राजनीति

ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को क्या हो गया है?

ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को क्या हो गया है।  ये ज्ञान, शील, संस्कार और शुचिता कि बात करता था। ये बार इसके लोगो कि सरकार क्या बनी, सब धुल गया। कोई ऐसी बुराई नही थी जिसमे इसके प्रमुख लोग लिप्त नही पाये गए हो। देश को सब याद है। अपने आदर्शो कि ओ हालत देख कर जो कार्यकर्ता मचल कर उस पाले में गिर सकता था, ओ भी जा गिरा और जो नही गिर पाया उसने शाखाओ से किनारा कर लिया। पहले बहुत जगहों पर शाखाये दिख ती थी चाहे सुबह घूमने के शौकीन लोग ही क्यों ना उसमे भी खड़े हो जाते हो, लेकिन उन्होंने भी जब असलियत देखा कि सत्ता से दूर बैठ कर आलोचना करना और तरह के नारे देना एक बात होती है, सत्ता से दूर बैठ कर चेहरा साफ रखना एक बात होती है पर ये लोग उन लोगो से लाख गुना बुरे साबित हुए जो ५० साल से सत्ता में है और ओ भी सत्ता चंद दिन देखते ही, तों उन लोगो ने भी किनारा कर लिया और आज शाखाओ कि कि संख्या १/१० भी न ही रह गयी है। शायद जो तिलस्मी था संघ का ओ कही दरक रहा है। बहुत कोशिश कर के भी पुनः जोड़ नही पा रहे है लोगो को। उधर अयोध्या के फैसले ने दंगा फ़ैलाने और उस बहाने खुद को पुनः फ़ैलाने का एक अवसर भी हाथ से छीन लिया।

दो बयान दोनों संघ का नया चेहरा दिखाते हुए। जैसे संघ अन्य संगठनो कि तरह जगह जगह धरने पर बैठा, ये अलग बात है कि भा ज पा, बजरंग दल इत्यादि सारे संगठनो के शामिल होने के बावजूद धरना पूरी तरह फ्लॉप रहा, कही भी सैकड़ो से आगे संख्या नही बढ़ पाई। बंद मुट्ठी थी संघ कि खुल गयी। कही ना कही विश्वास, विश्वसनीयता, लक्ष्य के प्रति भ्रम, रास्ते के प्रति भ्रम, जैसे तमाम कारणों ने संघ को गिरफ्त में ले लिया है। बहुत से लोगो कि तरह एक बार बनी सरकार ने जो भटकाव पैदा किया, जो चेहरे पर रंग पोता उसे छुड़ाने का कोई रास्ता नही दिख रहा है। एक खास मराठा कौम को सर्व्श्रेस्थ मान कर और हिटलर को आदर्श मान कर उसी के लक्ष्य और रास्ते को स्वीकार कर बना संगठन कुछ ही वर्षो में नीति, नीयत और नेतृत्व सभी दृष्टीयो से भटकाव का शिकार दिख रहा है। वहा चूँकि बहस और तर्क कि कोई गुंजाईश ही नही है इसीलिए कभी किसी और नहीं ये पूछा ही नही कि संघ का सारा असली नेतृत्व केवल एक खास मराठा जाती के पास क्यों ? रज्जू भैया का चेहरा कुछ दिन सामने रखा गया कि कोई ये सवाल ना कर दे परन्तु ताकत उनके पास नही थी।

