गणतंत्र और आरक्षण

भारत में गणतंत्र दिवस की भूमिका बहुत अहम् होती है। इसी दिन संविधान की स्थापना हुई। गणतंत्र दिवस भारतीयों की भावनाओ से जुड़ा हुआ विशेष दिन है ।गणतंत्र के 71 वर्ष पूरे हो गए हैं। आजादी के बाद देश को चलाने के लिए  संविधान लिखा गया,जिसे लिखने में पूरे 2 साल 11 महीने और 18 दिन लगे। 26 जनवरी 1950 ई• को सुबह 10:18 मिनट पर भारत का संविधान लागू किया गया था और इसी उपलक्ष्य में हम २६ जनवरी को गणतंत्र दिवस के रूप में मनाने लगे। 26 जनवरी 1950 से पहले भारत संवैधानिक तौर पर गणराज्य नहीं बल्कि राजतंत्र ही था। 26 जनवरी 1950 से पहले गर्वनमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 के तहत भारत में शासन चलाया जाता था। दिल्ली में 26 जनवरी,1950  को पहली गणतंत्र दिवस परेड,राजपथ पर न होकर इर्विन स्टेडियम (आज का नेशनल स्टेडियम) में हुई थी। 1955 ई• को दिल्ली के राजपथ पर गणतंत्र दिवस की पहली परेड हुई थी। गणतंत्र दिवस के मौके  पर राजपथ पर परेड आयोजित की जाती है और इस परेड की सलामी देश के राष्ट्रपति लेते हैं। हर साल २१ तोपों की सलामी दी जाती है। 1950 ई• से हम गणतंत्र दिवस को हर वर्ष ढ़ेर सारे हर्ष और खुशी के साथ मनाते हैं। 1950 से ही भारत दूसरे देश के राष्ट्र प्रमुखों को गणतंत्र दिवस परेड में मुख्य अतिथि के तौर पर आमंतित्र करता आ रहा है। 2021 ई• में 72 वां गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है। गणतंत्र दिवस 2021 के मौके पर इस साल कोई मुख्य अतिथि नहीं होगा। ऐसा 50 सालों में पहली बार होगा जब कोई मुख्य अतिथि नहीं होगा । शुरू में,ब्रिटिश पीएम बोरिस जॉनसन को भारत आने के लिए आमंत्रित किया गया था। लेकिन,ब्रिटेन में एक नए कोविड-१९ स्ट्रेन के बढ़ते प्रकोप के चलते उन्हें अपनी यात्रा रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इससे पहले,भारत के पास 1952,1953 और 1966 में परेड के लिए मुख्य अतिथि नहीं थे। पिछले साल 150000 के मुकाबले इस साल गणतंत्र दिवस 2021 समारोह में सिर्फ 25000 लोग हिस्सा ले रहे हैं|गणतंत्र दिवस परेड राष्ट्रपति भवन से शुरू होकर इंडिया गेट पर खत्म होगी| इसके बाद का मार्ग विजय चौक से राजपथ,अमर जवान ज्योति,इंडिया गेट प्रिंसेस पैलेस, तिलक मार्ग से होते हुए आखिर में इंडिया गेट तक जाएगा| पिछले साल भारतीय वायु सेना में शामिल राफेल लड़ाकू जेट, पहली बार परेड में भाग ले रहे हैं|परेड में भारत की पहली महिला फाइटर पायलट भावना कान्त और बांग्लादेश सशस्त्र बलों की एक टुकड़ी भी शामिल होगी |कोविड -19 सुरक्षा मानदंडों के चलते,मोटरसाइकिल से चलने वाले पुरुषों के करतब (स्टंट) जो राजपथ पर गणतंत्र दिवस समारोह में भीड़ के लिए एक प्रमुख आकर्षण होता है,इस साल देखने को नहीं मिलेगा| बांग्लादेश सेना का एक सैन्य बैंड भी परेड में भाग ले रहा है| इस साल,बांग्लादेश ने अपनी स्वतंत्रता की 50 वीं वर्षगांठ मनाई| लद्दाख जो हाल में ही केंद्र शासित क्षेत्र बना है,राजपथ पर एक शानदार झांकी के साथ पहली बार दस्तक दे रहा है| जिसमें सांस्कृतिक विरासत को दर्शाया गया है| अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की महिमा और भव्यता का प्रदर्शन २६ जनवरी को राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली में होने वाले गणतंत्र दिवस परेड के दौरान किया जाएगा|गणतंत्र दिवस की झांकी में अयोध्या में ‘दीपोत्सव’ की झलक