सही कदम है ममता के आदेश पर रोक


सुरेश हिन्दुस्थानी
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने ममता सरकार के उस आदेश पर कड़ा रुख अपनाया है, जिसमें सरकार ने दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर प्रतिबंध लगाया था। उच्च न्यायालय का यह कदम ममता सरकार के लिए एक बहुत बड़ा झटका है। पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा लगाई रोक को न्यायालय ने पूरी तरह से हटा दिया है। न्यायालय ने साफ किया है कि रोक लगाना अंतिम विकल्प है और उसे पहले विकल्प के रुप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। हालांकि ममता बनर्जी ने उच्च न्यायालय के आदेश को ठेंगा दिखाते हुए सर्वोच्च न्यायालय जाने की बात कही है। यहां यह सवाल आता है कि कलकत्ता न्यायालय के निर्णय को ममता बनर्जी क्यों नहीं मान रही हैं? इस पूरे मामले में एक विशेष समुदाय के वोट प्राप्त करने के लिए ही ममता बनर्जी की सरकार पूरी योजना से काम कर रही है। ममता बनर्जी भले ही यह कहें कि राज्य में सबकी सरकार है, लेकिन आज भी ममता के बयानों के पीछे राजनीतिक पक्षपात की भावना का प्रबलतम रुप दिखाई दे रहा है। इस प्रकार की राजनीति देश में भेदभाव का वातावरण बनाने के लिए उत्तरदायी मानी जाती है और ममता बनर्जी भी उसी राह का अनुसरण करते हुए दिखाई दे रही है।
यह बात अब पूरी तरह से साफ दिखने लगी है कि पश्चिम बंगाल सरकार की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक प्रकार से भेदभाव वाली राजनीतिक को बढ़ावा देने का काम किया है। ममता ने राज्य में दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के बारे में कहा है कि मुहर्रम के दिन किसी भी दुर्गा पूजा का विसर्जन नहीं होगा। सरकार की मुखिया का यह बयान पूरी तरह से तुष्टिकरण की भावना को ही प्रतिपादित करता है। हालांकि कलकत्ता उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के इस प्रकार के बयान पर संज्ञान लेते हुए कहा है कि जब राज्य सरकार के अनुसार प्रदेश में सांप्रदायिक सद्भाव कायम है, तब क्या दुर्गा पूजा और मुहर्रम एक साथ नहीं मनाए जा सकते? वास्तव में उच्च न्यायालय ने ममता बनर्जी को प्रदेश की स्थिति के बारे में आइना दिखाया है। जिसमें सरकार का भेदभाव की बात करने वाला चेहरा स्पष्ट रुप से उजागर हो रहा है। हिन्दुओं की भावना से खेलने वाला सरकार का यह पहला कदम नहीं है। इससे पूर्व भी कई अवसरों पर सरकार की मुखिया ममता बनर्जी ने ऐसे कामों को अंजाम दिया है, जिससे केवल एक समुदाय को खुश रखा जाए। यहां एक सवाल उठ रहा है कि जिस प्रकार से ममता बनर्जी ने मुहर्रम को बिना किसी बाधा के मनाने का संदेश दिया है, उस प्रकार की बात दुर्गा पूजा के बारे में क्यों नहीं कही?
देश में त्यौहारों के दौरान होने वाली हिंसाओं के बारे में अध्ययन किया जाए तो यही दिखाई देता है कि भारतीय संस्कृति के भाव को प्रदर्शित करने वाले त्यौहारों के लिए बाधाएं खड़ी की जाती हैं। कहीं जुलूस पर हमला करना, तो कहीं मात्र रंग गिर जाने के कारण सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा करना नियति सा बनता जा रहा है। सरकार और प्रशासन हमेशा हिन्दुओं को ही समझाने का काम करती रही हैं, इसके विपरीत दूसरे पक्ष को भी झुकने के लिए तैयार रहना चाहिए, लेकिन वह नहीं झुकते हैं। क्या इसी को सद्भाव कहा जाता है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार आने के बाद जिस प्रकार से हिंसा का वातावरण बना है, उससे स्पष्ट है कि राज्य में सब कुछ ठीक नहीं हैं। जबकि राज्य सरकार का कहना है कि राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द बरकरार है। ऐसे में उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है कि जब सब कुछ सही है तो फिर दोनो संप्रदाय के लोगों के बीच सांप्रदायिक भेद-भाव क्यों पैदा किया जा रहा है। कलकत्ता हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा, ‘दुगार्पूजा और मुहर्रम एक साथ क्यों नहीं मनाया जा सकता?
कलकत्ता हाई कोर्ट ने आगे राज्य सरकार से कहा, ‘जब आप कह रही है कि पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक सौहार्दता बनी हुई है तो फिर मुहर्रम का जुलुस और दुर्गा पूजा मूर्ति विसर्जन के लिए अलग-अलग तारीख निर्धारित कर क्यों सांप्रदायिक भेद-भाव पैदा किया जा रहा है? न्यायालय ने यह भी कहा है कि जब दोनों समुदाय के लोगों को खुद ही सामंजस्य बिठाने दीजिए। उन लोगों को बांटने की कोशिश न करें। उन्हें साथ रहने दिया जाए। इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आदेश जारी कर कहा था कि सभी दुर्गा की प्रतिमाओं का विसर्जन 30 सितंबर की शाम तक कर ली जाए। उन्होेंने कहा था कि दुर्गा पूजा के दौरान हिंसा बर्दाश्त नहीं की जाएगी।
इसके बाद सवाल यह आता है कि भारत के सभी त्यौहार ग्रह नक्षत्रों की गणना के आधार पर ही आयोजित किए जाते हैं। इसके मुहूर्त भी होते हैं। तय समय से पहले और बाद में दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन करना प्राकृतिक मुहूर्त के विरुद्ध ही होगा। ममता बनर्जी की सरकार को चाहिए कि हिन्दू और मुस्लिम समाज के त्यौहारों को उसी दिन मनाने की बात को प्रमुखता देना चाहिए, इसके लिए सरकार को अपनी ओर से भी पूरी व्यवस्था करना चाहिए। अगर व्यवस्था नहीं कर सकती तो यह सरकार की सबसे बड़ी नाकामी ही कही जाएगी। हो सकता है कि इस बात को सरकार भी जानती हो कि वह कानून व्यवस्था को लागू करने में असफल ही सिद्ध होगी और इसलिए ही सरकार अपनी नाकामी को छिपाने के लिए ही दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के बारे में तमाम दिशा निर्देश दे रही है। पश्चिम बंगाल का यह सबसे बड़ा सत्य है कि दुर्गा पूजा इस राज्य का सबसे पुराना और परंपरा से चला आ रहा त्यौहार है। आज पूरे विश्व में पश्चिम बंगाल की पहचान भी दुर्गा पूजा ही है। सरकार की ओर से दुर्गा पूजा के कार्यक्रम में बदलाव करना परंपरा को बदलने की प्रक्रिया का हिस्सा दिखाई देता है, जबकि यह सत्य है कि परंपराएं न तो कभी बदली हैं, और न ही बदल सकती हैं। उच्च न्यायालय ने जो कुछ कहा है वह वास्तव में ममता सरकार के लिए एक झटका ही कहा जाएगा।

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