सत्ता के दुरूपयोग से बढ़ी वाड्रा की संपत्ति

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संर्दभः अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट का दावा

-प्रमोद भार्गव-
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सत्ता के दुरूपयोग से आर्थिक साम्राज्य कैसे खड़ा किया जा सकता है, इसका ताजा उदाहरण दुनिया की सबसे ताकतवर महिला हस्ती सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की बेटी प्रियंका गांधी के पति और राहुल गांधी के बहनोई वाड्रा की एकाएक बड़ी आर्थिक हैसियत का सनसनीखेज खुलासा अमेरिका के प्रतिष्ठित अखबार ‘द वॉल स्ट्रीट जर्नल‘ ने किया है। इस खुलासे में रॉबर्ट ने महज एक लाख की पूंजी से 375 करोड़ रुपए कैसे बनाए इस रहस्य का पर्दाफाश किया गया है। हालांकि वाड्रा के अनुचित ढंग से फैले इस अरबों के कारोबार के रहस्य से पर्दा दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ अरविंद केजरीवाल भी उठा चुके हैं। तब कांग्रेस के दिग्गज नेताओं ने हास्यास्पद ढंग से केजरीवाल के दावों का खंडन किया था, लेकिन अब बदले परिदृष्य में उनके मुंह सिले हुए हैं।

44 साल के रॉबर्ट वाड्रा सिर्फ दसवीं तक पढ़े हैं। अपने देश में दसवीं के प्रमाण-पत्र को बाबू की नौकरी की पात्रता भी नहीं है। लेकिन जब आप किसी राजनीतिक घराने के वंष-वृक्ष से जुड़े हों तो आपको तुच्छ सरकारी नौकरी करने की जरूरत ही क्या है ? वॉल स्ट्रीट की यह खोजी रपट जमीन-जायदाद के जानकारों से बातचीत, रॉबर्ट वाड्रा की कंपनियों की फाइलें और जमीनों से संबंधित दस्तावेजों के आधार पर तैयार की गई है। अखबार की वेबसाइट पर भी यह खबर दर्ज है। खबर के अनुसार वाड्रा ने 2007 में एक लाख रुपए की धनराशि से शुरू की गई कंपनी से 2012 में 12 मिलियन डॉलर यानी करीब 72 करोड़ की संपत्ति बेची। जबकि फिलहाल उनके पास 42 मिलियन डॉलर यानी लगभग 253 करोड़ से ज्यादा के भूमि और भवनों पर मालिकाना हक है। मसलन वाड्रा की कंपनी ने पांच साल के भीतर सत्ता की जादुई छड़ी हवा में लहराकर 325 करोड़ रूपए से अधिक की संपत्ति बना ली। संपत्ति में यह रहस्मायी बढ़ोत्तरी चौंकाने वाली है।

खबर में दावा किया गया है कि 2004 में जब सोनिया गांधी के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन सरकार सिंहसनारूढ़ हुई, तब उनके दामाद वाड्रा सस्ते गहनों के निर्यात का व्यापार बहुत छोटे पैमाने पर करते थे। 2007 में वडरा जायदाद के कारोबार में उतरे और स्काई लाइट हॉस्पिटेलिटी प्राइवेट लिमिटेड नाम से एक कंपनी बनाई। कॉरपोरेट ऑफ अफेयर्स मंत्रालय के मातहत काम करने वाले रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज के मुताबिक इस कंपनी की शुरूआत वाड्रा ने महज एक लाख की पूंजी से की थी, जिसने बहुत छोटे समय में चौंकाने वाली तरक्की करके मेहनतकश कारोबारियों को हैरत में डाल दिया। क्योंकि ऐसा क्रोनी कैपिटल मसलन आवारा पूंजी के इस्तेमाल बिना संभव ही नहीं है। इस लंपट पूंजी की लंपटता के बरक्ष अच्छे-अच्छों के ईमान डोल जाते हैं। फिर जिस समय वडरा ने जायदाद के कारोबार की बुनियाद रखी थी, तब वे न केवल जबरदस्त आर्थिक संकट झेल रहे थे, बल्कि अपने परिवार में हो रहीं लगातार अकाल मौतों के चलते मानसिक परेशानी से भी गुजर रहे थे। इस विपरीत परिस्थिति में उन्हें इस लंपट पूंजी ने जीने की नई जमीन तैयार करने का काम किया।

