आरएसएस और अमेरिका भाई-भाई

साम्प्रदायिकता का आक्रामक उभार और विकास हमारे देश में शीतयुद्ध के साथ तेजी से हुआ है। यह विश्व में उभर रही आतंकी-साम्प्रदायिक विश्व व्यवस्था का हिस्सा है। यह दिखने में लोकल है किंतु चरित्रगत तौर ग्लोबल है। इसकी ग्लोबल स्तर पर सक्रिय घृणा और नस्ल की विचारधारा के साथ दोस्ती है। याराना है। भारत में राममंदिर आंदोलन का आरंभ ऐसे समय होता है जब शीतयुद्ध चरमोत्कर्ष पर था।

शीतयुद्ध के पराभव के बाद अमरीका ने खासतौर पर इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ हमलावर रूख अख्तियार कर लिया है। इसके नाम पर अंतर्राष्ट्रीय मुहिम भी चल रही है, ग्लोबल मीडिया इस मुहिम में सबसे बड़े उपकरण बना हुआ है। मुसलमानों और इस्लामिक देशों पर तरह-तरह के हमले हो रहे हैं। इस विश्वव्यापी इस्लाम -मुसलमान विरोधी मुहिम का संघ परिवार वैचारिक-राजनीतिक सहयोगी है। फलत: ग्लोबल मीडिया का गहरा दोस्त है।

संघ परिवार ने इस्लाम धर्म और मुसलमानों को हमेशा विदेशी, अनैतिक, शैतान और हिंसक माना। इसी अर्थ में वे इस्लाम और मुसलमान के खिलाफ अपने संघर्ष को देवता अथवा भगवान के लिए किए गए संघर्ष के रूप में प्रतिष्ठित करते रहे हैं। अपनी जंग को राक्षस और भगवान की जंग के रूप में वर्गीकृत करके पेश करते रहे हैं। शैतान के खिलाफ जंग करते हुए वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन तमाम राष्ट्रों के साथ हैं जो शैतानों के खिलाफ जंग चला रहे हैं। इस अर्थमें संघ परिवार ग्लोबल पावरगेम का हिस्सा है। चूंकि इस्लाम-मुसलमान हिंसक होते हैं अत: उनके खिलाफ हिंसा जायज है, वैध है। हिंसा के जरिए ही उन्हें ठीक किया जा सकता है। वे मुसलमानों पर हमले इसलिए करते हैं जिससे हिन्दू शांति से रह सकें। हिन्दुओं के शांति से रहने के लिए मुसलमानों की तबाही करना जरूरी है और यही वह तर्क है जो जनप्रियता अर्जित करता जा रहा है। दंगों को वैध बना रहा है। दंगों को गुजरात में बैध बनाने में इस तर्क की बड़ी भूमिका है। ‘शांति के लिए मुसलमान की मौत’ यही वह साम्प्रदायिक स्प्रिट है जिसमें गुजरात से लेकर सारे देश में दंगों और दंगाईयों को वैधता प्रदान की गई है। यही वह बोध है जिसके आधार साम्प्रदायिक हिंसा को वैधता प्रदान की जा रही है।

संघ परिवार पहले प्रतीकात्मक हमले करता है और बाद में कायिक हमले करता है। प्रतीकों के जरिए संघ परिवार जब हमले करता है तो प्रतीकों के दबाव में सत्ता को भी ले आता है। वे कहते हैं यदि एक हिन्दू मारा गया तो बदले में दस मुसलमान मारे जाएंगे। वे मौत का बदला और भी बड़ी भयानक मौत से लेने पर जोर देते हैं। वे मुसलमानों की मौत के जरिए व्यवस्था को चुनौती देते हैं। हिन्दुओं में प्रेरणा भरते हैं। व्यवस्था को पंगु बनाते हैं। अपने हिंसाचार को व्यवस्था के हिंसाचार में तब्दील कर देते हैं। साम्प्रदायिकता आज पिछड़ी हुई नहीं है। बल्कि आधुनिकता और ग्लोबलाईजेशन के मुखौटे में जी रही है। मोदी का विकास का मॉडल उसका आदर्श उदाहरण है।

