आरएसएस से कौन डरता है?

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में ऐसा क्या है कि वह देश के तमाम बुद्धिजीवियों की आलोचना के केंद्र में रहता है। ऐसा क्या कारण है कि मीडिया का एक बड़ा वर्ग भी उसे संदेह की नजर से देखता है। बिना यह जाने कि आखिर उसका मूल विचार क्या है। आरएसएस को न जानने वाले और जानकर भी उसकी गलत व्याख्या करनेवालों की तादाद इतनी है कि पूरा सच सामने नहीं आ पाता। आरएसएस के बारे में बहुत से भ्रम हैं कुछ तो विरोधियों द्वारा प्रचारित हैं तो कुछ ऐसे हैं जिनकी गलत व्याख्या कर विज्ञापित किया गया है। आरएसएस की काम करने की प्रक्रिया ऐसी है कि वह काम तो करता है प्रचार नहीं करता। इसलिए वह कही बातों का खंडन करने भी आगे नहीं आता। ऐसा संगठन जो प्रचार के काम में भरोसा नहीं करता और उसके कैडर को सतत प्रसिद्धि से दूर रहने का पाठ ही पढ़ाया गया है वह अपनी अच्छाइयों को बताने के आगे नहीं आता, न ही गलत छप रही बातों का खंडन करने का अभ्यासी है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि आरएसएस के बारे में जो कहा जाता है, वह कितना सच है।

जैसे कि आरएसएस के बारे में यह कहा जाता है कि वह मुस्लिम विरोधी है। जबकि सच्चाई यह है कि राष्ट्रवादी मुस्लिम मंच नामक संगठन बनाकर मुस्लिम समाज के बीच काम कर रहा है। संघ का मानना है कि यह देश तभी प्रगति कर सकता है जब उसके सभी नागरिक राष्ट्रजीवन में सामूहिक योगदान दें। संघ के एक अत्यंत वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेश कुमार मुस्लिम समाज को जोड़ने के इस काम में लगे हैं। संघ का मानना है कि पूजा-पद्धति में बदलाव से राष्ट्र के प्रति किसी समाज की निष्ठा कम नहीं होती। हमारे पूर्वज एक हैं इसलिए हम सब एक हैं। संघ किसी पूजा उपासना पद्धति के खिलाफ नहीं है, वह तो राष्ट्रमंदिर का पुजारी है। उसकी सोच है कि देश सर्वोपरि है, उसके बाद सब हैं। ईसाई मिशनरियों से भी संघ का संघर्ष किसी द्वेष भावना के चलते नहीं है, धर्मपरिवर्तन के उनके प्रयासों के कारण है। संघ का मानना है प्रलोभन देकर कराया जा रहा धर्मांतरण उचित नहीं है। शायद इसीलिए दुनिया भर में मीडिया का उपयोग कर संघ की छवि बिगाड़ी गयी। वनवासी क्षेत्रों में लोभ के आधार पर कराया जा रहा धर्मांतरण संघर्ष की एक बड़ी वजह बना हुआ है।

आरएसएस के बारे में प्रचार किया जाता है कि वह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचारों का विरोधी है। सच्चाई यह है कि आरएसएस के प्रातः स्मरण में महात्मा गांधी का जिक्र अन्य स्मरीय महापुरूषों के साथ किया गया है। स्वदेशी और स्वालंबन की गांधी की नीति का संघ कट्टर समर्थक है। वह मानता है कि गांधी के रास्ते से भटकाव के चलते ही उनके अनुयायियों ने देश का कबाड़ा किया। ध्यान दें केंद्र में वाजपेयी सरकार के समय भी आर्थिक नीतियों पर संघ के मतभेद सामने आए थे उसके पीछे स्वदेशी की प्रेरणा ही थी। कहने की जरूरत नहीं कि संघ पर गांधी जी हत्या का आरोप भी झूठा था जिसे अदालत ने भी माना। गांधी जी स्वयं अपने जीवन काल में संघ की शाखा में गए और वहां के अनुशासन, सामाजिक एकता और साथ मिलकर भोजन करने की भावना को सराहा। वे इस बात से खासे प्रभावित हुए कि यहां जांत-पांत का असर नहीं है।