मै दो बयानों का जिक्र कर रहा था। एक बयान सर संघचालक का कि संघ तों आतंकवादी नही है कुछ संघ से जुड़े लोग हो सकते है पर अब ओ संघ के साथ नही है। इसमें उन आरोपों को अपने आप स्वीकार कर लिया है संघचालक ने कि सघ आतंकवाद के रास्ते पर चल पड़ा है। इस बयान को किसी खास चश्मे से नही बल्कि स्वतंत्र तरीके से जो भी देखेगा और चिंतन करेगा ओ समझ जायेगा कि शुचिता कि बात करने वाले, बार बार दंगे कराने वाले और एक बार भारत का दिल तोड़ने वाले, आजादी कि लड़ाई में मुखबिरी करने वाले और जिस आपातकाल कि सबसे ज्यादा चर्चा करते है, उसमे अपनों को दगा देकर एक लाख से ज्यादा कि संख्या में माफ़ी मांग कर और सत्ता का समर्थन कर जेल से निकाल आने वाले, और जिस महात्मा गाँधी को दुनिया दरश मान रही है, उस आजादी के नायक कि हत्या करने वाले अब भारत को उन देशो में शुमार कर देने का प्रयास कर रहे है जो हर वक्त मौत, दंगे और अ निश्चितता के मुहाने पर खड़े रहते है। ये अलग बात है कि यह बात खुल जाने के बाद इनका शक्ल दिखाना भी मुश्किल हो जायेगा। अभी आये अदालती फैसले के समय इनके देश को दंगे कि आग में झोकने तमाम प्रयासों को जिस तरह भारत ने ठुकराया और ये बता दिया कि भारत बदल रहा है।इसका लोकतंत्र मजबूत होकर उभर रहा है। भारत कि नयी पीढ़ी ने लक्ष्य तय कर लिया है और उस लक्ष्य में किसी भी भटकाव और दंगे कि कोई गुंजाईश नही है। अगर उसके बाद भी ये संगठन अभी अपने तरीको से ही चलना चाहता है तों भारत में उन लक्ष्यों और तरीको के लिए कोई जगह नही है।

दूसरा बयान दिया पूर्व संघचालक ने कि सोनिया गाँधी जिन्होंने अपने परिवार और सिन्दूर कि क़ुरबानी देखी ओ गद्दार है, उन्होंने हत्याओ कि साजिश कि और ओ सोनिया गाँधी जिन्होंने भारत जैसे बड़े देश को का प्रधानमंत्री का पद दो बार ठुकरा दिया ओ और पता नही क्या क्या है। भारत कि जनता सब जानती है, सब देखती है। उसने देखा है कि जिसे भगवान कहा उसी राम को सत्ता के लिए धोखा किसने दिया। भारत कि जनता ने सुना है ओ बयान कि एक मंदिर के लिए सत्ता को नही गवा सकते। भारत कि जनता ने देखा है कि जब तक सरकार थी संघ से लेकर तथा कथित साधू संत और सभी हिंदूवादी संगठन कही खो गए थे या मिट्टी के मोल अपने तथा कथित आश्रम के लिए जमीने कब्ज़ा रहे थे या वो सब कर रहे थे जो भारत कि जनता ने सी डी में देखा। संघ पहले सत्ता में घुसा और अब बहुत ही फूहड़ तरीके से सड़क के किनारे ही नही आ गया बल्कि फूहड़ भाषा और विचार के साथ आ गया। संघ कि सदस्यता कि सूची अगर जारी कर दी जाये तों भारत में सामने कुछ और सत्य अ जायेंगे। एक अभियान चला कर देखना चाहिए कि इस देश में जमा खोरी कौन लोग करते है जिससे समान कम पड़ जाता है, और फिर मुनाफाखोरी कौन लोग करते है। मिलावट कर जनता के जीवन से खिलवाड़ कौन करते है। जरा गौर से देखिये और फिर पहचानिए कि ये किस संगठन से जुड़े है। वह रे ज्ञान, शील, शुचिता, संस्कार और पता नही क्या क्या। आप धन्य भी है और धान्य भी है पर दुनिया के साथ दौड़ाने वाले भारत को आप मंजूर नही है, आप के षड़यंत्र मंजूर नही है, किसी और गाँधी या आप के ही दीन दयाल उपाध्याय कि हत्या मंजूर नही है, दंगे मंजूर नही है, ये शुचिता मंजूर नही हैऊ ये भाषा मंजूर नही है, ये अनर्गल आरोप मंजूर नही है, हिटलर के सिद्धांत मंजूर नही है। बौखालने के बजाय चिंतन करने और भारत कि मुख्य धारा में रहने के बारे में सोचे तों शायद ….और प्रारंभ सोनिया गाँधी से माफ़ी मांग कर और इतना घिनौना आरोप लगाने के लिए भारत से माफ़ी मांग कर करना चाहिए।