सखि,बसन्त आ गया ।
धरती पर छा गया ।।
ख़ुशियाँ बरसा गया ।
सबके मन भा गया ।।
सरसों से खेत सजे।
सबका मन मोह रहे।।
आमों में बौर लदे ।
कुहू कुहू भली लगे ।।
बाग़ों में फूल खिले ।
भौंरे हैं झूम चले ।।
मन्द मन्द पवन चली ।
मन की कली है खिली।।
शिशिर शीत भाग गया।
सुखद समय आ गया ।।
चहुँदिशि है छा गया
सौरभ सरसा गया ।।
सखि, बसन्त आ गया ।
सुषमा बिखरा गया ।।
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– शकुन्तला बहादुर
बहुत सुन्दर. आप के यहाँ बसन्त आ गया. हमारे यहाँ सच में बाहर हिमपात हो रहा है. पर आज पिघलनेवाला हिमपात है. साथ आपकी सुन्दर कविता पढकर प्रफुल्लित हूँ.
धन्यवाद.