वल्लभभाई पटेल बारडोली से बने ‘सरदार’

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मनोज कुमार
एक आठ-दस साल के छोटे बच्चे ने मुझसे यूं ही पूछ लिया कि सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम तो वल्लभभाई पटेल हैं, फिर उन्हें सरदार क्यों कहा जाता है? कुछ देर के लिए मैं अवाक था. सहसा जवाब मुझे भी नहीं सूझा. इसे आप मेरी अज्ञानता कह सकते हैं. थोड़ी देर बाद दिमाग पर जोर डालने के बाद याद आया कि ‘सरदार’ पटेल की उपाधि है. सवाल बच्चे का था तो जवाब भी उसे पूर्ण रूप से संतुष्ट करने वाला देेना उचित होता है क्योंकि कई बार हम टालने के लिए गोलमोल जवाब दे देते हैं लेकिन कच्चे मन में यह बात बैठ जाती है जो कोशिशों के बाद भी उतरती नहीं है और हम ऐतिहासिक भूल कर जाते हैं क्योंकि अपनी अज्ञानता के कारण हम उन्हें इतिहास की गलत जानकारी देते हैं. ऐसा सबके साथ होता है लेकिन इससे बचने की कोशिश की जानी चाहिए. बहरहाल, उस बच्चे की जिज्ञासा शांत करते हुए मैंने बताया कि स्वाधीनता संग्राम में अनेक आंदोलन हुए. इन्हीं एक आंदोलन बारडोली सत्याग्रह में उनके अमूल्य योगदान के लिये लोगो ने उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि से नवाजा. 
बारडोली सत्याग्रह, भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1928 में गुजरात में हुआ यह एक प्रमुख किसान आंदोलन था जिसका नेतृत्व वल्लभ भाई पटेल ने किया था। उस समय प्रांतीय सरकार ने किसानों के लगान में तीस प्रतिशत तक की वृद्धि कर दी थी। पटेल ने इस लगान वृद्धि का जमकर विरोध किया। सरकार ने इस सत्याग्रह आंदोलन को कुचलने के लिए कठोर कदम उठाए, पर अंतत: विवश होकर उसे किसानों की मांगों को मानना पड़ा। एक न्यायिक अधिकारी बूमफील्ड और एक राजस्व अधिकारी मैक्सवेल ने संपूर्ण मामलों की जांच कर 22 प्रतिशत लगान वृद्धि को गलत ठहराते हुए इसे घटाकर 6.03 प्रतिशत कर दिया। इस सत्याग्रह आंदोलन के सफल होने के बाद वहां की महिलाओं ने वल्लभभाई पटेल को ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की।
सरदार वल्लभभाई पटेल स्वतंत्र भारत के उप प्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने भारतीय संघ के साथ सैकड़ों रियासतों का विलय किया। सरदार वल्लभभाई पटेल वकील के रूप में हर महीने हजारों रुपये कमाते थे। लेकिन उन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए लडऩे के लिए अपनी वकालत छोड़ दी। किसानों के एक नेता के रूप में उन्होंने ब्रिटिश सरकार को हार को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया। ऐसे बहादुरी भरे कार्यों के कारण ही वल्लभभाई पटेल को लौह पुरुष कहा जाता है। आजादी के बाद विभिन्न रियासतों में बिखरे भारत के भू-राजनीतिक एकीकरण में केंद्रीय भूमिका निभाने के लिए पटेल को भारत का बिस्मार्क और लौह पुरुष भी कहा जाता है। यह उपाधि उनके नाम के साथ जुड़ गई और वे वल्लभभाई पटेल से सरदार वल्लभभाई पटेल संबोधित किए जाने लगे.
31 अक्टूबर 1875 की तारीख भारतीय इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित है. इस दिन भारत के स्वाधीनता संग्राम के अग्रणी पंक्ति के योद्धा वल्लभभाई पटेल ने जन्म लिया था. यूं तो प्रतिवर्ष पूरा देश इस महामना का स्मरण करता है किन्तु इस साल दुनिया में अपनी तरह की अनोखी और अकेली कही जाने वाली वल्लभभाई पटेल की मूर्ति का अनावरण होने जा रहा है. यह स्वतंत्र भारत के लिए गौरव का क्षण है.