संघ की राजनीति में बहुत सीमित रूचि है। राजनीति में अच्छे लोग जाएं और राष्ट्रवादी सोच के तहत काम करें संघ की इतनी ही मान्यता है। वह किसी दल के साथ अच्छी या बुरी सोच नहीं रखता बल्कि उस दल के आचरण के आधार पर अपनी सोच बनाता है। जैसे कि श्रीमती इंदिरा गांधी और राजीव गांधी की भी कुछ प्रसंगों पर संघ ने सराहना की। सरदार वल्लभभाई पटेल को भी उसने आदर दिया। जबकि ये कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए थे। संघ की राजनीति दरअसल चुनावी और वोट बैंक की सोच से उपर की है, उसने सदैव देश और देश की जनता के हित को सिर माथे लिया है। हम देखें तो संघ की समस्त राष्ट्रीय चिंताएं आज सामने प्रकट रूप में खड़ी हैं। संघ ने नेहरू की काश्मीर नीति की आलोचना की तो आज उसका सच सामने है। हजारों कश्मीरी पंडितों को अपने ही देश में शरणार्थी बनने के लिए विवश होना पड़ा। बांग्लादेशी घुसपैठ को मुद्दा बनाया तो आज पूर्वांचल और बंगाल ही नहीं पूरे देश में हमारी सुरक्षा को लेकर बड़ा संकट खड़ा हो गया है। जिसका सबसे ज्यादा असर आज असम में देखा जा रहा है। संघ ने अपनी प्रतिनिधि सभा की बैठकों में 1980 में सबसे पहले यह मुद्दा उठाया।1982,1984,1991 की संघ की प्रतिनिधि सभा के बैठकों के प्रस्ताव देखें तो हमारी आंखें खुल जाएंगीं। इस तरह राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर संघ की चिंताएं ही आज भारतीय राज्य की सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई हैं। 1990 में संघ की प्रतिनिधि सभा ने आतंकवादी उभार पर अपनी बैठक में प्रस्ताव पास किया। आज 2010 में वह हमारी सबसे बड़ी चिंता बन गया है। इसी तरह अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में 1990 में ही हैदराबाद में आरएसएम ने आतंकवाद पर सरकार की ढुलमुल नीति को निशाने पर लेते हुए प्रस्ताव पास किया। इस प्रस्ताव में वह आतंकवाद और नक्सलवाद के दोनों मोर्चों पर विचार करते हुए बात कही गयी थी। इस तरह देखें तो आरएसएस की चिंता में देश सबसे पहले है और देश की लापरवाह राजनीति को जगाने और झकझोरने का काम वह अपने तरीके से करता रहता है।

आरएसएस को उसके आलोचक कुछ भी कहें पर उसका सबसे बड़ा जोर सामाजिक और सामुदायिक एकता पर है। आदिवासी, दलित और पिछड़े वर्गों को जोड़ने और वृहत्तर हिंदू समाज की एकता और शक्ति को जगाने के उसके प्रयास किसी से छिपे नहीं हैं। वनवासी कल्याण आश्रम, सेवा भारती जैसे संगठन संघ की प्रेरणा से ही सेवा के क्षेत्र में सक्रिय हैं। शायद इसीलिए ईसाई मिशनरियों के साथ उसका संधर्ष देखने को मिलता है। आरएसएस के कार्यकर्ताओं के लिए सेवा का क्षेत्र बेहद महत्व का है। अपने स्कूल, कालेजों, अस्पतालों के माध्यमों से कम साधनों के बावजूद उन्होंने जनमानस के बीच अपनी पैठ बनाई है। देश पर पड़ी आपदाओं के समय हमेशा संघ के स्वयंसेवक सेवा के लिए तत्पर रहे। 1950 में संघ के तत्कालीन संघ चालक श्रीगुरू जी ने पूर्वी पाकिस्तान से आने वाले शरणार्थियों की मदद के लिए आह्वान किया। 1965 में पाक आक्रमण के पीड़ितों की सहायता का काम किया,1967 में अकाल पीड़ितों की मदद के लिए संघ आगे आया, 1978 के नवंबर माह में दक्षिण के प्रांतों में आए चक्रवाती तूफान में संघ आगे आया। इसी तरह 1983 में बाढ़पीडितों की सहायता, 1991 में कश्मीरी विस्थापितों की मदद के अलावा तमाम ऐसे उदाहरण हैं जहां पीड़ित मानवता की मदद के लिए संघ खड़ा दिखा। इस तरह आरएसएस का चेहरा वही नहीं है जो दिखाया जाता है।

