कर्तव्य (स्त्री का रक्षक)

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भावनाओं की उत्कृष्टता का,
आदर्शवादिता का, प्रेम –
समर्पण का समुद्र भरता है
दिव्य ग्रंथ रामायण महकाव्य गढ़ता है।।

एक बूढ़ा पक्षी
एक स्त्री की रक्षा करता है,
उम्र से हारा जटायू भी
एक विचार करता है,
तू काहे इस झगड़े में
पड़ता है,
अपने पेड़ पर बैठा रह,
मन की कमजोरी से हारा है
तभी जटायू का वर्चस जागा है
बूढ़ा हुआ तो क्या हुआ
अनीति के विरुद्ध संघर्ष तो
कर सकता हूं
एक स्त्री की रक्षा में भी कर सकता हूं।।

रावण ने कहा
पक्षी तू पागल मारा है
तू कर नहीं सकता
मुकाबला मेरा है।।

पक्षी का संवाद निराला है
जीत नहीं सकता तुझसे में
पर जीत जाना ही नहीं गवारा है,
हार जाना भी काफी है, और
एक स्त्री की रक्षा में मर जाना
भी गवारा है।।

मारा जाने पर भी
में विजयश्री बन जाऊंगा
पर जीते जी तुझ जैसे
राक्षस को एक स्त्री का मान
घटने न दे पाऊंगा।।

साहसी जटायू
आदर्श के लिए
मर मिटने वाला है ,
और यहां
हर एक के मन में रावण जिंदा है
लुटती है आबरू स्त्री की
हर एक के मन में
आज भी दुशासन जिंदा है ।।

संध्या शर्मा

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