वल्लभभाई स्कूल के दिनों से ही वे होशियार और विद्वान थे। घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के बावजूद उनके पिता ने उन्हें 1896 में हाई-स्कूल परीक्षा पास करने के बाद कॉलेज भेजने का निर्णय लिया था लेकिन वल्लभभाई ने कॉलेज जाने से इंकार कर दिया था। इसके बाद लगभग तीन साल तक वल्लभभाई घर पर ही थे और कठिन मेहनत करके बॅरिस्टर की उपाधि प्राप्त की. वल्लभभाई पटेल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्य नेताओं में से एक थे और साथ ही भारतीय गणराज्य के संस्थापक में से एक थे।
वल्लभभाई कहते थे-‘आपकी अच्छाई आपके मार्ग में बाधक है, इसलिए अपनी आँखों को क्रोध से लाल होने दीजिये, और अन्याय का सामना मजबूत हाथों से कीजिये।’ उन्होंने जीवन भर साहस के साथ गलत कार्यों और निर्णयों का विरोध किया.  भारतीय के पहले गृहमंत्री और उप-प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए उन्होंने पंजाब और दिल्ली से आये शरणार्थियो के लिये देश में शांति का माहोल विकसित किया था। इसके बाद पटेल ने एक भारत के कार्य को अपने हाथों में लिया था और वो था देश को ब्रिटिश राज से मुक्ति दिलाना।
भारतीय स्वतंत्रता एक्ट 1947 के तहत पटेल देश के सभी राज्यों की स्थिति को आर्थिक और दर्शनिक रूप से मजबूत बनाना चाहते थे। वे देश की सैन्य शक्ति और जन शक्ति दोनों को विकसित कर देश को एकता के सूत्र में बांधना चाहते थे। पटेल के अनुसार आजाद भारत बिल्कुल नया और सुंदर होना चाहिए। अपने असंख्य योगदान की बदौलत ही देश की जनता ने उन्हें ‘आयरन मैन ऑफ़ इंडिया’ लकी उपाधि दी थी। इसके साथ ही उन्हें ‘भारतीय सिविल सर्वेंट के संरक्षक’ भी कहा जाता है।
सरदार वल्लभभाई पटेल एक ऐसा नाम एवं ऐसे व्यक्तित्व है जिन्हें स्वतंत्रता संग्राम के बाद कई भारतीय युवा प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते थे। आजादी के समय में एक शूरवीर की तरह सरदार पटेल की ख्याति थी। सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन से यह बात तो स्पष्ट हो गयी थी कि इंसान महान बनकर पैदा नहीं होता।
उनके प्रारंभिक जीवन को जानकर हम कह सकते है कि सरदार पटेल हम जैसे ही एक साधारण इंसान ही थे जो रुपये, पैसे और सुरक्षित भविष्य की चाह रहते हो। लेकिन देशसेवा में लगने के बाद धीरे-धीरे आगे बढ़ते हुए बेरिस्टर वल्लभभाई पटेल कब सरदार पटेल और लौह पुरुष वल्लभभाई पटेल बन गए पता ही नहीं चला। सरदार पटेल ने राष्ट्रीय एकता का एक ऐसा स्वरुप दिखाया था जिसके बारे में उस समय में कोई सोच भी नही सकता था। उनके इन्हीं कार्यों के कारण उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय स्मृति दिवस को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है.
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मनोज कुमार
सन् उन्नीस सौ पैंसठ के अक्टूबर माह की सात तारीख को छत्तीसगढ़ के रायपुर में जन्म। शिक्षा रायपुर में। वर्ष 1981 में पत्रकारिता का आरंभ देशबन्धु से जहां वर्ष 1994 तक बने रहे। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से प्रकाशित हिन्दी दैनिक समवेत शिखर मंे सहायक संपादक 1996 तक। इसके बाद स्वतंत्र पत्रकार के रूप में कार्य। वर्ष 2005-06 में मध्यप्रदेश शासन के वन्या प्रकाशन में बच्चों की मासिक पत्रिका समझ झरोखा में मानसेवी संपादक, यहीं देश के पहले जनजातीय समुदाय पर एकाग्र पाक्षिक आलेख सेवा वन्या संदर्भ का संयोजन। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, महात्मा गांधी अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी पत्रकारिता विवि वर्धा के साथ ही अनेक स्थानों पर लगातार अतिथि व्याख्यान। पत्रकारिता में साक्षात्कार विधा पर साक्षात्कार शीर्षक से पहली किताब मध्यप्रदेश हिन्दी ग्रंथ अकादमी द्वारा वर्ष 1995 में पहला संस्करण एवं 2006 में द्वितीय संस्करण। माखनलाल पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय से हिन्दी पत्रकारिता शोध परियोजना के अन्तर्गत फेलोशिप और बाद मे पुस्तकाकार में प्रकाशन। हॉल ही में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा संचालित आठ सामुदायिक रेडियो के राज्य समन्यक पद से मुक्त.

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