संकट यह है कि आरएसएस का मार्ग ऐसा है कि आज की राजनीतिक शैली और राजनीतिक दलों को वह नहीं सुहाता। वह देशप्रेम, व्यक्ति निर्माण के फलसफे पर काम करता है। वह सार्वजनिक जीवन में शुचिता का पक्षधर है। वह देश में सभी नागरिकों के समान अधिकारों और कर्तव्यों की बात करता है। उसे पीड़ा है अपने ही देश में कोई शरणार्थी क्यों है। आज की राजनीति चुभते हुए सवालों से मुंह चुराती है। संघ उससे टकराता है और उनके समाधान के रास्ते भी बताता है। संकट यही है कि आज की राजनीति के पास न तो देश की चुनौतियों से लड़ने का माद्दा है न ही समाधान निकालने की इच्छाशक्ति। आरएसएस से इसलिए इस देश की राजनीति डरती है। वे लोग डरते हैं जिनकी निष्ठाएं और सोच कहीं और गिरवी पड़ी हैं। संघ अपने साधनों से, स्वदेशी संकल्पों से, स्वदेशी सपनों से खड़ा होता स्वालंबी देश चाहता है,जबकि हमारी राजनीति विदेशी पैसे और विदेशी राष्ट्रों की गुलामी में ही अपनी मुक्ति खोज रही है। जाहिर तौर पर ऐसे मिजाज से आरएसएस को समझा नहीं जा सकता। आरएसएस को समझने के लिए दिमाग से ज्यादा दिल की जरूरत है। क्या वो आपके पास है?

-संजय द्विवेदी

23 COMMENTS

  1. में इस बात से पूर्ण सहमत हूँ की संघ परिवार सबसे बड़ा रस्त्रावादी परिवार है. ऐसे परिवार की हमको इस समय में सबसे ज्यादा जरूरत है .आर एस एस काम तो करता है प्रचार नहीं करता

  2. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ सारी दुनिया में सबसे बड़ा मानवीय संघटन और राष्ट्रवाद की असीम भावनाओं से ओतप्रोत एक ऐसा संघ है ,जिसने समय समय पर आलोचनाएँ सहकर भी समाज में राष्ट्र में और पृथ्वी पर अपना एक विशेष स्थान बनाया और निभाया भी है ,राजनीतिक अपच और नासमझी के कारण आलोचना करने से इस संघ की सेहत और मज़बूत होती है ,कुछ तुष्टिकरण की राजनीति करनेवाले लोग इसे हिंदूवादी संघ के नाम से भी संबोधित -प्रचारित करते है ,ये उनकी संकीर्ण मानसिकता है ,जब की यह संघ मानवता -राष्ट्रवाद व सामाजिक समरसता पर विश्वास करता और ऐसा ही आचरण कृत्य या व्यवहार भी करता है .विजय सोनी अधिवक्ता दुर्ग छत्तीसगढ़

  3. संघ संगठन और सामाजिक सुधार की दिशा में अपने कदम निरंतर बढ़ाता जा रहा है. राजनीतिक कारणों से इसकी आलोचना करने वालों को इसके अद्वितीय कार्य और कार्य प्रणाली के सम्बन्ध में समुचित जानकारी न होने के कारण अथवा जानबूझ कर इसको विवादों के घेरे में रखने की प्रवृत्ति के कारण राष्ट्र उत्थान के इस द्वारा किये जाने वाले काम में अनेक बाधाएँ आती रही हैं. इस पर भी वह अपने चयनित पथ पर अग्रसर है जो सकारात्मक है, भारत के समग्र समाज और राष्ट्र के हित में है. लेखक ने संघ के सम्बन्ध में जो लिखा है सही है.

