समय के दो पाट: कहां ये और कहां वो

0
261

समय के दो पाटों में से एक पाट पर हैं शास्‍त्रीय संगीत की पुरोधा गिरिजा देवी की प्रस्‍तुतियां और दूसरे पाट  पर हैं ढिंचक पूजा जैसी रैपर की अतुकबंदी वाली रैपर-शो’ज (जिसे प्रस्‍तुति नहीं कहा जा सकता)।

समय बदला है, नई पीढ़ी हमारे सामने नए नए प्रयोग कर रही है, अच्‍छे भी और वाहियात भी, परंतु अभी वह  संगीत-सरगम की पहली शर्त भी पूरी नहीं कर पा रही। पहली शर्त होती है कि इन प्रयोगों में मन को क्‍या  भाता है, मन किसे याद रख पाता है, किसे सुनकर बार बार दोहराने-गुनगुनाने-झूमते चले जाने का जी चाहता  है…। ये शर्त पूरी होते ही कसौटी होती है किसी कला के जनजन तक पहुंचकर प्रसिद्धि पाने की। और जब  जनजन तक पहुंचेगी तभी तो सदियों तक याद रखी जाएगी।

मेरे विचार से किसी गीत के अच्छा होने के लिए अच्छी कविता के साथ अच्छे गायन का संगम होना  आवश्यक है। मुझे संगीत की समझ बस इतनी है कि जो मेरे मन को अच्छा लगे वही अच्छा संगीत है।
इसलिए किसी भी अच्छे संगीत की पहचान यदि कान से की जाए दिमाग से नहीं, तो ज्‍यादा सही होगा।  संभवत आनंद का सृजन ही हर कला का मूल उद्देश्य भी है इसीलिए ठुमरी जैसे लोकशास्त्रीय गायन को  सुनने-सुनाने का अपना एक अलग आनंद है। आप भी सुनिए गिरिजा देवी की गाई ठुमरी- इस लिंक पर

बहरहाल, ठुमरी की रानी पद्मविभूषण गिरिजा देवी के देहांत की खबर के बाद से ही उनकी ठुमरियां एक एक  कर चले ही जा रही हैं दिमाग में…बाबुल मोरा नैहर छूटा जाए…, ऐहि ठइयां मोतिया हेराय गइलै रामा…।
दशकों पहले गाई गई ये ठुमरी आजतक उसी खनक के साथ हमारी जुबान से कभी भी रस घोल देती है, चाहे  रसोई में होऊं या आफिस में, ठुमरी तो है ही ऐसी चीज। ठुमरी हो और गिरिजा देवी का मनदर्शन ना हो ऐसा  कैसे हो सकता है भला।

अब बात करती हूं समय के दूसरे पाट पर चल रहे उस संगीत की जिसको सुनना जितना कष्‍टप्रद होता है,  उसे समझना बूते के बाहर, संगीत के नाम पर कुछ बेहूदी बातों को (जिसमें नशे की व अश्‍लीलता की बातें  समाहित होती हैं) हमें सुनाया जाता है।

लिबास के नाम पर गायिका एक कान में बाली, रंगबिरंगे बालों के  साथ, कभी कभी तो ये बाल सिर पर एक ही तरफ होते हैं और दूसरी ओर से साफ किए गए होते हैं। उदाहरण  के तौर पर बता दूं, शायद आप भी जानते होंगे कि कलर्स चैनल पर चल रहा है बिग बॉस 11, इस रिएलिटी  शो में एक प्रतिभागी का नाम है ढिंचक पूजा, जी हां, ढिंचक… लड़की पूजा, यानि ऐसी गायिका जो अपनी  बातों को ढुलकते हुए हमें सुनाती है जिसे संगीत कहा जाता है (आप भी यदि इसे किसी एंगल से संगीत कह  सकें तो)। ढिंचक पूजा के गाने को कोई भी दोहरा नहीं सकता क्‍योंकि वह गायन तो होता ही नहीं इसीलिए वह  शायद बिगबॉस के बाद किसी को याद भी नहीं रहेगी।

समय के इस दूसरे पाट पर खड़े ‘ढिंचक पूजा’ के संगीत को सुनकर मुझे अपनी उस विरासत के लिए दुख  होता है जो कभी तानसेनों को जन्‍म दिया करती थी, जहां राग ईश्‍वर होते थे। जो गायक के स्‍वर से निकलते  ही आनंद बिखेर देते थे। संगीत के एक अचल स्‍तंभ की भांति खड़ी रहने वाली गिरिजा देवी भी संगीत की इस  बाजारूपन और निम्‍नतर होते जाने से बेहद व्‍यथित थीं। निश्‍चित ही रैप- जैज़ संगीत हो सकता है मगर मन  को सुकून तो भारतीय संगीत से ही मिलता है चाहे वह लोकसंगीत हो या शास्‍त्रीय। ये मैं नहीं, अब तो पश्‍चिमी सभ्‍यता भी भारतीय संगीत की दीवानी हो चुकी है।

समय के इन दोनों पाटों को कृपया पुरातन और आधुनिक के चश्‍मे से ना देखिएगा, वरना संगीत का असली  रस नहीं पहचान पाऐंगे। संभवत: यही कारण है कि पहले पाट की गिरिजा देवी कालजयी हो जाती हैं और  ढिंचक पूजा…क्षणभंगुर।

जो भी हो, बहुत याद आऐंगी ठुमरी की महारानी गिरिजा देवी और जनजन की ‘अप्‍पा जी’

– अलकनंदा सिंह

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

* Copy This Password *

* Type Or Paste Password Here *

17,327 Spam Comments Blocked so far by Spam Free Wordpress