भी होगी|संस्कृति मंत्रालय,इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय और आई. टी,आयुष मंत्रालय,सूचना और प्रसारण मंत्रालय,और रक्षा क्षेत्र से झांकियां शामिल हैं| जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) की झांकी स्वदेशी रूप से कोविड -19 वैक्सीन के निर्माण के लिए वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयासों को प्रदर्शित करेंगी| झांकी में वैक्सीन के पूर्व-परीक्षण और परीक्षण चरणों के विभिन्न चरणों का चित्रण है| 2021 गणतंत्र दिवस में  मीडिया प्रतिनिधियों की संख्या को 300 से घटाकर 200 कर दी गई  है। इसके साथ ही 15 साल से कम उम्र के बच्चों को उपस्थित होने की इजाजत नहीं है। वीरता पुरस्कारों की परेड और बहादुरी पुरस्कार हासिल करने वाले बच्चे भी 72 वें गणतंत्र दिवस समारोह में नहीं होंगे| गणतंत्र दिवस समारोह का समापन ‘बीटिंग रिट्रीट’ सेरेमनी से 29 जनवरी को किया जाता है,जबकि स्वतंत्रता दिवस (15 अगस्त) के जश्न का समापन उसी दिन ही किया जाता है। बीटिंग रिट्रीट समारोह सदियों पुराने उस सैन्य परंपरा को दर्शाती है जिसमे इन सैन्य धुनों के बजने पर सेना लड़ना बंद कर देती है और अपने हथियार रख देती है। भारतीय वायुसेना की पहली महिला फाइटर पायलट्स में से एक फ्लाइट लेफ्टिनेंट भावना कांत गणतंत्र दिवस परेड में भारतीय वायुसेना की झांकी का हिस्सा होंगी| गणतंत्र दिवस परेड में शामिल होने वाली वह पहली महिला फायटर पायलट हैं|

दो शब्दों से मिलकर बना है गणतंत्र । गण और तंत्र । गण का शाब्दिक अर्थ है दल/समूह/लोक। तंत्र का शाब्दिक अर्थ है डोरा/सूत (रस्सी)। अर्थात ऐसी रस्सी/डोरा,जो लोगों के समूह को जोड़े,लोकतंत्र कहलाता है।भारत में लोकतंत्र है और राजनेताओं ने लोकतंत्र का आधार, आरक्षण को बना दिया है। भ्रष्ट प्रशासन ,शिक्षा से लेकर न्याय तक का राजनैतिककरण होना,लोकतंत्रात्मक प्रणाली का जुगाड़ तंत्रात्मक हो जाना आदि अन्य सामाजिक कुरीतियों ने जन्म ले लिया। 25/08/1949 ई  में संविधान सभा में अनुसूचित जाति,अनुसूचित जनजाति आरक्षण को मात्र 10 वर्ष तक सिमित  रखने के प्रस्ताव  पर एस. नागप्पा व बी. आई. मुनिस्वामी पिल्लई आदि की आपत्तियां आई। डॉक्टर अम्बेडकर ने कहा मैं नहीं समझता कि हमे इस विषय में किसी परिवर्तन की अनुमति देनी चाहिए। यदि 10 वर्ष में अनुसूचित जातियों की स्थिति नहीं सुधरती तो इसी संरक्षण को प्राप्त करने के लिए उपाए ढूढ़ना उनकी बुद्धि शक्ति से परे न होगा। आरक्षण वादी लोग,डॉ अम्बेडकर की राष्ट्र सर्वोपरिता की क़द्र नहीं करता। आरक्षण वादी लोगों ने राष्ट्र का संतुलन ख़राब कर दिया है। आरक्षण वादी लोग वोट की राजनीति करने लगे हैं न कि डॉ अम्बेडकर के सिद्धांत का अनुपालन कर रहे हैं। आरक्षण देने की समय सीमा तय होनी चाहिए जिससे दबे कुचले लोग उभर सकें। जब आरक्षण देने की तय सीमा के अंतर्गत दबे कुचले लोग उभर जाएं तो आरक्षण का लागू होना सफल माना जाए। आरक्षण कोटे से चयनित न्यायाधीश, आई.ए.एस.,आई.ई.एस.,पी.सी.एस.,इंजीनियर,डॉक्टर आदि अपने कार्य का संचालन ठीक ढंग से नहीं कर पाते क्योंकि उन्हें कोटे के तहत उभरा गया। इस प्रकार के आरक्षण से मानवता पर कुठारा घात हो रहा है। अतएव शिक्षित व योग्य व्यक्ति को शोषण का शिकार होना पड़ रहा है। इस प्रकार की आरक्षित कोटे कि शिक्षा विकास कि उपलब्धि नहीं है। यह विकास के नाम पर अयोग्य लोगों को शरण देने वाली बात है। किसी भी देश के विकास में आरक्षण अभिशाप है ।