सरदार पटेल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और जम्मू-कश्मीर

डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

images (3)सरदार पटेल से जुड़ी अनेक महत्वपूर्ण घटनाएँ अब इतिहास का हिस्सा बन चुकी हैं । लेकिन इस पुण्य अवसर पर कुछ का स्मरण करना समीचीन होगा । जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान ने हमला किया हुआ था । महाराजा हरि सिंह ने रियासत को नई स्थापित हो रही संघीय लोकतांत्रिक सांविधानिक व्यवस्था का अंग बनाने के लिये २६ अक्तूबर १९४७ को विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये थे । राज्य में भारतीय सेना आक्रमणकारियों से जूझ रही थी । शेख अब्दुल्ला के पास रियासत की सत्ता आ गई थी । लेकिन उसके निशाने पर अब महाराजा हरि सिंह और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ आ गये थे । दोनों को रियासत से बाहर करने की अपनी योजना पर उसने काम शुरु कर दिया था । नैशनल कान्फ्रेंस ने मिलिशिया या होम गार्ड के नाम से अपने संगठन का युवा विभाग बनाया था और भारत सरकार इसे हथियार मुहैया करवा रही थी । नैशनल कान्फ्रेंस ने नेहरु के पास शोर मचाना शुरु किया कि जो हथियार हमारे होम गार्डों के लिये भेजे जा रहे हैं , महाराजा और रियासत के दीवान मेहर चन्द महाजन उन हथियारों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पास पहुँचा रहे हैं । संघ और महाराजा के नाम पर , सब जानते हैं कि नेहरु बहुत जल्दी उत्तेजित हो जाते थे । उन्होंने तुरन्त सरदार पटेल को ३० दिसम्बर १९४७ को एक पत्र लिखा,”मुझे टैलीफोन पर एक चिन्ता पैदा करने वाली सूचना बख़्शी ग़ुलाम मोहम्मद ने दी है । जो शस्त्र हमने उसे भेजे थे , वे रोक लिये गये हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोगों में बाँट दिये गये हैं । जब जम्मू अनिवार्य रुप से ख़तरे में है , उस समय बड़ी मात्रा में भेजे गये हथियारों को रोका गया । बख़्शी के होम गार्डज बिना राइफ़लों के लड रहे हैं और उनके पास बारुद भी कम रहता है , जिससे अनेक जवानों ने अपनी जान गँवाई है । अनेक रपटों से जो मुझे प्राप्त हुई हैं , लगता है कि बख़्शी के होम गार्डस की क़ीमत पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सहायता जा रही है । खुले आम पोस्टरों एवं अन्य उपायों से शेख अब्दुल्ला के खिलाफ प्रचार किया जा रहा है । राज्य के दूर दराज़ के इलाक़ों में , जहाँ आक्रमणकारी नहीं हैं , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिनिधि दहशत पैदा कर रहे हैं । यह स्थिति बहुत गंभीर है और इसे इसी तरह आगे नहीं बढ़ने दिया जा सकता ।”

सरदार पटेल ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगाये गये आरोपों का उत्तर तुरन्त उसी दिन नेहरु को भेजा और साथ ही नैशनल कान्फ्रेंस के झूठ की पोल भी खोली । पटेल ने लिखा,” बख़्शी ग़ुलाम मोहम्मद कल लगभग पूरा दिन मेरे साथ था । उसने मुझे यह नहीं बताया कि उसे राज्य के अधिकारियों से मिलने में कुछ कठिनाई हुई हो या किन्हीं हथियारों को रोक लिया गया हो । दरअसल मुझे तो यह भी नहीं पता था कि हथियारों का ऐसा भंडार राज्य सरकार के पास है । ( यदि संघ की गतिविधियाँ आपत्तिजनक होतीं तो बख़्शी मुझे ज़रुर बताते ) लेकिन न तो बख़्शी ने और न ही किसी अन्य व्यक्ति ने जम्मू में मुझे आर.एस.एस की गतिविधियों के बारे में कोई शिकायत की । आर.एस.एस ने शुरु में कुछ किया हो पता नहीं , लेकिन किसी आपत्तिजनक गतिविधि का कोई साक्ष्य नहीं है ।” नैशनल कान्फ्रेंस अच्छी तरह जानती थी कि संघ के बारे में नेहरु को बरगलाया जा सकता है , सरदार को नहीं ।

दरअसल पटेल को नेहरु की गतिविधियों की ज़्यादा चिन्ता रहती थी , जिनके कारण समस्याएँ सुलझने की बजाय ज़्यादा उलझतीं थीं , ख़ासकर कश्मीर के मामले में । पटेल ने १९४६ के मध्य में ही इसकी चर्चा द्वारिका प्रसाद मिश्र से की थी । पटेल के अनुसार,”नेहरु ने हाल ही में ऐसी बहुत सी बातें कही हैं , जिनसे जटिल उलझने पैदा हुई हैं । कश्मीर के सम्बध में उनकी गतिविधियाँ , संविधान सभा में सिख चुनाव में हस्तक्षेप , कांग्रेस कमेटी के अधिवेशन के तुरन्त बाद प्रेस सम्मेलन बुलाना , ये सभी काम उनके भावात्मक पागलपन के ही थे , जिससे हम सभी को इन मामलों के समाधान में अत्यन्त तनावपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ा ।”