इस्लाम, मुसलमान के प्रति हिंसाचार, आधुनिकतावाद और भूमंडलीकरण ये चारों चीजें एक-दूसरे अन्तर्गृथित हैं। इस अर्थ में साम्प्रदायिकता के पास अपने कई मुखौटे हैं जिनका वह एक ही साथ इस्तेमाल कर रही है और दोहरा-तिहरा खेल खेल रही है।

आज प्रत्येक मुसलमान संदेह की नजर से देखा जा रहा है। प्रत्येक मुसलमान को राष्ट्रद्रोही की कोटि में डाल दिया गया है। मुसलमान का नाम आते ही अपराधी की शक्ल, आतंकवादी की इमेज आंखों के सामने घूमने लगती है। कल तक हम मुसलमान को नोटिस ही नहीं लेते थे अब उस पर नजर रखने लगे हैं। इसे ही कहते हैं संभावित अपराधीकरण। इस काम को संघ परिवार और ग्लोबल मीडिया ने बड़ी चालाकी के साथ किया है। इसे मनोवैज्ञानिक साम्प्रदायिकता भी कह सकते हैं।

साम्प्रदायिक दंगों को संघ परिवार साम्प्रदायिक दंगा नहीं कहता,बल्कि जबावी कार्रवाई कहता है। यही स्थिति भाजपा नेताओं की है वे भी साम्प्रदायिक दंगा पदबंध का प्रयोग नहीं करते। बल्कि प्रतिक्रिया कहते हैं। उनका तर्क है हिंसा हमेशा ‘वे’ आरंभ करते हैं। ‘हम’ नहीं। साम्प्रदायिक हिंसाचार अथवा दंगा कब शुरू हो जाएगा इसके बारे में पहले से अनुमान लगाना संभव नहीं है। इसी अर्थ में दंगा भूत की तरह आता है। भूतघटना की तरह घटित होता है। दंगा हमेशा वर्चुअल रूप में होता है सच क्या है यह अंत तक नहीं जान पाते और दंगा हो जाता है। हमारे पास घटना के कुछ सूत्र होते हैं,संकेत होते हैं। जिनके जरिए हम अनुमान कर सकते हैं कि दंगा क्यों हुआ और कैसे हुआ। दंगे के जरिए आप हिंसा अथवा अपराध को नहीं रोक सकते। (संघ परिवार का यही तर्क है कि दंगा इसलिए हुआ क्योंकि मुसलमानों ने अपराध किया, वे हिंसक हैं), दंगे के जरिए आप भगवान की स्थापना अथवा लोगों की नजर में भगवान का दर्जा भी ऊँचा नहीं उठा सकते।

दंगे के जरिए आप अविवेकपूर्ण जगत को विवेकवादी नहीं बना सकते। मुसलमानों का कत्लेआम करके जनसंख्या समस्या का समाधान नहीं कर सकते। मुसलमानों को भारत में पैदा होने से रोक नहीं सकते। मुसलमानों को मारकर आप सुरक्षा का वातावरण नहीं बना सकते। मुसलमानों को पीट-पीटकर तटस्थ नहीं बनाया जा सकता। मुसलमानों की उपेक्षा करके, उनके लिए विकास के सभी अवसर छीनकर भी सामाजिक जीवन से गायब नहीं कर सकते। हमें इस वास्तविकता को स्वीकार करना होगा कि मुसलमान और इस्लाम धर्म हमारी वैविध्यपूर्ण संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। आप इस्लाम और मुसलमान के खिलाफ चौतरफा आतंक और घृणा पैदा करके इस देश में सुरक्षा का वातावरण और स्वस्थ लोकतंत्र स्थापित नहीं कर सकते।