आज यदि हम देश को उन्नति  की ओर ले जाना चाहते हैं और देश की एकता बनाये रखना चाहते हैं,तो जरूरी है कि आरक्षणों को हटाकर हम सबको एक समान रूप से शिक्षा दें और अपनी उन्नति का अवसर  पाने का मौका दें। अतः राष्ट्र के विकास को जीवित रखने के  लिए,आरक्षण को वोट कि राजनीति से दूर रखना होगा। आरक्षण,विकास का आधार नहीं हो सकता। आरक्षण लोकतंत्र का आधार नहीं हो सकता। आरक्षण समुदाय को अलग करने का काम करता है न कि जोड़ने का। ऐसी डोर जो समुदाय या लोगों को जोड़े वह है लोकतंत्र। लोकतंत्र का आधार सिर्फ और सिर्फ विकास हो सकता है क्योंकि डोर या रस्सी रूपी विकास ही समूह को जोड़ने का आधार है। लोकतंत्र का आधार विकास होना चाहिए न कि आरक्षण। ताजा स्थिति यह है कि आरक्षण राष्ट्रीय विकास पर हावी है ।जिस तरह देश में फर्जी स्कूलों कि बाढ़ आ चुकी है और हजार हज़ार में डिग्रियाँ बिक रही है जिससे वो लोग डिग्री तो पा लेते है किन्तु अपने दायित्वों का निर्वाह नही कर पाते क्यों की योग्यता तो होती नही। परिश्रम किए बिना ही पद मिल गया। वही स्थिति जाति प्रमाण पत्र की है कि बिना परिश्रम के जाति प्रमाण पत्र के सहारे पद मिल जाता है। फिर देश का नाश हो या सत्यानाश इन्हे कोई फर्क नही पड़ता। जातिवाद देश को तोड़ने का काम करता है जोड़ने का नही।  ये बात इन लोगो की समझ में नही आएगी क्यूँकि समझने लायक क्षमता ही नही है। देश के विषय से इन्हे प्यारा है आरक्षण। दूसरों कि गलतियां निकाल कर ख़ुद को दोषमुक्त और दया का पात्र बनाना। आरक्षण जिसे ख़ुद अंबेडकर ने 10  साल से ज्यादा नही चाहा और जिसे ये लोग मसीहा मानते है उसके बनाए हुए नियम को ख़ुद तोड़ते है सिर्फ़ अपनी आरक्षण नाम कि लत को पूरा करने के लिए। वैसे भी जब किसी को बिना किए सब कुछ मिलने लगता है तो मेहनत करने से हर कोई जी चुराने लगता है और वह आधार तलाश करने लगता है जिसके सहारे उसे वो सब ऐसे ही मिलता रहे। यही आधार आज के आरक्षण भोगी तलाश रहे है। कोई मनु को गाली दे रहा है तो कोई ब्राह्मणों को।  कोई हिंदू धर्म को तो कोई पुराणों को। कुछ लोग वेदो को तो कुछ लोग भगवान को भी।  परन्तु ख़ुद के अन्दर झाँकने का ना तो सामर्थ्य है और ना ही इच्छाशक्ति। जब तक अयोग्य लोग आरक्षण का सहारा लेकर देश से खेलते रहेंगे तब तक ना तो देश का भला होगा और ना समाज का और ना ही इनकी जाति का। देश के विनाश का कारण है आरक्षण। आज हर जाति में अमीर है हर जाति में गरीब। हर जाति में ज्ञानी लोग है और हर जाति में अज्ञानी। हर जाति में मेहनत कश लोग है और हर जाति में नकारा,हर जाति में नेता है और हर जाति में उद्द्योगपति। देश को तोड़ रहा है सिर्फ़ जातिवाद वो भी कुछ लोगो की लालसा, वोट बैंक की राजनीति के माध्यम से।  जिस दिन हर जाति के लोग जात पात भुलाकर योग्यता के बल पर आगे जायेंगे और योग्यता के आधार पर देश का भविष्य सुनिश्चित करेंगे देश ख़ुद प्रगति के रास्ते पर बढ़ चलेगा।

मरने से पहले किसी का ऋण लेकर न मरना यह वाक्य कहने वाला भारत जैसा देश,अरबों रुपयों के विदेशी कर्ज का ऋणी है। अल्प परिमाण में जो स्वाभिमान है वह सिर्फ भारतीय इतिहासकारों ने बचा रखा है। अतः गणतंत्र को पुनः जीवित करने के लिए स्वदेशिता,स्वभिमानिता,स्वाधीनता एवं स्वावलम्बन को अपने निजी जीवन में उतारना होगा।

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