ख़ैर , इधर जम्मू कश्मीर में सेना पाकिस्तानी आक्रमणकारियों से जूझ रही थी और उधर शेख अब्दुल्ला और उनकी नैशनल कान्फ्रेंस अपना निशाना महाराजा को बनाये हुए थी । अब तो उन्होंने राज्य के दीवान मेहर चन्द महाजन को भी अपने निशाने पर यह आरोप लगा कर ले लिया था कि वे संघ की सहायता कर रहे हैं । संकट की इस घड़ी में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक सेना की कन्धे से कन्धा मिला कर सहायता कर रहे थे । स्वयं सेनाधिकारी इस तथ्य को स्वीकार रहे थे । कई स्थानों पर तो अग्रिम मोर्चों पर भी संघ के स्वयंसेवक सेना को गोला बारुद पहुँचा रहे थे । लेकिन नेहरु को इन सब बातों से कोई सरोकार नहीं था । उन्होंने सरदार पटेल का पत्र प्राप्त होने पर उसी दिन बिना एक भी क्षण गंवाये उसका उत्तर दिया । पटेल द्वारा स्थिति स्पष्ट कर दिये जाने के बाद उन्होंने हथियारों के मामले को तो सेना की ओर खिसका दिया । उन्होंने लिखा,”हथियार बाँटने का मामला पुराना हो चुका है और इस पर अनेक बार सैनिक अधिकारियों के साथ चर्चा हो चुकी है । सर बुकर अधिक रुष्ट हैं कि बख़्शी को भेजे गये शस्त्र उसे क्यों नहीं दिये गये । उन्होंने कुलबन्त सिंह से इसका स्पष्टीकरण भी माँगा है ।” वैसे रिकार्ड के लिये अंग्रेज वुकर उस समय भारतीय सेना के मुखिया थे और भीतर ही भीतर अन्य अंग्रेजों की ही तरह प्रयास रत थे कि पाकिस्तान ज्यादा से ज्यादा रियासत पर कब्जा कर ले । लेकिन नेहरु ने अबकी बार नये मुद्दे उठा लिये थे । । अब तक नेहरु शेख के प्रभाव में इतना आ चुके थे कि वे यह कल्पना भी करने लगे कि हिन्दुओं ने शेख को नेता स्वीकार लिया है । निशाना अब भी , पटेल के स्पष्टीकरण के बाद भी , राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही था । नेहरु ने लिखा,” शेख ने हिन्दुओं का सहयोग प्राप्त करने का कठिन प्रयास किया है । इसमें उन्हें कश्मीर में पूर्ण रुप से तथा जम्मू में कुछ सीमा तक सफलता प्राप्त हुई है । ————— कहने का तात्पर्य यह है कि स्थानीय अधिकांश हिन्दु अब उनके साथ हैं । किन्तु आर.एस.एस और पंजाब के हिन्दु भिन्न प्रकार के हैं । उनके और शेख अब्दुल्ला के बीच गहरी खाई है । मुझे समझ नहीं आता कि इस खाई को कैसे पाटा जाये , जब आर.एस.एस पर आरोप है कि उसने जम्मू में मुसलमानों को मारने का संगठित प्रयास किया है ।” नेहरु की संघ और हिन्दुओं को लेकर की गई ये टिप्पणियाँ भ्रान्त धारणाओं पर आधारित थीं । शेख के साथ जिन हिन्दुओं के जुड़ने की बात नेहरु कर रहे थे , वे सी.पी.आई के लोग थे , जो उस समय की पार्टी लाईन के अनुसार या तो जम्मू कश्मीर को स्वतंत्र राज्य बनाने का प्रयास कर रहे थे या फिर उसे पाकिस्तान में मिलाने का । लेकिन क्योंकि महाराजा हरि सिंह ने राज्य में नई संघीय लोकतान्त्रिक व्यवस्था की स्थापना का रास्ता खोल कर , उनकी राज्य को पाकिस्तान में शामिल करवाने की योजना तो समाप्त कर दी थी , इसलिये अब वे भविष्य में रियासत को स्वतंत्र राज्य का दर्जा दिलवाने की योजना पर अमल करने के लिये शेख के साथ हो लिये थे ।