    नरेश भारतीय

  4. apako ese achchhe lekha ke liye sadhuvad.aj sangh ke karan hi mera apana jivan bahut achchha avm vyvsthit bana he.sangh ne hi mujame rastrabhakti v dharm ke prati nista ko pallavit kiya he.ek bar fir sadhuvad.

  5. आर एस एस काम तो करता है प्रचार नहीं करता। – ठीक कहा है आपने. छोटे छोटे सहरो, छोटे गाव, कस्बो में लोग इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते है.
    जो संगठन सच कहने का साहस करे, राष्ट्रीयता की बात करे, स्वदेश का हिमायती हो, सरीर और चरित्र निर्माण की बात करे उसे घर घर तक पहुचना होगा तभी राष्ट्र तरक्की कर सकेगा. संजय जी ने आर एस एस के बारे में बहुत से भ्रमो को दूर किया है.

    • “आर एस एस काम तो करता है प्रचार नहीं करता”
      सुनील जी आपके प्रश्नका उत्तर मेरी जानकारीके अनुसार:(१) जो भी संस्थाएं प्रचारमें विश्वास करती हैं, आप देखेंगे, कि धीरे धीरे वे संस्थाएं रचनात्मक कामको कम महत्त्व देते हुए, प्रचार करनेके काम को ही काम समझ लेती है। और प्रचार कार्य में ही जुट जाती है। काम पडा रह जाता है, या फोटो खिंचवाने तक ही सीमित रहता है। (२)किंतु, संघ यदि प्रचारमें जुट जाए, तो साधारण कार्यकर्ता कहां लक्ष्मण रेखा खिंचनी चाहिए, इसका निर्णय नहीं कर पाता, और, संघके(राष्ट्रके) विरोधक, समाचार के आधार पर, वहां, पहुंचकर संघ को ही, हानि पहुंचा सकते हैं। (३)अपने आप प्रचार जो दूसरोंके मुखसे होता है, होता रहे; पहलेसे ही शक्ति सीमित है, और भारत के हितकर काम हजारों है, ऐसी अवस्थामें शक्तिको अधिकाधिक परिणामकारी बनानेके लिए यही परिपाटी ठीक है।(४) नया स्वयंसेवक ऐसा निश्चित ही सोचता है,कि प्रचार हो; पर जैसे वह परिपक्व होता है, सही समझने लगता है।(५) इसके विपरित, ऐसी संस्थाओंकी कमी नहीं, जो एक कमरे से चार पॄष्ठोंवाला नियत कालिक निकालते हैं, और प्रचार ऐसा करते हैं, जैसे विश्वभरमें फैल चुके हो।आज मैं संघकी सोचको सही मानता हूं।भाग्यवान है भारत माता। ऐसे कई स्वयंसेवक मै जानता हूं, जो भारतके हितमें चुन चुनकर कठिन कामों को करते आए हैं; गयाना, सूरिनाम, त्रिनिदाद—और न जाने कहां कहां डटे हुए हैं।पढे लिखे इतने कि, कोई बडी युनिवर्सीटीमें सरलतासे प्राध्यापकी करते, पर श्वेच्छासे सेवाव्रत लेकर समर्पित जीवन जी रहे हैं।श्रेय लेने की बात आती है, तो संकोच और अस्वस्थता अनुभव करते हैं, दूर चले जाते हैं।