मुसलमान और इस्लाम लोकतंत्र के लिए खतरा नहीं है। लोकतंत्र को कभी अल्पसंख्यकों से खतरा नहीं हुआ बल्कि बहुसंख्यकों ने ही लोकतंत्र पर बार-बार हमले किए हैं। जिन दलों का बहुसंख्यकों में दबदबा है वे ही लोकतंत्र को क्षतिग्रस्त करते रहे हैं। आपात्काल, सिख जनसंहार,गुजरात के दंगे,नंदीग्राम का हिंसाचार आदि ये सभी बहुसंख्यकों के वोट पाने वाले दलों के द्वारा की गई कार्रवाईयां हैं। मुसलमानों के खिलाफ हिंसाचार में अब तक साम्प्रदायिक ताकतें कई बार जीत हासिल कर चुकी हैं। साम्प्रदायिक जंग में अल्पसंख्यक कभी भी जीत नहीं सकते बल्कि वे हमेशा पिटेंगे।

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

15 COMMENTS

  1. जगदीश भाई कभी आतंकवादियों की नीति की भी आलोचना कर दीजिये क्योंकि ब्लॉग लेखन तो फोकटिया है एक भारतीय होने के नाते हमलों मैं मरने वालों के लिए इतना तो आप कर सकते हैं. अगर नहीं तो अपने लेख के लिए मिलनेवाली प्रोत्साहन राशी का विवरण जरूर सार्वजानिक करें. आपने आलोचना विषय का गंभीर अध्यन किया है, अब लोगो को पता भी तो चलना चाहिए की आप किसी की भी आलोचना करने मैं विशेषज्ञ हैं. यंहा तो आपको आपके लेख के विरोध मैं १५ टिपण्णी भर ही मिली हैं. अगर पाकिस्तान मैं होते तो आपको वामपंथ छोड़कर किस पंथ की और भागना पड़ता इसकी कल्पना भी आप नहीं कर सकते.

  2. aap ko sharam kyu nahi ayie likhte he……………………muslim videshi nahi to kaun hai………tell me…crist bharat me kaha paida hue…muslimo ka makka bharat me kis place me hai..agar muslim aur crist videshi dharma nahi hai to hindu dharam videshi dharma hoga..hitory ki jaan kari nahi hai…to aisi bakbaas na likhe…me aaj ke muslimo crist ko videshi nahi manta coz ye yahi paida hue hai……..par aap ko maana pade ga………….ye dharam bhara se yaha aye hai.

    kaun sa padari jaa kar himalya me tapshya karta hai,ya msulimo me kitne log snyashi bante hai …………khula bole ye dono dharma yaha ke nahi hai…par inko bharat me rahne aur jeene ka bura hak hai………aap hitory badal de mugal akrman kari nahi theye british rule yaha hua nahi…agar aap ye kar sakte ho to hum bhi maan lege…muslim aur crist bharat me born hue relggion hai…..likhna bahut hai…….par aaj bas itna hee…….me sanghi nahi.me humanship par belive karta hun par truth truth hai…i want hindu msulim bhai bhai…….mil kar rahe crist.

  3. रमेन्द्रजी,ब्लॉग लेखन फोकटिया लेखन है, यहां लिखने पर खर्चा आता है,पढ़ने का भी दाम देना होता है, संघ बड़ा संगठन है,उसकी सामाजिक-राजनीतिक भूमिका है।उसकी नीतियों की खुली आलोचना होनी चाहिए,आलोचना और असहमति लोकतंत्र की धुरीहै,इसे नष्ट करने अथवा हाइजैक करने का हक किसी को नहीं है। मोदी और संघ की आलोचना पेश करने का मकसद है इनके प्रति नीतिगत असहमति व्यक्त करना। संघ का सारा खेल सार्वजनिक है और उसकी निर्ममता से सार्वजनिक आलोचना होनी चाहिए। मेरी आलोचना किसी आग्रह पर आधारित नहीं है।

