राजनीति

आरक्षण

संदीप उपाध्याय

आरक्षण नाम सुनते ही, एक भयानक अनुभूति जैसा लगता है, हो सकता है कि मेरे साथ इस आरक्षण के कारण कई मौके चले गए है इसलिए ऐसा लगता है, हालाकि ये सिर्फ एक आदमी की कहानी नहीं हो सकती, जब आप किसी को उठाते है तो साथ में किसी को नीचे दबा भी देते है क्योकि बिना किसी को दबाये कुछ उठाना संभव नहीं है, या यु कहे तो गलत नहीं होगा की आरक्षण रूपी सुरसा अपने मुह में होनहार लोगो के भविष्य को निगल रही है , लेकिन सत्ता की राजनीती करने वाले, सत्ता लोलुप नेता अपनी ओछी राजनीतिक हेतु को साधने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहता है, एसे लगता है की हर पार्टियों में होड़ सी लग गयी है की कौन कितना आरक्षण लोगो को दे सकता है,

कुछ दशक अगर हम पीछे जाये, जब आजादी मिली तब कहा गया था की आरक्षण पिछड़े लोगो को आगे बढ़ाने के लिए जरुरी है, कुछ हद तक सही भी था, जिसकी सीमा ५० वर्षों की थी, जो २००० इसवी में ख़तम भी हो गयी, लेकिन अगड़ो की पार्टी कही जाने वाली मौजूदा बीजेपी सरकार ने कहा था ये जरी रहेगा, शायद उनको अपनी पार्टी को सरकार को चलाना था इसलिए ऐसा निर्णय लेना पड़ा.

सवाल आरक्षण पर उठाना लाजमी है, क्योकि कितने प्रतिशत ऐसे लोग है जो पिछड़ी जाति के है और गरीब है उनको आरक्षण का फायदा मिलता है, जिसका जबाब है बहुत कम, क्योकि इसका फायदा वो उठाते है जो पिछड़ी जाति से तो आते है लेकिन उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति ख़राब नहीं है, और सही जरुरत मंदों तक बहुत कम ही इसका फायदा मिलता है,

सारी पार्टिया ये सोचती है की अगर आरक्षण के विरूद्ध हमने कुछ कह दिया तो हमारी सरकार गिर जाएगी या पार्टी के भविष्य के लिए ठीक नहीं रहेगा, शायद सच भी है, क्यों की अब पोलिटिक्स समाज सेवा की लिए नहीं रह कर, अब एक अच्छा करीअर बन गया है जिसको चमकाने के लिए ये, होनहार नेता कुछ भी कर सकते है,

एक वाकया याद आया जिसमे एक पत्रकार मित्र ने आरक्षण के हिमायती एक नेता से पूछा था की, आपको एसा नहीं लगता की एक अच्छा अंक पाने वाला डॉक्टर या इंजिनियर अच्छा रिजल्ट दे सकता है बनिश्पत एक कम अंक पाने वाले डॉक्टर या इंजिनियर से, इसके जबाब में होनहार नेता ने कहा की, ये हमारे देश के हित में होगा. ये बात देश के हित में हो न हो लेकिन पार्टी के हित में तो जरुर था .

सही मायनों में आरक्षण के लिए सिर्फ और सिर्फ एक ही कटेगरी है और वो है गरीबी, किसी भी जाति का व्यक्ति क्यों न हो, अगर उसकी आर्थिक स्टीथी अच्छी नहीं है तो उसे आरक्षण मिलना चाहिए, तभी सही मायनों में जरुरतमंदों को लगेगा की हमारे साथ सरकार छल नहीं कर रही है, नहीं तो आज की अगड़ी जाति के लोग सरकार के हर योजनाओ में अपने आप को छला हुआ महसूस कर रहे है, जो भारत के भविष्य के लिए ठीक नहीं है, कभी कभी ऐसा लगता है की सौतेला जैसा व्यवहार सरकार उनके साथ कर रही है,

अभी कुछ दिन पहले सुश्री मायावती को नयी सनक चढ़ी है ब्राह्मणों को आरक्षण देने की, शायद उन्होंने ये सोच लिया है की UP में २२% के आस पास पिछड़ी जातिया है, और अगर ब्राह्मणों का सहयोग मिल गया तो मुझे कोई नहीं हरा पायेगा, क्योंकी चुनावी समीकरण है की ज्यादे से ज्यादे ५०-६० % वोटिंग होती है जिसमे किसी भी पार्टी को अगर ३०% अगर मिल जाये तो वो जीत जायेगा, लेकिन ये भी सच है की ये जनता है सब जानती है.

सारी पार्टी एक बिज़नस प्रोमोटर की तरह अपने- अपने पार्टी का ऑफर लेकर जनता के सामने मैदान में आ गयी है.

हालाकि इसमें आरक्षण का पत्ता हर पार्टियों ने तुरुप के रूप में इस्तेमाल किया है, इस बार कितना कारगर होगा अभी कहना मुश्कल है, लेकिन एक बात तो तय है की अगर इसी तरह जाति – पाति और बटवारे की राजनीती होती रही तो, इक्कीसवी सदी में इतनी ओछी मानसिकता से इस देश का कितना विकास होगा ये शंदेह का विषय है.

पार्टियो को चाहिए की सिर्फ देश के विकास की बात करे, इस देश से गरीबी और भुखमरी की समस्या, बेरोजगारी की समस्या से निजाद दिलाने के लिए, शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए, भ्रष्टाचार को ख़तम करने के लिए कोई कारगर मुद्दा अपनाये, तभी सही मायनों में हर भारतीय को लगेगा की वो छला नहीं जा रहा है .