  6. ॥जिन खोजा तिन पाइयाँ॥
    मै जब १०+ वर्षका था, तब संघमें जाने लगा।…. पिताजी विनोबाजी के भक्तहि नहीं, आगे बढके उनका कार्य भी करते थे।युवावस्थामें उन्होने स्वतंत्रता पूर्व आंदोलनोमें सक्रिय काम भी किया था।किंतु, वे स्वातंत्र्योत्तर शासनसे, महात्माजी की (तुलना अभिप्रेत नहीं है) भाँति ही संतुष्ट नहीं थे।…… वे भूमिदान आंदोलनके दिन थे। घरमें दानपात्र रखा होता था, रोज उसमें हम बच्चोंसे सिक्के डलवाये जाते थे, और हम गुजराती “भूमिपुत्र” पढा करते थे।
    स्कूलमे भी मै साधारण छात्रहि था।
    उन दिनो, छुट्टी बिताने आए, मेरे मौसेरे भाईके कहनेपर, पिताजी राजी हुए, और मुझे शाखामे जानेकी अनुमति दी।सारे महोल्लेके मेरे दोस्तोनें जो कांग्रेसी थे, मेरा कडा बहिष्कार किया, मै १०-१५ वर्षतक, अछूत हो गया।अटलजी के समय तक मै अछूतहि रहा।
    बस होना क्या था? पर, मेरे परिवारके पूर्वाग्रहों का धीरे धीरे अंत हुआ।और मेरी उन्नति होती गयी, मैं मानता हूं, इसका, एक प्रमुख कारण संघ है।कुछ राष्ट्र भाषासे प्रेम, कुछ पढायीमें प्रगति,कुछ जन्मभूमिके लिए करनेकी भावना,कुछ राष्ट्रीय दृष्टिकोण, ……. इत्यादि। संघने जो काम केवल राष्ट्र भाषा हिंदी प्रचारके लिएहि किया है,(मेरी शाखामें हिंदी का आग्रह था) उसीका मूल्य कई राष्ट्र भाषा प्रचार समितियोंसे अधिक है। और आज मै, कुछ मात्रामें सही हिंदी लिख/बोल सकता हूं, तो इसका अधिकांश श्रेय मै संघको हि देता हूं।मुझे महत्वाकांक्षासे प्रेरित करनेका कामभी संघनेहि किया है।शास्त्रोक्त प्रमाणोमें एक “प्रत्यक्ष” प्रमाण माना गया है…… आप माने, ना माने, आपकी स्वतंत्रता है।

  7. Shri Sanjay Dwivedi has painted a true and correct picture of Sangh work. While Sangh does not go out of the way to advertize its work, it does not hide it either. Most Sangh programs are open to all. Like its shakhas are open to anyone. There is no membership fee. Anyone can go and take part in Sangh activities and find out its ideology. Tons of information on Sangh’s service projects is available on the web.
    On us of finding out about Sangh is on the individual. Information is available easily.

  8. में इस बात से पूर्ण सहमत हूँ की संघ परिवार सबसे बड़ा रस्त्रावादी परिवार है. ऐसे परिवार की हमको इस आतंक & छद्म सेचुरालिस्म के समय में सबसे ज्यादा जरूरत है. में रास्त्रवादियों से अनुग्रह करता हूँ की ज्यादा से ज्यादा संघ परिवार में शामिल होकर रास्त्र के उत्थान में अपना योगदान दें.

  9. आपके आलेख के हर बिन्दु से शत-प्रतिशत सहमत. ऐसी बात नहीं है कि जो रा.स्व.सं. को गरिया रहे हैं, वे उसके समाजोत्थान व राष्ट्रोत्थान के कार्यों से अनभिज्ञ हैं, नेपथ्य में तो वे भी इसके कार्यों के मुरीद हैं, किंतु मंचस्थ होते ही “वोट-बैंक की चाहत”, अपने को “धर्मनिरपेक्ष” कहलवाने की खुजली इतनी बढ़ जाती है कि दवाई के रूप में रा.स्व.सं को गरियाना ही पड़ता है.

  10. संजय जी बहुत-बहुत आभार।
    बहुत ही उम्दा शोधपूर्ण आलेख।

  11. व्यक्ति निर्माण के द्वारा देश को एक विराट स्वरूप मैं शक्तिशाली परमपुरूष की तरह खङा करना और देश को परम वैभव पर पहुंचाना यही परम लक्ष्य लेकर संघ का प्रारंभ किया गया था और आज भी वह उसी और अग्रसर है…….सटीक लेख

  12. Javed sahab aap kuchh saaf-saaf kahte to aapki javab dene me maja aata. magar aap kya kahna chah rahe hain, samajh nahi aaya. jaha tak dohri mansikta ki baat hai to main aapk bata du ki sangh ki kabhi koi dohri mansikta nahi rahi. hamesha ek hi mansikta rahi hai aur vah hai rastravadita. aur uske liye sabhi ki jarurat hai…meri…aapki aur pure samaj ki.

