हिन्दी की व्यथा

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डॉ. छन्दा बैनर्जी

हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य पर जहाँ एक ओर हम हिन्दी को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने की बात करते हैं, वहीं दबे स्वर यह भी स्वीकार करते हैं कि अंग्रेजी अभी भी हमारे व्यवसाय का प्रमुख भाषा है । अपने ही देश में खुद के साथ हो रहे सौतेले व्यवहार से व्यथित हिन्दी की आत्मा अपना दर्द कुछ इस प्रकार बयां करती है –

” क्या ये वही आज़ाद भारत है ?

जहाँ के कवि ने गाया राष्ट्रगीत

वंदे मातरम्

सुजलाम् सुफलाम् मलयज शीतलाम्

शस्यश्यामलाम् मातरम्

लेकिन,

पड़ गया आज़ाद भारत में ये कैसा काल ?

हिन्दुस्तान में ही आज हिन्दुस्तानी होने का अस्तित्व न्योछावर कर

घूमती है आज़ाद भारत में क्यों, दर दर, द्वार द्वार ?

अरे! ओ हिंगलिशतानी,

हिन्दी दिवस पर क्यों तुम जोर-शोर से नारा लगाते हो ?

क्यों इस एक दिन के लिए हिन्दुस्तानी होने का स्वांग रचाते हो ?

आज़ाद भारत में आज भी अंग्रेजी भाषा का पंचमुख से गुणगान  कर,

क्यों तुम मेरे साथ अब भी ऐसा सौतेला व्यवहार करते हो ?

आज भी विदेशी भाषा के मुख का होकर ग्रास,

ले रही हूँ मैं, ये कैसी घुटन भरी सांस,

जबकि पूरे हो गए स्वतंत्रता के बहत्तर वर्ष,

अब तक ना स्वीकार किया गया हिन्दी को सहर्ष ।

इसलिए ही यहाँ विदेशी भाषा फल-फूल रही है,

और भारतवासी अपने राष्ट्रभाषा को भूल रहे हैं ।

जरा सोचिए –

यदि हिन्दुस्तानी ही हिन्दी भाषा से कतराएगा,

शास्त्रीय संगीत, भजन के जगह, पॉप म्यूजिक गाएगा,

तो भविष्य में एक दिन ऐसा अवश्य आएगा,

जब हिन्दुस्तान से हिन्दी का अस्तित्व ही मिट जाएगा ।

इसलिए –

अपनी राष्ट्रभाषा से अगर तुम्हें है प्यार,

हिन्दी भाषा को अपनाने से मत करो इनकार ।

हे भारतवासियों –

अपना कीमती समय और न गंवाओ ;

उठो और जागो –

अब भी वक्त है, आज़ाद हिन्दुस्तान में

हिन्दी पढ़ो, हिन्दी लिखो और हिन्दी में गाओ गान,

इसी से बढ़ेगा विश्व में राष्ट्रभाषा ‘हिन्दी’ का मान ।। ”

 

 

6 COMMENTS

    • इस कविता में ‘हिंदी’ अपनी अन्तर्मन की व्यथा को व्यक्त करती है । वर्तमान में भारत की भाषायी स्थिति के सम्मुख ये कविता एक ऐसे भारत की कल्पना करती है जहां ‘हिंदी भाषा’ खुद को स्थापित रूप में देख पाए । बहरहाल, आपने मेरी कविता पढ़ी, इसके लिए अशेष धन्यवाद ।

  1. सामयिक एवं अच्छी कविता के लिये बहुत बहुत बधाई, डॉ.साब ।????????????

  2. कृपया इन दोहे पर अपनी टिप्पणी देने की अनुकम्पा करे \

    • इस कविता में ‘हिंदी’ अपनी अन्तर्मन की व्यथा को व्यक्त करती है । वर्तमान में भारत की भाषायी स्थिति के सम्मुख ये कविता एक ऐसे भारत की कल्पना करती है जहां ‘हिंदी भाषा’ खुद को स्थापित रूप में देख पाए । बहरहाल, आपने मेरी कविता पढ़ी, इसके लिए अशेष धन्यवाद ।

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