  4. चतुर्वेदी जी बधाई हो , जिस काम के लिए आपको पैसे मिलते है उसे आप बखूबी निभा रहे है !
    एक काम और कीजिये , किसी दिन समय निकाल के या अगर खली हो तो अभी ,RSS के झंडेवालान स्थित कार्यालय में जाकर उन्हें धन्यवाद दे दीजिये क्योंकि आपकी कमाई का जरिया तो RSS ही है न ! आशा करता हूँ की आप अपने रोजगार देने वाले का एहसान जरुर मानेंगे ! या एक और आसन तरीका है , एक लेख लिखके उन्हें धन्यवाद दे दीजिये ! शुभ काम में देरी नहीं !……

  5. Mera vichaar hai ki jadad ke ishwar evam chaar vedon ke gyaata kahalaane wale ko apne dharm ko gali shayad aisa likhne ke paise miltein honge. Dukh to tab hota hai ki pravakta jaisa munch aise behude vichaar ke liye uplabdh kara diya jaata hai.

    Bhai saheb se koi puchhe ki RSS Aur America mein kis aadhar per samanta hai.
    Jaraa chaturvedi ji batayein ki bharat ke tukde karane ki maang kiski thi. Kolkata ka direct action kiska tha. Pakistan evam bangladesh ke hinduon ka 1947 ke samay mein jo pratishat tha wah kahan gaya. Unke astitva va adhikaaron ki baat uthana shayed inhein paise nahin dila sakti.

    Muslim deshon mein hinduon ke vaise adhikaar dilane ki baat bhi ye mahashaya karna pasand nahin karenge jo kuchh musalmano ko hindu bahul hindustan mein mil rahein hain.

    Kashmir ke hinduon ke baare mein inhein dikhai nahin deta jo apne hi desh mein hindu bahul loktantra ke jhande ke neeche nishkashit jeevan ji rahein hain.

    Hai Ishwar inhein sadbudhi dena inhein nahin maloom ye kya kar rahein hain.

  6. पाठकों बुरा न मानो. इस तरह के लेख सिर्फ दो ही परिस्थितिओं में लिखे जाते हैं. बिक जाने पर या मज़बूरी में. कदाचित पहली वाली परिस्थिति ही लागू पड़ रही है. विदेशी आक्रमणकारिओं ने अपने कुकर्मों का औचित्य समझाने के लिए बहुत से सिक यु लायर भोंपू खरीद रक्खे हैं – झेल लीजिये.

  7. I completely disagree with Shri Jagdishwar Chaturvedi. Sangh work is not in opposition to any individual, group, community or country. It performs positive work for healthy development of individual mind, and society. Sangh is not against any community. Sangh is an organization whose moto is “Sarve Bhavantu Sukhinah”. It works to develop character among people and make them socially responsible.
    Mr. Jagdishwar Chaturvedi can visit any sangh shakha and validate my comments.

  8. * the 1809-1811 Hindu-Muslim Lat Bhairo riots
    * the 1921 Moplah Rebellion
    * the 1931 Hindu-Muslim Benares riot
    * the 1931 Cawnpore(Kanpur) Riots
    * Manzilgah and Sukkur (Sind) Riots, 15th Feb. 1940
    * the 1946 Calcutta riots death toll estimated at 6,000, most of the victims were Hindus.
    * the 1947 “population exchanges” at the partition of India, resulting in an estimated 500,000 deaths.
    * the 1984 anti-Sikh riots in which the Congress party played a major active role in the killing of more than 3,000 Sikhs following the assassination of Indira Gandhi.
    * the 1992 Bombay Riots in Bombay more than 200,000 people (both Hindus and Muslims) fled the city or their homes during the time of the riots.
    * the 1998 Wandhama massacre, 25 Hindu victims.
    * the 2000 Chittisinghpura massacre, 35 Sikhs killed.
    * the 2002 Godhra Train Burning, 58 Hindus killed.
    * the 2002 Gujarat violence, 900-2000 dead, mostly Muslims
    * the 2002 Kaluchak massacre, 31 Hindus killed.
    * the 2002 Marad massacre, 14 Hindu deaths.
    * the 2006 Kherlanji massacre, lynching of four Dalits.
    * the 2008 Indore Riots, 7 people killed, 6 of whom were Muslims
    * the 2007–2009 religious violence in Orissa, Christians mostly targeted