  13. Sangh is an organization whose message and thoughts are meaningful, and are essential for a healthy Bharat. People, specially the educated ones must participate in Sangh activities and by doing this this they will be doing a great service to themselves, to the country and the humanity.

  14. आखिर किसी ने तो सच कहने की हिम्मत की. वरना आज तो सच कहना भी इस देश में गुनाह हो गया है. लेखक की साहसी लेखनी को शत-शत नमन. दर असल संघ से जुड़कर ही संघ की महिमा को बेहतर जाना जा सकता है. लेकिन कुछ लोग संघ के बारे में हौवा खडा करके उसे बदनाम करने के लिए दिन-रात जुटे हुए हैं. और संघ के मान-मर्दन में इन लोगो के अपने नीजी हित है. किसी को यहाँ धर्मांतरण की दूकान चलानी है, तो किसी को जिहाद के बल पर भारत-भूमि दारुल-हरब बनाना है. तो किसी को जातिवाद-प्रांतवाद का विष बोकर सत्ता-सुख भोगना है, तो किसी को माओवाद-नक्सलवाद की अंधी गली से चीन-अनुकूल सत्ता स्थापित करनी है. और संघ इन सभी देश-विरोधी ताकतों की करतूतों में आड़े आता है. नतीजन संघ को बदनाम करने के लिए ये सब निहित स्वार्थ एकजुट हैं. और इन ताकतों ने दबाव, लोभ और वैचारिक आतंक के जरिए मीडिया में भी घुसपैठ कर ली है. तुच्छ स्वार्थो से परे क्योंकि देश हित की बात करने का साहस और माद्दा सिर्फ संघ में ही बचा है. और देश के लोग इस बात को जितना जल्दी समझ जाए उतना बेहतर है.

  15. संघ एक परिवार की तरह से होता है जिस प्रकार से कोई परिवार का मुखिया अपने परिवार को चलाने के लिये एक जैसे प्रयास सभी के लिये करता है,किसी के साथ भेद भाव नही करता है उसी प्रकार से जैसे कहावत में कहा गया है- “मुखिया मुख से चाहिये,खान पान को एक,पालै पोषे सकल जग तुलसी सहित विवेक”.जो लोग संघ के साथ नही रह पाये और उन्होने अपनी अपनी अलग अलग पार्टी बनाकर अपना अपना कार्य चालू किया वे ही आर एस एस के सबसे बडे दुश्मन बने है,संसार का हर युवक चाहता है कि संसार को बदल दिया जाये,और संसार का हर बुजुर्ग चाहता है कि हर युवा को बदल दिया जाये,यह अब असंभव है और इस जनरेशन गेप का जो फ़ायदा मिल रहा है,उसका ध्यान रखा जाये,कई इतिहास बने है और कई इतिहास बनने वाले हैं।

