कविता साहित्‍य

 ऋतुराज बसन्त


सखि,बसन्त आ गया ।
धरती पर  छा  गया ।।
ख़ुशियाँ बरसा गया ।
सबके मन भा गया ।।
सरसों से खेत  सजे।
सबका मन मोह रहे।।
आमों में बौर  लदे ।
कुहू कुहू भली लगे ।।
बाग़ों में फूल खिले ।
भौंरे  हैं  झूम चले ।।
मन्द मन्द पवन  चली ।
मन की कली है खिली।।
शिशिर शीत भाग गया।
सुखद समय आ गया ।।
चहुँदिशि है छा गया
सौरभ  सरसा गया ।।
सखि, बसन्त आ गया ।
सुषमा बिखरा  गया ।।
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– शकुन्तला बहादुर