    source
    https://en.wikipedia.org/wiki/Communalism_(South_Asia)

    please when you remember godhra remember all. i have a much larger list of riots inclusive(BHAGALPUR RIOTS) but i think it is enough for you. when you say that the villagers who become maoists are economically, physically, socially and mentally exploited. same case with hindus when they are killed BUT our government is unable to give them justice due to minorities vote bank. hindus feel safe with RSS this is why RSS and BJP progresses in whole country like maoists. it is the failure of CONGRESS or you can say it is the policy of CONGRESS (Divide And Rule).

  9. लेखक जी आपने लेख तो लिख लिया पर ये हिन्दुस्थान है इसीलिए यहाँ सब माफ़ है …..कभी हमारे देश कोई मुस्लिम चित्रकार आता है और हमारे आस्थाओ के नंगी तस्वीरे बना के चला जाता है …पर क्या कभी कोई पाकिस्तान जाके वहा के खुदा के साथ ऐसी खिलवाड़ कर पायेगा …ज़रा इस बात को सोचियेगा फिर संघ के बारे में बोलियेगा

  10. प्रिय लेखक जी आप संघ के बाहर रहकर संघ की नीतियों को समझ नहीं सकते ….संघ राष्ट्रीयता के लिए समर्पित है और संघ कहता है की हर वो इंसान जो हिन्दुस्थान में रहता पहले वो हिंदुस्थानी है फिर बाद में वे हिन्दू , मुस्लिम , सिख या ख्रिस्तियन है ….पहले किसी भी चीज़ को बुरा बोलने से पहले उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए ….

  11. संघ किसीभी प्रतिक्रियात्मक तत्त्वोंपर खडा नहीं है।डॉ. हेडगेवार कहते थे, प्रतिक्रियात्मक संगठन अल्पजीवी होते हैं। विरोधी यदि ना रहा, तो संगठन समाप्त हो जाता है। संघ यह शुद्ध राष्ट्रीय संगठन है। राष्ट्र, राष्ट्र और राष्ट्र। इसके बिना और कोई प्रेरणा नहीं। वह “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ है। “राष्ट्रीय” को अधोरेखित करें। ठीक समझमे आ जाएगा। कभी मुज्जफर हुसैन, जो आर एस एस के विषयमे सकारत्मक लिखते हैं,उन्हे पढे। गुलाम बिरासदार दस्तगिर, जिनके बच्चे संघमे जाते है। और, पुणेके स्व. हमीद दलवाई(सत्य शोधक समाज स्थापक) जिनको, उनके समाजने, “जाति बाहर” करनेपर, उनकी बेटीसे( कोइ मुस्लिम विवाह ना करनेपर) संघका तृतीय वर्ष शिक्षित स्वयंसेवक विवाहित हुआ है।बांसवाडा, राजस्थानके, अज़िज हुसैन, जिनके बेटे संघकी O T C मे गये थे। R S S, A Vision in Action पढे।भारतके हितमे, प्रार्थना है, सच्चाई को उद्‍घाटित करें।

  12. Bakwas likha hai. pandit Ji ko Islam ka itiahas padhna chahiye. Darul- harb aur Darul Islam ko thik se samajhna chahiye. Ismein Unki koi galti nahin hai. Bengal ki bam sarkar ne unhe isi liye to naukri diya hai ki boh is tarah ki bakwas ko logon mein jor jor se pheilayen. Ise jari rakhen aur apna namak ka farz ada karen.

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