज्यादा महंगा या बिलकुल सस्ता रिश्ता चाहिए।।

चुपचाप क्यो खड़े हो,रिश्ता खरीदये घर जाइए।
पैसे नही हो अगर आज उधार तुम ले जाइए।।

मैने डरते हुए पूछा,मुझे तो सच्चे दोस्त का रिश्ता चाहिए।
दुकानदार बोला,बाबू जी ये रिश्ता नही बिकता घर जाइए।

भरोसा तो सभी का इसी रिश्ते पर है टिकता।
बाकी सभी रिश्ते बिकते है पर ये नही बिकता।।

बाबू जी,जिस दिन ये रिश्ता बिक जायेगा।
उस दिन तो ये सारा संसार उजड़ जायेगा।।

आर के रस्तोगी