  16. समय का आईना , अतीत की उन तस्वीरों को भी को भी दिखता हैं , जिन्हें लोग छुपाना पसंद करते हैं , तोहमत से कोई मुक्त नहीं हैं चाहे , वह आर . एस . एस . हो या उनकी राय से इत्तेफाक नहीं रखने वाले संगठन , लोकतंत्र में सभी को अधिकार हैं कि अपनी बात , अपने तरीके से कह सके पर अंतिम फैसला अवाम को करना हैं , और यह भी सच हैं कि अपनी वतन परस्ती के जज्बे के लिए मशहूर , आर. एस. .एस . जैसे संगठन अपनी लाखो कोशिशो के बाबजूद देश की जनता का भरोसा , अपनी अतिवादिता के कारण नहीं जीत पाये , सारी खूबियों के बाबजूद , भावातिरेक और अभिव्यक्ति की निष्ठुरता का अवगुण , सदा उनके लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में बाधक बना हैं . आर .एस. एस . की मूल कमजोरी , दोहरी मानसिकता रही हैं , ” दुविधा में दोनों गए न माया मिली न राम ” इस कमजोरी से आर. एस. एस . इसलिए मुक्त नहीं होना चाहती क्यों कि उसे अपनी पहचान खोने का खतरा दिखता हैं और अपनी मनपसंदीदा राह पर चलने से इसलिए घबराती हैं , उसको अपने सिकुड़ने का भय हैं . हिटलर और गांधी एक साथ नहीं चल सकते दोनों की रहे जुदा थी , कोई भी संगठन , इन दोनों को एक ही समय प्रणाम करना चाहेगा तो उसके इरादे चाहे कितने भी महान क्यों न हो ? जन विश्वास पर खरे नहीं उतरेगे यह भी उतना ही सत्य हैं ,जितना आर. आर. एस.एस. का गांधी को याद करना . इसमें कोई शक नहीं की आर आर एस एक ऐसा महान संगठन हैं जो अपनी मंजिल पाने के लिए किसी भी हद से गुजर जाने का माद्दा रखता हैं ,पर उसकी जो मंजिल हैं उन रास्तो में नहीं हैं जिस पर वह चल रही हैं , अगर आर.एस . एस . अपनी अनचाही परेशानियों से खुद को मुक्त करके अपनी राह पर , बिना किसी संकोच के , बिना अल्पविराम और पूर्णविराम के , चल सके तो निश्चित रूप से उसे लक्ष्य भेदने कोई नहीं रोक सकता हैं फिर वह उस स्वरूप में स्थापित हो सकती हैं जो उसका सपना हैं . पर आर एस एस को दोहराव त्यागना होगा , ऐसा आर.एस.एस. कर पायेगी यह लगता नहीं हैं , पर कुछ पाने के लिए बहुत कुछ खोना पड़ता हैं यह भी एक ऐसा तथ्य हैं जिससे इनकार करना सच को झूठलाना हैं .

  17. SANGH KO SAMAJHNE KE LIYE SANGH ME ANA HO. TABHI LOG JAN PAYENGE. BUT AAJKAL KE MEDIAKARMI SAMAJHNA HI NAHI CHAHTE AUR SANGH KE BAARE ME GALAT KHABAR PRAKISHIT KARATE RAHATE HAI. SANJAYJI YE ARTICLE ESE PATRAKARO KO BHI BHEJIYE.

  18. संघकी सही सही छवि रखनेके लिए शतशः धन्यवाद। जितनी शीघ्रतासे हम यह सत्य समझेंगे, भारतका सर्वस्पर्शी उत्थान उतनीही शीघ्रतासे होगा। किंतु इसमें सक्रिय होकरहि यह उत्थान हो पाएगा, प्रेक्षक बनकर केवल तालियां बजाकर नहीं। संघको निकट जाकरहि समझा जाता है। एक प्रखर गांधीवादी, और कुछ मात्रामें संघविरोधी गुजराती परिवारमें जन्मे हुए मुझे सारे पूर्वाग्रहोसे मुक्त होते होते कई वर्ष लगे थे।आपको फिरसे हृदयतलसे धन्यवाद।

  19. आर एस एस के सभी जानने वाले आपसे सहमत है
    दरअसल आर एस एस के बारे में दुसप्रचार मीडिया और राजनीती वाले ही करते है
    आर एस एस जैसा देशभक्त संगठन देश के लिए जरुरी है

  20. सटीक आलेख. दरअसल कुछ ताकते नहीं चाहती कि भारत एक शक्तिशाली, संपन्न, सांस्कृतिक समरसतापूर्ण राष्ट्र बने, अतः वे संघ के विषय में दुष्प्रचार कर अपने कुत्सित मंसूबों को आगे बढ़ने में लगे हुए हैं.
    आपने अपने तथ्यात्मक आलेख द्वारा सही चित्र पेश किया है. आशा हैं लोगों की आँखों पर पड़ा पर्दा उतरेगा……

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