सरदार पटेल नेहरु के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर लगाये गये इन नये आरोपों का उत्तर तुरन्त नहीं दे सकते थे क्योंकि उन्हें उसी दिन ३० दिसम्बर को असम के प्रवास पर जाना था । लेकिन असम से वापिस आकर उन्होंने तुरन्त ८ जनवरी १९४८ को नेहरु को उत्तर दिया । पटेल ने लिखा,”असम के प्रवास पर जाने से पूर्व आपने मुझे कहा था कि ग़ुलाम मोहम्मद बख़्शी की शिकायत है कि हमारे भेजे गये शस्त्रों को बख़्शी के होम गार्डस को देने की बजाय आर.एस.एस को दे दिया गया है । आपने यह भी कहा था कि इसके लिये महाराजा स्वयं तथा उनके प्रधानमंत्री मेहर चन्द महाजन इसके लिये दोषी हैं ।” पटेल ने इस आरोप का सिलसिलेवार उत्तर दिया । पटेल के अनुसार ये हथियार राज्य के सैनिक सलाहकार को दे दिये गये थे । न तो महाराजा को और न ही महाजन को इस बात की जानकारी है कि ये किसे बाँटे गये । उसके बाद पटेल ने नेहरु की संतुष्टि के लिये बताया कि ये हथियार भारतीय सेना के मेजर जनरल कुलवन्त सिंह को दिये गये थे और उन्होंने इन्हें बख़्शी के सुपुर्द कर भी दिया था । लेकिन यदि पटेल का यह कथन सत्य मान लिया जाये तो बख़्शी झूठ क्यों बोल रहा था ? इसका उत्तर भी पटेल ने नेहरु को दिया ।” ऐसा लगता है कि जनरल ने बख़्शी के लाइट मशीनगन और मोर्टार देने के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया । क्योंकि इन हथियारों का प्रयोग करने का कौशल बख़्शी के होम गार्डों के पास नहीं था ।” और जहाँ तक महाराजा और मेहरचन्द महाजन का प्रश्न है,” यह भी संभावना है कि बख़्शी ने हथियार बिना उन्हें बताए अपने होम गार्डस के लिये माँगे हों ।” यह अलग बात है कि नेहरु ने इस बात की जाँच करवाना ज़रुरी नहीं समझा कि बख़्शी मोर्टार और लाइट मशीनगनें किस उद्देश्य से मांग रहे थे ?

इसके बाद पटेल ने एक बार फिर संघ को लेकर स्थिति स्पष्ट की । उन्होंने लिखा,”जहाँ तक यह आरोप है कि आर.एस.एस के कार्यकर्ताओं को हथियार दिये जातें हैं तो आज तक महाराजा या मेहर चन्द महाजन दोनों में से किसी ने भी संघ को देने के लिये हथियारों की मांग नहीं की । संघ के कुछ लोगों के बारे में शिकायत थी कि वे राज्य में मुसलमानों के विरुद्ध शिकायत करते हैं । महाजन ने एक बैठक बुलाकर सभी पक्षों को स्पष्ट कर दिया कि किसी प्रकार की भी शरारत सहन नहीं की जायेगी । जहाँ तक हथियारों को दिये जाने का प्रश्न है , वे रियासत की सेना के लिये ही अपर्याप्त हैं , अत: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दिये जाने का प्रश्न ही नहीं उठता । राज्य सरकार ने अपनी एक मिलिशिया गठित की है , जो सैनिक अनुशासन के अन्तर्गत है । संघ के स्वयंसेवक उसमें भर्ती होकर सीमा पार युद्ध में भाग ले चुके हैं ।”

पहली बार सरकार के स्तर पर भारत के उपप्रधानमंत्री ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया की संघ के लोग सेना के साथ मिल कर सीमा पार युद्ध में भाग ले रहे हैं । नेहरु को पटेल की इस स्पष्टोक्ति से कितना कष्ट हुआ होगा , यह तो अल्लाह ही जानता होगा , लेकिन पहली बार सरकारी स्तर पर जम्मू कश्मीर में संघ की युद्ध के दौरान भूमिका को पटेल ने आधिकारिक रुप से इतिहास का हिस्सा बना दिया । आमीन ।

2 COMMENTS

  1. यह आलेख लेखक ने जिस किसी भी उद्देश्य से लिखा हो, लेकिन एक पाठक के रूप में, जो कुछ मैं समझ सका हूँ. वो इस प्रकार है-लेखक ये बताने का प्रयास कर रहे हैं कि-

    १-नेहरू संघ विरोधी थे.
    २-पटेल कांग्रेसी होते हुए नेहरू सरकार में संघ के प्रतिनिधी की तरह से काम कर रहे थे.
    ३-संघ ने कश्मीर को बचाने के लिए सेना के साथ युद्ध में हिस्सेदारी की.

    मेरा लेखक से विनम्र अनुरोध है कि जो भी तथ्य/सन्दर्भ लिखे गए हैं और जिनको आधार बनाकर उपरोक्त विवेचना की गयी है, यदि उन सबका अधिकृत स्त्रोत भी लिख दिया होता तो हम सबके ज्ञान वर्धन के लिए अधिक उचित होता!

    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  2. मेरा अग्निहोत्री से अनुरोध है कि हम सबको इतिहास के एक अल्पज्ञात अध्याय से अवगत कराने की कृपा करें. किस प्रकार प.पू. गुरुजी ने कश्मीर के महाराज को कश्मीर के भारत में विलय के लिए राज़ी किया? सरदार पटेल की इसमें क्या भूमिका थी? देश के सामने इतिहास का यह तथ्य आना ही चाहिए.

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