रॉबर्ट वाड्रा की इस अनुपातहीन संपत्ति का दस्तावेजी साक्ष्यों के साथ सिलसिलेवार खुलासा सबसे पहले आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने किया था। किंतु तब दिग्गज कांग्रेसियों ने आगे आकर सफाई दी थी कि रॉबर्ट वाड्रा ने सब कुछ वैधानिक तरीकों से हासिल किया है। लेकिन इस वैद्यता की प्रमाणिकता के संबंध में सफाईगीर कोई प्रमाण पेश नहीं कर पाए थे। तत्कालीन कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने तो चाटुकारिता का चरम पेश करते हुए कहा था कि सोनिया गांधी ने हमें मंत्री बनाया है, इसलिए हम उनके लिए जान भी दे सकते हैं। कर्नाटक के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज भी मर्यादा की सभी सीमाएं लांघकर सफाई अभियान की बहती गंगा में डूबकी लगा बैठे थे। जबकि राज्यपाल संवैधानिक पद है और उसका महत्व दलगत राजनीति से उपर है। गोया, इन पदाधिकारियों ने सोनिया के उपकारों का बदला चुकाने के लिए तत्काल तो पद की गरिमा को ताक पर ही रख दिया था।

केजरीवाल ने प्रशांत भूषण के साथ उस समय वडरा की अवैध संपत्ति का जो खुलासा किया था, उसके मुताबिक 2007-08 में वाड्रा ने 50 लाख की पूंजी से अपने और अपनी मां के नाम से पांच कंपनियां पंजीकृत कराई थीं। कालांतर में 2012 तक वडरा 300 से 500 करोड़ के मालिक बन बैठे। भूमि और भवन निर्माण की बड़ी कंपनी डीएलएफ ने वाड्रा को 65 करोड़ वापसी की कोई शर्त तय किए बिना ब्याज मुक्त कर्ज दिया। इस दया के आलावा पांच फ्लैट भी वर्तमान बाजार मूल्य से कम कीमत पर दिए। कोई भी पेशेवर व्यापारी बिना किसी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष लाभ के ऐसी अनुकंपा किसी पर नहीं करता।

इस खुलासे के चार दिन बाद केजरीवाल ने नए रहस्य से पर्दा उठाकर यह भी साफ कर दिया कि डीएलएफ के मालिक केपी सिंह ने वाड्रा पर यह मेहरबानी किसलिए की थी। दरअसल, हरियाणा में कांग्रेस सरकार है। उस सरकार ने अदृष्य इशारे पर डीएलएफ को अनुचित लाभ पहुंचाया। कानून ताक पर रखकर 1700 करोड़ रूपए की 350 एकड़ जमीन डीएलएफ को दी गई। इसमें 75 एकड़ जमीन हरियाणा विकास प्राधिकरण की थी। यही नहीं राज्य सरकार ने किसानों के साथ धोखाधड़ी करते हुए गुड़गांव में जो 30 एकड़ जमीन सरकारी अस्पताल के निर्माण के लिए अधिग्रहण की थी, वह जमीन विशेष आर्थिक क्षेत्र निर्माण के लिए डीएलएफ को स्थानांतरित कर दी। इसी दौरान वाड्रा ने डीएलएफ के 25 हजार शेयर खरीदे और सेज में पचास फीसदी के भागीदार भी बन गए। इससे इस भूमि के अधिग्रहण और उसके उपयोग में परिवर्तन के सवाल भी खड़े हुए? जो भूमि जन सामान्य के स्वास्थ्य को दृष्टिगत रखते हुए अस्पताल के निर्माण के लिए तय थी, उसके बुनियादी उपयोग को दरकिनार कर कारोबारी लाभ में बदल दिया। गुड़गाव के आईएएस आधिकारी अशोक खेमका ने जब भूमि के उपयोग संबंधी परिर्वतन की जांच शुरू की तो हरियाणा सरकार ने उन्हें निलंबित कर दिया। और फिर सरकार के पिट्ठू अधिकारियों से जांच कराकर मामले की लीपापोती कर दी।

वाड्रा ने अपने दामन पर लगे दागों को धोने के लिए उस समय यह भी दावा किया था कि उन्हें अचल संपत्ति खरीदने के लिए कॉरपोरेशन बैंक ने कर्ज दिया था। जबकि बैंक की संबंधित शाखा ने इस दावे का तत्काल खंडन कर दिया था। इस कर्ज की हकीकत का पता लगाने की कोशिश किसी भी जांच एजेंसी ने नहीं की ? इन हालातों को सत्ता का दुरूपयोग करके आर्थिक साम्राज्य खड़ा कर लेना न कहा जाए तो क्या कहा जाए, यह राजनीति से जुड़े लोग ज्यादा अच्छे से जानते हैं ? बहरहाल अमेरिकी अखबार द वॉल स्ट्रीट जनरल ने अरविंद केजरीवाल की कड़ी में ही अगली कड़ी जोड़ने का काम किया है, जो सत्ता के दुरूपयोग की पुष्टि करती हैं।

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