रिश्तों का बाजार

0
402


रुक गया जब गया, मै रिश्तों के बाज़ार में।
बिक रहे थे सभी रिश्ते खुले आम बाज़ार में।।

मैने पूछा,क्या भाव है रिश्तों का बाज़ार में।
हर रिश्ते का भाव अलग है इस बाज़ार में।।

बेटे का रिश्ता लोगे या बाप का रिश्ता लोगे।
दोनो का ही अलग मोल भाव तुम्हे देने होगे।।

भाई बहिन का रिश्ता भी तुम्हे मिल जायेगा।
इसके लिए तुम्हे हैसियत को दिखाना होगा।।

मां का रिश्ता अभी बिकाऊ नहीं है इस बाजार मे।
पर प्रेमिका का रिश्ता मिल जायेगा इस बाजार में।

बाबू जी कुछ तो बोलो,कौन सा रिश्ता चाहिए।
ज्यादा महंगा या बिलकुल सस्ता रिश्ता चाहिए।।

चुपचाप क्यो खड़े हो,रिश्ता खरीदये घर जाइए।
पैसे नही हो अगर आज उधार तुम ले जाइए।।

मैने डरते हुए पूछा,मुझे तो सच्चे दोस्त का रिश्ता चाहिए।
दुकानदार बोला,बाबू जी ये रिश्ता नही बिकता घर जाइए।

भरोसा तो सभी का इसी रिश्ते पर है टिकता।
बाकी सभी रिश्ते बिकते है पर ये नही बिकता।।

बाबू जी,जिस दिन ये रिश्ता बिक जायेगा।
उस दिन तो ये सारा संसार उजड़ जायेगा।।

आर के रस्तोगी

Previous articleकोरोना के खतरे से फिर बढ़ेगा रोज़गार का संकट
Next articleसंकट ही नहीं, हर्ष भी देकर जा रहा है बीता साल
आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here